बुधवार, 29 जनवरी 2014

मरते हुए देश को बचाओ साथियों

खारा  कहीं गंगा का किनारा हो न जाए.
बुझा हुआ शोला फिर अंगारा न हो जाए
नष्ट भ्रष्ट भाग्य फिर हमारा हो न जाए
टुकड़े-टुकड़े देश फिर दुबारा हो न जाए। .
सो रहे शहीदों को जगाओ साथियों। .
मरते हुए देश को बचाओ साथियों। .

यह देश किसी एक कि जागीर नहीं है.
किसी एक कड़ी कि जंजीर नहीं है
किसी परिवार कि तस्बीर नहीं है
किसी एक बेटे कि तकदीर नहीं है।
 द्वार-द्वार अलख ये जगाओ साथियों
मरते हुए देश को बचाओ  साथियों।।
-----गोपाल दास नीरज

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