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| फोटो --गूगल से साभार |
सपनों के सौदागर खरीदते हैं वोट
मीरगांव में फिर सभा लगी थी ऐसी सभा जैसी पहले कभी नहीं हुई. लोग दूर-दूर से आए थे. सोमरंजन को सुनने. कहते हैं विदेश में पढ़ते थे.लाखों रूपए तनख्वाह छोड़कर देश में ही कुछ करने की तमन्ना लेकर लौटे हैं..एकता पार्टी के सोमरंजन ने युवाओं की तकदीर संवारने का ऐलान किया. विकास का नारा दिया.घर-घर सुविधा पहुंचाने का वादा किया. बेरोजगारों के खाली हाथों में काम सौपने का किस्सा सुनाया..युवा जोश में उमड़े दिन रात काम किया..लेकिन वोटों का अंकगणित गड़बड़ाता देख युवाओं की नई थ्योरी अपनाई गयी..रिज्लट आने से पहले सोमरंजन और बिबेचन के समर्थक आपस में भीड़ गए. नारेबाजी और जयकारों के बीच संघर्ष की चिन्गारी उड़ी. शांति और भाईचारे का संदेश देने वाले उम्मीदवारों ने ही ललकार कर जंग लड़ाई. कानून गिड़गिड़ाता रहा और नैतिकता बेजार होती रही. .....
उस दिन लोग कंधे पर बैनर होर्डिंग थामे भागे जा रहे थे.दिपंकर ने पूछ लिया का बात है मजुम चा, सब बड़ी जल्दी में दिख रहे,भागे जा रहे जैसे कवनो गाड़ी छूट रही है.मजुम चा मुस्कराकर बोले हां, पैसे की गाड़ी छूट रही है . क्यों तुझे नही मालूम क्या. दिपंकर अंजान सा- बोला नहीं चा, सच्ची नहीं मालूम तुमही बताओ न का बात है . आधी उमर समाजसेवा में गवां चुके मजुमदार चाचा जो अब सिरफ़ मजुमचा रह गएँ हैं बोले-आज फुरसू चौराहे पर रबसाहू की जनसभा है. अगर तुमको भी पैसा कौड़ी की दरकार है तो तुम भी भीड़ बनकर चले जाओ. का बात करते हो चाचा? इधर तो मनरेगा का मजूरी नहीं टैम पर मिल रही, और तुम कहते हो कि भीड़ बनने से पैसा मिलता है. विश्वास नहीं हो रहा तो भीमबलिए से पूछ ले.तभी .वंशीलाल बोल पड़ा -नेता हैं रोज थोड़े आएंगे-जो मिलता है ले लो.वर्ना पांच साल बाद ही दिखेंगे. आखिर जब हमारा वोट लेकर ये कमा रहे हैं तो हम अपना वोट इन्हें मुफत में क्यों दें. वंशी की बात मजुमचा को अच्छी ना लगी वो बोलते चले गए आज पैसे के लिए भीड़ बनकर बिकेंगे, कल पैसों के लिए वोट बेचेंगे..नहीं जानते वोट बेचने का मतलब क्या है? यह अधिकार है देश बदलने का इसे बेचना तो आने वाली पीढिय़ों का भविष्य बेचना है. मजुमचा बोलते जा रहे थे लेकिन उनकी सुनने वाला कोई न था. लोग सुनना ही नहीं चाहते.सबके मन में लालच समा गयी है. क्या जनता क्या नेता. चुनाव सबके लिए पैसा कमाने का जरिया दिख रहा है. पिछली बार भी बबनसाह के टाइम पर यही तो हुआ था. लाख मना करते रहे. पैसों पर वोट न दो लेकिन किसी ने एक न सुनी .क्या मिला ..गरीबों का मसीहा बनने का वादा कर गए नेता बब्बनसाह, पांच सालों में एक बार पूछने तक नहीं आए. फिर दूसरे नेता पर कैसे भरोसा करें.
70 साल की अकलीबा भी यहां हाथ में झंडा पकड़े धूप में खड़ी थी. मन नहीं माना तो दिपंकर ने पूछ लिया-काकी तू इहां का कर रही है? अकलीबा दम संभालने लगी. मैने लाया है इसे-सोमेश बोल पड़ा-काकी पैसे कमाने आयी है. दो घंटे रह गयी तो 200 रूपैया मिल जाएंगे. वैसे भी घर में पड़े-पड़े खासने के और करती भी क्या है. यहां इस उम्र में दो पैसे मिल जाए तो तंबाकू सूर्ती के दाम निकल आएंगे.सोमेश बोलता गया, रबसाहू ने कहा है कि जो जितना आदमी लाएगा उतना जादा पैसा मिलेगा. दिपंकर सोंचता रह गया उसके मन में आया कि वह चिल्ला कर बोल दे कि रबसाहू जैसे लोगों के बहकावे में क्यों आते हो. ये कुछ भी देने वाले नहीं.

