जीत हार के घनचक्कर में फंसे और अमेठी से किस्मत आजमा रहे कुमार विश्वास का दिमाग डग्गम डग्ग हो रहा है. पहले राहुल आए थे तो अमेठीकरों को रिश्तों की कसमें खिला कर गए थे ,अभी वो भूला भी नहीं था कि नमो ने अपने जादुई भाषण का ऐसा पलीता लगाया कि अब अमेठीवासियों को केवल नमो नमो दिखता है. जैसे कभी कृष्ण के मथुरा से लौटने के बाद भी गोपियों को केवल हर जगह कृष्ण नजर आते थे वैसे ही अमेठी में जन-जन की जुबान पर मोदी छा गए हैं. कभी राहुल को भैया कहने वाले अमेठी के नौजवान भी अब नमो मंत्र जपने लगे हैं. क्या टीवी क्या अखबार क्या रेडियो हर तरफ मोदी के भाषणों की धूम है, चर्चा है, विश्लेषण चल रहा है. समझ नहीं आ रहा है कि अमेठी से मोदी लड़ रहे हैं या भाजपा की स्मृति इरानी. दांव पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की इज्जत लगी है. क्योंकि खोने को उन्हीं के पास सबसे ज्यादा है. स्मृति इरानी तो यहां बाहर से गयी हैं. स्थानीय कांग्रेसी उन्हें आयातित और पैराशूट प्रत्याशी कहते हैं. चारो और राहुल और स्मृति इरानी के मुकाबले की चर्चा है. ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबले के बीच रहे आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास अचानक सूर्खियों से आऊट हो गए हैं. उनकी चिंता बढऩा लाजमी है. वे कोश रहे हैं अरविंद केजरीवाल को जिन्होंने बिना सोचे समझे मीडिया से दुश्मनी मोल ले ली. उस मीडिया से जिसने अपने पेट की कमाई को दांव पर लगाकर बिना कुछ लिए ही केजरी को बड़ा बनाया. लेकिन जैसे ही कुछ पावर आया केजरीवाल उन्हें ही जेल में डालने की योजना बनाने लगे. खैर केजरीवाल की उस नादानी का नुकसान कर्मठ कुमार विश्वास को भोगना पड़ेगा, ऐसा किसी ने सोचा तक नहीं था वो भी ऐसे दौर में जब जनता के बीच अपनी बात पहुंचाने के लिए मीडिया ही एकमात्र माध्यम हो. बहरहाल कुमार विश्वास केजरीवाल से खफा हैं. चिंता इस बात की भी है कि अमेठी में उनका शुरुआती दौर जिस जोश में चला वह 7 मई आते आते धारशाई हो गया. चिंता इस बात की भी है कि आखिर राहुल के अरमानों पर आखिरी दौर में पानी फेर गए और मतदाताओं को भाजपा को वोट देने के लिए जगा गए मोदी ने उनका भी खेल बिगाड़ दिया. जीत हार की इस उहापोह में कुमार का विश्वास डगमगाना लाजमी है. आखिर कौन ऐसा नहीं होगा कि अपनी इज्जत दांव पर हो और न चिंता करे. बुधवार 7 मई को उन्होंने आनन फानन में भगवान देवी देवताओं को मनाया, शीश झुकाए, पांव पड़े , मन्नत मानी की जीत जाएं. पोलिंग बूथ पर आए खुद के लिए जिन्दगी में पहली बार वोट डाला. खुद की जीत के लिए दुआ मांगी. जैसे ही बाहर निकले एक आम आदमी यानी समर्थक ने फरमाइश कर डाली. भैया जी कविता सुनाओ न? अब उस समर्थक को क्या पता कि जब इंसान चिंता में हो तो कविता नहीं खीझ निकलती है. और बात जब विरोधियों के जीतने की हो तो गुस्सा आता है. भैया ऐसे में कोई कविता सुनाने की फरमाईश करे तो गाली आती है. लेकि न क्या करे समर्थक को लगा कि कवि,लेखक किसी और दुनिया के लोग होते हैं जो दुख में हंसते हैं. शायद उसे कविता की परिभाषा मालूम होगी.वियोगी होगा पहला कवि आह से निकला होगा गान...समर्थक कविता कहने की फरमाईश कर रहा था. जैसे ही आम आदमी ने कुमार को कविता सुनाने की गुजारिश की विश्वास भड़क गए. भूल गए ऐसे ही आम लोगों ने उन्हें नेता बनाया और अमेठी में जिताने के लिए जीतोड़ मेहनत की. लेकिन कुमार ने उलटा समझा. अपने नाम की तरह. नाम विश्वास कुमार होता तो शायद सीधा समझ जाते लेकिन भावनाओं की कद्र किए बिना ही समर्थक का विश्वास तोड़कर कुमार आगे बढ़ गए..शायद उनके दिमाग में राहुल और मोदी के साथ समर्थक एक नई चिंता बनकर समा गया था. आजादी के 75 साल गुजरने के बाद भी अनगिनत भारतीय रोटी, कपड़ा और मकान की जद्दोजहद में हैं. कुछ इतने भूखे हैं कि उन्हें रोटी के शिवा भगवान किसी और रुप में दिखता ही नहीं. लाखों लोग बेघर हैं और सड़क फुटपाथों पर खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं. जिन हुक्मरानों पर इनके उत्थान की जिम्मेवारी हैं वे पंथ-प्रांत और पॉलिटिक्स में बंटे और बिखरे हैं. इसलिए अपना हिन्दुस्तान अब तलक अधूरा है.अपुन अधूरे हिन्दुस्तान को पूरा करने निकले हैं ..आप का भी स्वागत है...
