29 मार्च 2018 जयंती पर विशेष-( ऑल इंडिया रेडियो मुंबई के लिए )
जीवन अनमोल है चाहे वह मनुष्य का हो या किसी जीव का..इसलिए सब पर दया करो. खुद जीयो और दूसरों को भी जीने दो. जी हां, यह धरती का वह सिद्धांत है जिसे जैन धर्म के 24वें तिर्थंकर स्वामी महावीर ने दिए. यह सिद्धांत मानवों को सभी जीवों के प्रति दयालू रहने और प्रकृति के प्रति समर्पण की प्रेरणा देता है. स्वामी महावीर ने अपने उपदेशों के जरिए प्रेरणा देकर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम की भावना का साक्षात्कार कराया. महावीर ने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति और 6 अनिवार्य का सिद्धांत देकर मानव जीवन कैसे उत्कृष्ट और श्रेष्ठ है, इसकी विवेचना की. उनके पंचशील आज भी हमें महामानव बनने की प्रेरणा देते हैं.
प्रारंभिक जीवन
स्वामी महावीर का प्रारंभिक नाम वर्धमान था. करीब ढाई हजार साल पूर्व बिहार के वैशाली गणराज्य क्षत्रीय कुंडलपुर ( आज के नालंदा जिला) में माता त्रिशला और पिता सिद्धार्थ के राजसी परिवार में उनका जन्म हुआ. 30 साल तक के पुर्वार्ध जीवन में वर्धमान राजसी ठाटबाट में जरूर जिए लेकिन मध्य के 12 साल गृहत्याग कर उन्होंने जंगल में तपस्वी बनकर जीवन जिया. बाद के 30 वर्ष उन्होंने प्राणि मात्र के कल्याण और जगत के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने में बिताए. उन्हें अतिवीर, सन्मति और वर्धमान के साथ ही 'जिन' नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं उनके 'जिन' नाम के कारण ही ऋषभदेव से प्रारंभ हुई वर्तमान चौबीसी का नाम 'जैन धर्म' पड़ा, जिसके वे प्रवर्तक और 24वें तीर्थंकर हुए.और इस तरह वे वर्धमान से स्वामी महावीर के रुप में विख्यात हो गए.
जीयो और जीने का संदेश
महावीर स्वामी ने अपने उपदेशों से मानव कल्याण की सही राह और दुनिया को जीने की नयी दिशा दिखाई. जातिगत विसंगतियों को ध्वस्त करने उन्होंने चार सर्वोदयी तीर्थों की स्थापना की जिनमें क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएं नहीं थीं.उन्होंने विश्व को दुखों और संघर्षों से मुक्ति का सरल और सच्चा मार्ग दिखाया. आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए महावीर स्वामी ने पंचशील सिद्धांत बताए- अहिंसा, सत्य , अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य. ये वो सिद्धांत हैं जिसका सभी जैन मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविकाएं अनिवार्य रुप से आज भी पालन करते हैं. यह सामान्य जनों को भी शाश्वत सुख पाने में पथदर्शक और प्रेरणादायी बना हुआ है.
पथप्रदर्शक हैं महावीर की शिक्षाएं
आज दुनिया तेजी से बदल रही है लेकिन स्वामी महावीर की सैकड़ों साल पहले दी गई शिक्षाएं हमें नये युग में भी सच्चा जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं.
स्वामी महावीर कहते हैं कि
''हे मानवों सत्य ही जीवन का सच्चा सार है जो बुद्धिमान सत्य की आज्ञा में रहते हैं वे मृत्यू और निराशा के भय से मुक्त हो जाते हैं.
उन्होंने कहा-अहिंसक बनो. इस लोक में जितने भी त्रस जीव ( एक से 5 इंद्रियों वाले) हैं उनकी हिंसा मत करो. उन जीवों को उनके पथ से मत रोको. उनके प्रति मन में दया का भाव रखते हुए उनकी रक्षा करो.
अपरिग्रह अपनाओ. जीवन में आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह मत करो. जो व्यक्ति नश्वर वस्तुओं का संग्रह करता या सम्मति देता है उसे दुखों से छुटकारा नहीं मिल सकता.
ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है इसका पालन करो.क्योंकि ब्रह्मचर्य ही उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, संयम और विनय की जड़ है. जो स्त्रियों से आशक्त नहीं हैं वही मोक्ष की ओर बढ़ते हैं.
