जगत में मां से बढ़कर कौन प्यारा।
कि जिसने ये दिखाया विश्व न्यारा ।।
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| माता जी की पुण्यतिथि पर शब्दसुमन |
न कोई स्नेह का तिस पार पाया
कहां जो ऋण कोई है तार पाया।
ये सारी सृष्टि ही उसपर खड़ी है।
तभी तो स्वर्ग से जननी बड़ी है।।
उसी के स्नेह से खिलते हैं बच्चे
दर ओ दीवार भी लगते हैं अच्छे
जो घर में है तो, दीवाली लगे है
मेरा मन मां को केवल ढूंढता है
यहां बिन मां ना कोई पूछता है
सुनो अब 'वो नहीं' कहती घड़ी है।।
मकां में बस यहां यादें पड़ी हैं।।
चला जाता है जो ना लौट पाया।
यही तो सृष्टि की अद्भुत है माया
अभी जो साथ है, कब छोड़ जाए
कि जाने कौन, कब मुंह मोड़ जाए
तो सबके साथ सादर मिल रहो ना.
कि जाने कब किसी से भेंट हो ना
है जीवन बस यहां मोटर औ गाड़ी
कि सब हैं खींचते अव्वल अनाड़ी
चले इस पर न जादू, कोई मंतर
ना जाने किस डगर हो जाए पंचर।।
सदा मां बस ये समझाती रही हैं
जिएं कैसे ये सिखलाती रही हैं।
मगर अफसोस, हम न जान पाए.
ना मां का हम हृदय पहचान पाए।।
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| प्रतीकात्मक फोटो- गूगल से साभार |
कि उनके 'हाथ' खाना चाहता हूँ
कि ढूंढे मां को है अक्सर निगाहें
आ के आगोश में भरले जो बाहें।।
लगा तब बोलने पोपट परिन्दा।
वो नादां, अब न तेरी मां है जिंदा
फकत अहसास है मिट्टी मकां में,
अगर पाना है, तुम ढूंढो हवा में।।
तभी बनकर हवा बहने लगी मां
मेरे 'अंतर' से कुछ कहने लगी मां
हकीकत मां की न जाने परिन्दा
मैं बच्चों में सदा रहती हूँ जिन्दा ।।
लगी महसूस होने, आस में मां
मेरी हर श्वांस में, विश्वास में मां
रगों में रक्त बन, बहने लगीं वे,
मेरे 'अंतर' से फिर कहने लगीं वे।
मेरे आशीष की तुझ पर लड़ी है।।
लगा कि मां तेरे सम्मुख खड़ी है।।
ये सारी सृष्टि ही उस पर खड़ी है।
कि मां तू स्वर्ग से सचमुच बड़ी है।।....