बुधवार, 7 मई 2014
कुमार बाबू कविता सुनाओ न
जीत हार के घनचक्कर में फंसे और अमेठी से किस्मत आजमा रहे कुमार विश्वास का दिमाग डग्गम डग्ग हो रहा है. पहले राहुल आए थे तो अमेठीकरों को रिश्तों की कसमें खिला कर गए थे ,अभी वो भूला भी नहीं था कि नमो ने अपने जादुई भाषण का ऐसा पलीता लगाया कि अब अमेठीवासियों को केवल नमो नमो दिखता है. जैसे कभी कृष्ण के मथुरा से लौटने के बाद भी गोपियों को केवल हर जगह कृष्ण नजर आते थे वैसे ही अमेठी में जन-जन की जुबान पर मोदी छा गए हैं. कभी राहुल को भैया कहने वाले अमेठी के नौजवान भी अब नमो मंत्र जपने लगे हैं. क्या टीवी क्या अखबार क्या रेडियो हर तरफ मोदी के भाषणों की धूम है, चर्चा है, विश्लेषण चल रहा है. समझ नहीं आ रहा है कि अमेठी से मोदी लड़ रहे हैं या भाजपा की स्मृति इरानी. दांव पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की इज्जत लगी है. क्योंकि खोने को उन्हीं के पास सबसे ज्यादा है. स्मृति इरानी तो यहां बाहर से गयी हैं. स्थानीय कांग्रेसी उन्हें आयातित और पैराशूट प्रत्याशी कहते हैं. चारो और राहुल और स्मृति इरानी के मुकाबले की चर्चा है. ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबले के बीच रहे आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास अचानक सूर्खियों से आऊट हो गए हैं. उनकी चिंता बढऩा लाजमी है. वे कोश रहे हैं अरविंद केजरीवाल को जिन्होंने बिना सोचे समझे मीडिया से दुश्मनी मोल ले ली. उस मीडिया से जिसने अपने पेट की कमाई को दांव पर लगाकर बिना कुछ लिए ही केजरी को बड़ा बनाया. लेकिन जैसे ही कुछ पावर आया केजरीवाल उन्हें ही जेल में डालने की योजना बनाने लगे. खैर केजरीवाल की उस नादानी का नुकसान कर्मठ कुमार विश्वास को भोगना पड़ेगा, ऐसा किसी ने सोचा तक नहीं था वो भी ऐसे दौर में जब जनता के बीच अपनी बात पहुंचाने के लिए मीडिया ही एकमात्र माध्यम हो. बहरहाल कुमार विश्वास केजरीवाल से खफा हैं. चिंता इस बात की भी है कि अमेठी में उनका शुरुआती दौर जिस जोश में चला वह 7 मई आते आते धारशाई हो गया. चिंता इस बात की भी है कि आखिर राहुल के अरमानों पर आखिरी दौर में पानी फेर गए और मतदाताओं को भाजपा को वोट देने के लिए जगा गए मोदी ने उनका भी खेल बिगाड़ दिया. जीत हार की इस उहापोह में कुमार का विश्वास डगमगाना लाजमी है. आखिर कौन ऐसा नहीं होगा कि अपनी इज्जत दांव पर हो और न चिंता करे. बुधवार 7 मई को उन्होंने आनन फानन में भगवान देवी देवताओं को मनाया, शीश झुकाए, पांव पड़े , मन्नत मानी की जीत जाएं. पोलिंग बूथ पर आए खुद के लिए जिन्दगी में पहली बार वोट डाला. खुद की जीत के लिए दुआ मांगी. जैसे ही बाहर निकले एक आम आदमी यानी समर्थक ने फरमाइश कर डाली. भैया जी कविता सुनाओ न? अब उस समर्थक को क्या पता कि जब इंसान चिंता में हो तो कविता नहीं खीझ निकलती है. और बात जब विरोधियों के जीतने की हो तो गुस्सा आता है. भैया ऐसे में कोई कविता सुनाने की फरमाईश करे तो गाली आती है. लेकि न क्या करे समर्थक को लगा कि कवि,लेखक किसी और दुनिया के लोग होते हैं जो दुख में हंसते हैं. शायद उसे कविता की परिभाषा मालूम होगी.वियोगी होगा पहला कवि आह से निकला होगा गान...समर्थक कविता कहने की फरमाईश कर रहा था. जैसे ही आम आदमी ने कुमार को कविता सुनाने की गुजारिश की विश्वास भड़क गए. भूल गए ऐसे ही आम लोगों ने उन्हें नेता बनाया और अमेठी में जिताने के लिए जीतोड़ मेहनत की. लेकिन कुमार ने उलटा समझा. अपने नाम की तरह. नाम विश्वास कुमार होता तो शायद सीधा समझ जाते लेकिन भावनाओं की कद्र किए बिना ही समर्थक का विश्वास तोड़कर कुमार आगे बढ़ गए..शायद उनके दिमाग में राहुल और मोदी के साथ समर्थक एक नई चिंता बनकर समा गया था.
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