क्षमा भाव रखते हुए सब जीवों के प्रति कृतज्ञ रहो. सभी जीवों के प्रति मैत्रीभाव रखो. वे कहते हैं कि '' मैं सब जीवों से अपने सारे अपराधों के लिए क्षमा मांगता हूं. सब जीवों ने मेरे साथ जो अपराध किए हैं उन्हें भी मैं क्षमा करता हूं. मनसा, वाचा, कर्मणा मेरी सभी पापवृत्तियां नष्ट और विफल हो जाएं.
स्वामी महावीर कहते हैं कि 'धर्म' सबसे उत्तम मंगल है. अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है. और जो धर्मात्मा हैं. जिनके मन में सदैव धर्म जागृत रहता है, वे देवताओं के लिए भी आदरणीय हैं.
महावीर स्वामी का जैन धर्म ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति, निर्माण या रखरखाव के लिए किसी ईश्वर या परम शक्ति की धारणा का प्रतिपादन नहीं करता. जैन दर्शन के अनुसार, यह ब्रह्माण्ड स्वयं संचालित है और सार्वभौमिक प्राकृतिक क़ानूनों पर चलता है. जिसके आधार ''जीव, पुद्गल, आकाश, काल, धर्म, और अधर्म नामक 6 द्रव्य हैं. इनका अस्तित्व सदैव रहा है और आगे भी रहेगा. जैन धर्म कहता है कि '' भगवान एक अमूर्तिक वस्तु है और वह मूर्तिक वस्तु यानी ब्रह्मांड का निर्माण नहीं कर सकता. जैन धर्म दर्शन के मुताबिक ' हर आत्मा का असली स्वभाव भगवंता है. और हर आत्मा में अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान और अनंत सुख है. आत्मा और कर्म पुद्गल के बंधन के कारण ही यह गुण प्रकट नहीं हो पाते. किन्तु सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र के माध्यम से आत्मा के इस राज्य को प्राप्त किया जा सकता है. इन रतंत्रय के धारक को भगवान कहा जाता है.
कहते हैं कि स्वामी महावीर के संघ में इंद्रभूति समेत 11 गणधर थे. 14 हजार दिगंबर मुनि, 36 हजार आर्यिकाएं, 1 लाख श्रावक और 3 लाख श्राविकाएं थी. 527 ईसा पूर्व बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक की दीपावली को भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया. स्वामी महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया. त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार की प्रेरणा दी. उन्होंने चतुर्दिक संघ के जरिए अपने कैवल्यज्ञान को देश में घूमघूम कर फैलाया.
प्रासंगिक हैं महावीर...
वर्तमान आपाधापी के अशांत, भ्रष्ट और हिंसक वातावरण में महावीर की अहिंसा शांति प्रदान कर सकती है. उनका अपरिग्रह आर्थिक विषमता मिटाने के साथ ही संघर्षों में समन्वय और सद्भावना का स्रोत बन सकता है. क्योंकि जब तक एक ओर अथाह पैसा, दूसरी ओर अभाव रहेगा तक संघर्ष होते रहेंगे. उसी तरह जब अस्तेय यानी अचौर्य की भावना का प्रचार-प्रसार और पालन होगा तो चोरी, लूटमार का भय खत्म हो जाएगा. पूरे विश्व में मानसिक और आर्थिक शांति स्थापित होगी. चरित्र और संस्कार मजबूत होंगे तो सरल, सादगीपूर्ण एवं गरिमामय जीवन को प्रोत्साहन मिलेगा. तीर्थंकर हमें इसी आत्मज्ञान का रास्ता दिखा कर गए हैं.
अंततः..
भगवान महावीर का आत्मदर्शन जगत के प्रत्येक जीवात्मा के लिए समान और हितकारी था. उन्होंने कहा कि ''दुनिया की सभी आत्माएं एक सी हैं. इसलिए हमें दूसरों के प्रति वही व्यवहार करना चाहिए जो हमें स्वयं पसंद हों. महावीर का 'जीयो और जीने दो' का यही सिद्धांत आज पूरी दुनिया के लिए मानव कल्याण का मार्गदर्शक बना हुआ है. हम इस मार्ग पर चलकर सम्मानित, शांतिपूर्ण और सदाचारी जीवन पा सकते हैं.''
