सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

कविता उत्पादन नहीं हृदय से पैदा होने वाला सृजन है, साहसी मन ही लिखता है कविताएं


राजीव सारस्वत सम्मान समारोह में सत्कारमूर्ति प्रो.रामजी तिवारी का प्रतिपादन
नवी मुंबई, मानव समाज को व्यवस्थित, अनुशासित और सुसंस्कृत रखना है तो साहित्य को सुरक्षित रखना होगा. क्योंकि साहित्य के बिना समाज और संस्कृति नहीं बच सकते. उक्त उद्गार वरिष्ठ साहित्यकर्मी प्रो.रामजी तिवारी ने कोपरखेरणे में आयोजित राजीव सारस्वत सम्मान समारोह 2017 में व्यक्त किया. राजीव सारस्वत 26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीद हो गए थे . उनकी स्मृति में श्रुति संवाद साहित्य कला अकादमी हर साल एक कवि एवं साहित्यकर्मी को सम्मानित करती है. 2017 का राजीव सारस्वत सम्मान प्रो. रामजी तिवारी को प्रदान किया गया.कवि आसकरण अटल को जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यहां अपने संबोधन में वरिष्ठ साहित्यकर्मी प्रो.तिवारी ने कहा कि राजीव सारस्वत सम्मान एक साहित्यकर्मी और उसके कवि कर्म को याद करने का माध्यम है. कवि राजीव सारस्वत की शहादत में उनके कविकर्म को यादगार और आन्दोलन बना देना सबसे बड़ी साहित्य सेवा है. अतिथियों में महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. नंदलाल पाठकएचपीसीएल के निदेशक प्रदीप कुमार अग्रवाल,   बिल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेन्द्र कारिया, एचपीसीएल के मुख्य महाप्रबंधक अभिषेक दत्ताअरुप भट्टाचार्यनरेश कुमारराम विचार यादवश्रुति संवाद के अध्यक्ष अरविंद राहीमहासचिव अनंत श्रीमालीमारकंडेय हरिओमअनिल सिंह समेत तमाम लोग उपस्थित थे.

साहित्य की उपेक्षा करने वाला राष्ट्र उपेक्षित हो जाता है..

 प्रो.तिवारी ने एक उदाहरण देते हुए कहा- एक बार मशहूर लेखक आस्कर वाइल्ड से पूछा गया कि उन्हें सेक्शपीयर और ब्रिटेन में से किसी एक को चुनना हो तो वे किसे चुनेंगे. आस्कर वाइल्ड का जवाब था..सेक्शपियर. सवाल उठा क्यों? आस्कर वाइल्ड ने जवाब दिया कि साहित्यकार सेक्शपियर को त्याग दिया तो ब्रिटेन नहीं बचेगा. लेकिन  यदि सेक्शपियर रहा तो ब्रिटेन को फिर बनाया जा सकता है.आस्कर वाइल्ड का यह जवाब किसी देश के लिए साहित्य की अहमियत को रेखांकित करता है. इसका हवाला देते हुए प्रो. तिवारी ने कहा कि कविता सृजन की अभिव्यक्ति है जो हृदय से निकलती है. यह कोई 'उत्पादननहीं है जो किसी के कहने पर पैदा की जा सके. इसलिए काव्य लिखना आसान नहीं है. निर्भय, निर्द्वंद और साहसी हृदय से ही काव्य का सृजन हो सकता है, भयभीत मनवाला कोई कविता और साहित्य नहीं लिख सकता. वहीं महाराष्ट्र साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. नंदलाल पाठक ने कहा कि साहित्य की उपेक्षा करने वाला राष्ट्र खुद उपेक्षित होकर एक दिन मिट जाता है. जो राष्ट्र आज दुनिया में नहीं है इसका सीधा अर्थ है कि उन्होंने साहित्य की उपेक्षा की. साहित्य होता तो वे फिर जिवंत हो सकते थे.

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