-सुधीर शर्मा
लेखक एवं पत्रकार
9892372258
जीवन अनमोल है चाहे वह मनुष्य का हो या किसी जीव का..इसलिए सब पर दया करो. खुद जीयो और दूसरों को भी जीने दो. जी हां, यह धरती का वह सिद्धांत है जिसे जैन धर्म के 24वें तिर्थंकर स्वामी महावीर ने दिए. यह सिद्धांत मानवों को सभी जीवों के प्रति दयालू रहने और प्रकृति के प्रति समर्पण की प्रेरणा देता है. स्वामी महावीर ने अपने उपदेशों के जरिए प्रेरणा देकर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम की भावना का साक्षात्कार कराया. महावीर ने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति और 6 अनिवार्य का सिद्धांत देकर मानव जीवन कैसे उत्कृष्ट और श्रेष्ठ है, इसकी विवेचना की. उनके पंचशील आज भी हमें महामानव बनने की प्रेरणा देते हैं.
प्रारंभिक जीवन
स्वामी महावीर का प्रारंभिक नाम वर्धमान था. करीब ढाई हजार साल पूर्व बिहार के वैशाली गणराज्य क्षत्रीय कुंडलपुर ( आज के नालंदा जिला) में माता त्रिशला और पिता सिद्धार्थ के राजसी परिवार में उनका जन्म हुआ. 30 साल तक के पुर्वार्ध जीवन में वर्धमान राजसी ठाटबाट में जरूर जिए लेकिन मध्य के 12 साल गृहत्याग कर उन्होंने जंगल में तपस्वी बनकर जीवन जिया. बाद के 30 वर्ष उन्होंने प्राणि मात्र के कल्याण और जगत के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने में बिताए. उन्हें अतिवीर, सन्मति और वर्धमान के साथ ही 'जिन' नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं उनके 'जिन' नाम के कारण ही ऋषभदेव से प्रारंभ हुई वर्तमान चौबीसी का नाम 'जैन धर्म' पड़ा, जिसके वे प्रवर्तक और 24वें तीर्थंकर हुए.और इस तरह वे वर्धमान से स्वामी महावीर के रुप में विख्यात हो गए.
जीयो और जीने का संदेश
महावीर स्वामी ने अपने उपदेशों से मानव कल्याण की सही राह और दुनिया को जीने की नयी दिशा दिखाई. जातिगत विसंगतियों को ध्वस्त करने उन्होंने चार सर्वोदयी तीर्थों की स्थापना की जिनमें क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएं नहीं थीं.उन्होंने विश्व को दुखों और संघर्षों से मुक्ति का सरल और सच्चा मार्ग दिखाया. आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए महावीर स्वामी ने पंचशील सिद्धांत बताए- अहिंसा, सत्य , अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य. ये वो सिद्धांत हैं जिसका सभी जैन मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविकाएं अनिवार्य रुप से आज भी पालन करते हैं. यह सामान्य जनों को भी शाश्वत सुख पाने में पथदर्शक और प्रेरणादायी बना हुआ है.
पथप्रदर्शक हैं महावीर की शिक्षाएं
आज दुनिया तेजी से बदल रही है लेकिन स्वामी महावीर की सैकड़ों साल पहले दी गई शिक्षाएं हमें नये युग में भी सच्चा जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं.
स्वामी महावीर कहते हैं कि
''हे मानवों सत्य ही जीवन का सच्चा सार है जो बुद्धिमान सत्य की आज्ञा में रहते हैं वे मृत्यू और निराशा के भय से मुक्त हो जाते हैं.
उन्होंने कहा-अहिंसक बनो. इस लोक में जितने भी त्रस जीव ( एक से 5 इंद्रियों वाले) हैं उनकी हिंसा मत करो. उन जीवों को उनके पथ से मत रोको. उनके प्रति मन में दया का भाव रखते हुए उनकी रक्षा करो.
अपरिग्रह अपनाओ. जीवन में आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह मत करो. जो व्यक्ति नश्वर वस्तुओं का संग्रह करता या सम्मति देता है उसे दुखों से छुटकारा नहीं मिल सकता.
ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है इसका पालन करो.क्योंकि ब्रह्मचर्य ही उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, संयम और विनय की जड़ है. जो स्त्रियों से आशक्त नहीं हैं वही मोक्ष की ओर बढ़ते हैं.
क्षमा भाव रखते हुए सब जीवों के प्रति कृतज्ञ रहो. सभी जीवों के प्रति मैत्रीभाव रखो. वे कहते हैं कि '' मैं सब जीवों से अपने सारे अपराधों के लिए क्षमा मांगता हूं. सब जीवों ने मेरे साथ जो अपराध किए हैं उन्हें भी मैं क्षमा करता हूं. मनसा, वाचा, कर्मणा मेरी सभी पापवृत्तियां नष्ट और विफल हो जाएं.
स्वामी महावीर कहते हैं कि 'धर्म' सबसे उत्तम मंगल है. अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है. और जो धर्मात्मा हैं. जिनके मन में सदैव धर्म जागृत रहता है, वे देवताओं के लिए भी आदरणीय हैं.
महावीर स्वामी का जैन धर्म ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति, निर्माण या रखरखाव के लिए किसी ईश्वर या परम शक्ति की धारणा का प्रतिपादन नहीं करता. जैन दर्शन के अनुसार, यह ब्रह्माण्ड स्वयं संचालित है और सार्वभौमिक प्राकृतिक क़ानूनों पर चलता है. जिसके आधार ''जीव, पुद्गल, आकाश, काल, धर्म, और अधर्म नामक 6 द्रव्य हैं. इनका अस्तित्व सदैव रहा है और आगे भी रहेगा. जैन धर्म कहता है कि '' भगवान एक अमूर्तिक वस्तु है और वह मूर्तिक वस्तु यानी ब्रह्मांड का निर्माण नहीं कर सकता. जैन धर्म दर्शन के मुताबिक ' हर आत्मा का असली स्वभाव भगवंता है. और हर आत्मा में अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान और अनंत सुख है. आत्मा और कर्म पुद्गल के बंधन के कारण ही यह गुण प्रकट नहीं हो पाते. किन्तु सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र के माध्यम से आत्मा के इस राज्य को प्राप्त किया जा सकता है. इन रतंत्रय के धारक को भगवान कहा जाता है.
कहते हैं कि स्वामी महावीर के संघ में इंद्रभूति समेत 11 गणधर थे. 14 हजार दिगंबर मुनि, 36 हजार आर्यिकाएं, 1 लाख श्रावक और 3 लाख श्राविकाएं थी. 527 ईसा पूर्व बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक की दीपावली को भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया. स्वामी महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया. त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार की प्रेरणा दी. उन्होंने चतुर्दिक संघ के जरिए अपने कैवल्यज्ञान को देश में घूमघूम कर फैलाया.
प्रासंगिक हैं महावीर...
वर्तमान आपाधापी के अशांत, भ्रष्ट और हिंसक वातावरण में महावीर की अहिंसा शांति प्रदान कर सकती है. उनका अपरिग्रह आर्थिक विषमता मिटाने के साथ ही संघर्षों में समन्वय और सद्भावना का स्रोत बन सकता है. क्योंकि जब तक एक ओर अथाह पैसा, दूसरी ओर अभाव रहेगा तक संघर्ष होते रहेंगे. उसी तरह जब अस्तेय यानी अचौर्य की भावना का प्रचार-प्रसार और पालन होगा तो चोरी, लूटमार का भय खत्म हो जाएगा. पूरे विश्व में मानसिक और आर्थिक शांति स्थापित होगी. चरित्र और संस्कार मजबूत होंगे तो सरल, सादगीपूर्ण एवं गरिमामय जीवन को प्रोत्साहन मिलेगा. तीर्थंकर हमें इसी आत्मज्ञान का रास्ता दिखा कर गए हैं.
अंततः..
भगवान महावीर का आत्मदर्शन जगत के प्रत्येक जीवात्मा के लिए समान और हितकारी था. उन्होंने कहा कि ''दुनिया की सभी आत्माएं एक सी हैं. इसलिए हमें दूसरों के प्रति वही व्यवहार करना चाहिए जो हमें स्वयं पसंद हों. महावीर का 'जीयो और जीने दो' का यही सिद्धांत आज पूरी दुनिया के लिए मानव कल्याण का मार्गदर्शक बना हुआ है. हम इस मार्ग पर चलकर सम्मानित, शांतिपूर्ण और सदाचारी जीवन पा सकते हैं.''
-सुधीर शर्मा
लेखक एवं पत्रकार
9892372258

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें