13 फरवरी : रेडियो दिवस पर विशेष
नमस्कार , यह रेडियो मुंबई है और आप आल इंडिया रेडियो सुन रहे हैं..यह आवाज आपको भी खूब लुभाती होगी..आकाशवाणी की उद्घोषणा है ये...1980 के दशक में जब टीवी का इतना प्रचलन नहीं था तब मेरे घर पर मरफी का सिंगल बैंड रेडियो था..शायद मेरे पिताजी को किसी कंपनी के एक मैनेजर ने पुराना हो जाने पर भेंट में दिया था..मैंने उसी रेडियो को साथी बनाकर 9 वीं से 12वीं तक की पढ़ाई की. हालांकि पड़ोसी व सहपाठी मेरी मां से खूब शिकायत करते थे, आपका लड़का पढ़ता कम, रेडियो ज्यादा सुनता है..लेकिन हकीकत में गांवों में देर रात तक लैंप के साथ पढ़ाई के दौरान रेडियो मेरा सबसे अच्छा सहयोगी रहा, जिसकी धुनों व कार्यक्रमों के बीच मैंने 12वीं तक की पढ़ाई की और बेहतरीन नंबरों से पास भी हुआ...रेडियो से नहीं भाई, मेहनत से..रेडियो तो साथी रहा मेरा. खैर मैं बात इसकी उपयोगिता की कर रहा हूं..1984 में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत की खबर मैंने अपने बूआ के गांव से विदा होते हुए एक खपरैल के मकान की खिड़की से सुनी थी.मैनें फूफाजी को बताया कि इंदिरा गांधी को किसी ने गोली मार दी..उन्होंने पूछा था -किसने बताया..मैंने कहा -पीछले घर में रेडियो पर न्यूज में सुना...अनेक उदाहरण हैं कम खर्च में सूचनाएं देने वाला रेिडयो से बढ़िया साधन आज भी गांवों के लिए कोई और नहीं है..
इतिहास भी बेहद रोचक है ..
जब टीवी का अस्तित्व नहीं था तब पहली बार 1906 में कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड एफ. ने वायलिन बजाकर रेडियो प्रसारण की शुरूआत की थी..लेकिन इससे पहले वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने भारत में इसका प्रयोग प्रारंभ कर दिया था. साथ ही जी.मार्कोनी ने इंगलैंड में अमेरिका को बेतार संदेश भेजकर नीजी रेडियो का प्रारंभ कर दिया था..
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा..नेताजी
आप जानकर गर्व करेंगेे कि आजाद हिन्द फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने स्वाधीनता संग्राम के लिए भारतवासियों को जगाने अपना पहला संदेश रेडियो के माध्यम से ही दिया था..तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा..नेताजी ने जर्मनी रेडियो से जब यह संदेश दिया तब इसे सुनकर लाखों नौजवान आजादी के लिए अपना सर्वस्व लुटाने तैयार हो गए थे. इससे प्रेरित होकर नेताजी ने जर्मनी, सिंगापुर और रंगून में आजाद हिन्द रेडियो की स्थापना की जहां से रोज भारतीयों के लिए समाचार प्रसारित होता था. आज हम जिस रेडियो के माध्यम से बात कर रहे हैं इसकी शुरूआत अंग्रेजी हुकुमत के बीच 1936 में हुई थी तब इसका नाम इम्पीरियल रेडियो ऑफ इंडिया था. स्वाधीनता के बाद इसका नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो कर दिया गया जिसे हम आकाशवाणी भी कहते हैं....रेडियो का सबसे कारगर उपयोग भारत में गुलामी के दौरान स्वाधीनता आन्दोलन को बढ़ाने में हुआ... जब अंग्रेजों ने प्रिंटिंग प्रेसों पर पाबंदी लगा दी थी तब स्वतंत्रता सेनानियों व देशवासियों को संदेश देने के लिए पहली बार मुंबई के चौपाटी इलाके में सी व्यू नामक इमारत में इंजिनियर नरिमन प्रिंटर ने 27 अगस्त 1942 को ‘नेशनल कांग्रेस रेडियो’चालू किया , जहां से कांग्रेस का समाचार प्रसारित होता था..भारत की पहली उद्घोषक उषा मेहता ने तब कहा था कि यह 41.78 मीटर बैंड है और आप नेशनल कांग्रेस रेडियो सुन रहे हैं ..इसके कुछ ही दिनों बाद अंग्रेजी हूकूमत ने नरिमन प्रिंटर और मेहता को गिरफ्तार कर रेडियो स्टेशन भी बंद करवा दिया था..
इमरजेंसी में बनता है सूचनाओं का सहारा
मैं आप से पूछता हूं , क्या आप जानते हैं कि भूकंप ,चक्रवात और बाढ़ जैसी गंभीर आपदाओं के दौरान जब बिजली और संचार व्यवस्था ठप हो जाती है तो इसके बाद सूचनाओं और जानकारियों का संप्रेषण कौन करता है. यह सब होता है आकाशवाणी यानी रेडियो के जरिए. जी हां...आपात स्थितियों के दौरान संचार व्यवस्था बहाल करने में रेडियो सबसे ज्यादा कारगर साबित होते हैं. रेडियो तब भी सूचनाएं प्रसारित करता है जब टीवी या अन्य संचार माध्यम बिजली सप्लाई खंडित होने पर बंद पड़ जाते हैं.
अब आप सोंच रहेे होंगे कि आखिर टीवी या अन्य संचार माध्यमों के बीच रेडियो ही अधिक उपयोगी क्यों हो जाता है.. आपने गुजरात का भूकंप, भोपाल गैस त्रासदी, दक्षिण भारत में आयी सुनामी, और हुदहुद चक्रवात संग आयी भयंकर तबाही के बारे में जरुर सुना होगा..इस दौरान आपदा ने जहां पेड़ों के साथ ही बिजली के खंभे उखाड़ डाले थे. टेलीविजन का प्रसारण, और अखबारों का प्रकाशन भी पूरी तरह ठप हो गया था . मोबाइल और टेलीफोन के टावर्स भी ध्वस्त हो गए थे. सूचना पहुंचाने के सारे माध्यम बंद पड़ गए थे. हुदहुत और सुनामी से आयी बाढ़ के दौरान कई दिनों तक रेडियो के माध्यम से ही सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ. रेडियो सबसे सरल और त्वरित संचार माध्यम है..एफ एम चैनलों ने इसकी प्रगति को नया आयाम दे दिया है....आप को यह भी बता दें कि आजकल ब़डे-ब़डे आयोजनों व मेलों में भी रेडियो से अस्थाई सूचनाओं का प्रसारण चल रहा है. अलबत्ता पिछले कुछेक सालों से टीवी एवं अन्य संचार माध्यमों की चकाचौंध से रेडियो अकेला पड़ गया था, लेकिन बदलते दौर में आकाशवाणी और एफएम चैनलों की रोचक प्रस्तुतियों ने रेडियो के साथ लाखों-करोड़ों श्रोताओं को दुबारा जोड़ दिया है..रेडियो एक फिर बार लोगों के करीब पहुंच रहा है. जबसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ के लिए रेडियो को चुना है तब से इसकी पसंद एवं लोकप्रियता और भी बढ़ गयी है. रेडियो अब युवाओं के साथ ही सभी वर्गों का चहेता बन रहा है.इसे प्रोत्साहन मिल रहा है तो नए केन्द्र भी खुल रहे हैं. 1947 में जहां आल इंडिया रेडियो के केवल 6 स्टेशन थे, आज बढ़कर 223 हो गए हैं .इन केन्द्रों ने 99 फीसदी भारतीयों तक अपनी पहुंच बना ली है...ये किसी भी अच्छी या बुरी परिस्थितियों में त्वरित सूचनाएं संप्रेषित करने के लिए तैयार रहते हैं...कार -बस टैक्सी जैसे वाहनों एव ट्रेनों में प्रसारण की सुलभता ने रेडियो को और भी लुभावना बना दिया है..
रेडियों में कार्यक्रम पेश करने वाले आरजे और लेखकों को भी रोजगार का आधार दिया है..यहां क्रिएटिव राइटिंग के लिए कई मौके हैं. .यदि आप रेडियो के लिए वार्ताएं, कविता और कहानियां लिखते हैं तो आप यहां भेज सकते हैं, आपकी प्रस्तुतियों को पूरे भारत में एक साथ सुना जाता है..यह इकलौता ऐसा माध्यम है जिसे शहरों के साथ ही सूदूर गांवों में कहीं भी बैठकर या काम करते हुए आसानी से सुना जा सकता है. प्रसार का यह संचार माध्यम वाकई कमाल का है.
नमस्कार , यह रेडियो मुंबई है और आप आल इंडिया रेडियो सुन रहे हैं..यह आवाज आपको भी खूब लुभाती होगी..आकाशवाणी की उद्घोषणा है ये...1980 के दशक में जब टीवी का इतना प्रचलन नहीं था तब मेरे घर पर मरफी का सिंगल बैंड रेडियो था..शायद मेरे पिताजी को किसी कंपनी के एक मैनेजर ने पुराना हो जाने पर भेंट में दिया था..मैंने उसी रेडियो को साथी बनाकर 9 वीं से 12वीं तक की पढ़ाई की. हालांकि पड़ोसी व सहपाठी मेरी मां से खूब शिकायत करते थे, आपका लड़का पढ़ता कम, रेडियो ज्यादा सुनता है..लेकिन हकीकत में गांवों में देर रात तक लैंप के साथ पढ़ाई के दौरान रेडियो मेरा सबसे अच्छा सहयोगी रहा, जिसकी धुनों व कार्यक्रमों के बीच मैंने 12वीं तक की पढ़ाई की और बेहतरीन नंबरों से पास भी हुआ...रेडियो से नहीं भाई, मेहनत से..रेडियो तो साथी रहा मेरा. खैर मैं बात इसकी उपयोगिता की कर रहा हूं..1984 में देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत की खबर मैंने अपने बूआ के गांव से विदा होते हुए एक खपरैल के मकान की खिड़की से सुनी थी.मैनें फूफाजी को बताया कि इंदिरा गांधी को किसी ने गोली मार दी..उन्होंने पूछा था -किसने बताया..मैंने कहा -पीछले घर में रेडियो पर न्यूज में सुना...अनेक उदाहरण हैं कम खर्च में सूचनाएं देने वाला रेिडयो से बढ़िया साधन आज भी गांवों के लिए कोई और नहीं है..
इतिहास भी बेहद रोचक है ..
जब टीवी का अस्तित्व नहीं था तब पहली बार 1906 में कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड एफ. ने वायलिन बजाकर रेडियो प्रसारण की शुरूआत की थी..लेकिन इससे पहले वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने भारत में इसका प्रयोग प्रारंभ कर दिया था. साथ ही जी.मार्कोनी ने इंगलैंड में अमेरिका को बेतार संदेश भेजकर नीजी रेडियो का प्रारंभ कर दिया था..
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा..नेताजी
आप जानकर गर्व करेंगेे कि आजाद हिन्द फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने स्वाधीनता संग्राम के लिए भारतवासियों को जगाने अपना पहला संदेश रेडियो के माध्यम से ही दिया था..तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा..नेताजी ने जर्मनी रेडियो से जब यह संदेश दिया तब इसे सुनकर लाखों नौजवान आजादी के लिए अपना सर्वस्व लुटाने तैयार हो गए थे. इससे प्रेरित होकर नेताजी ने जर्मनी, सिंगापुर और रंगून में आजाद हिन्द रेडियो की स्थापना की जहां से रोज भारतीयों के लिए समाचार प्रसारित होता था. आज हम जिस रेडियो के माध्यम से बात कर रहे हैं इसकी शुरूआत अंग्रेजी हुकुमत के बीच 1936 में हुई थी तब इसका नाम इम्पीरियल रेडियो ऑफ इंडिया था. स्वाधीनता के बाद इसका नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो कर दिया गया जिसे हम आकाशवाणी भी कहते हैं....रेडियो का सबसे कारगर उपयोग भारत में गुलामी के दौरान स्वाधीनता आन्दोलन को बढ़ाने में हुआ... जब अंग्रेजों ने प्रिंटिंग प्रेसों पर पाबंदी लगा दी थी तब स्वतंत्रता सेनानियों व देशवासियों को संदेश देने के लिए पहली बार मुंबई के चौपाटी इलाके में सी व्यू नामक इमारत में इंजिनियर नरिमन प्रिंटर ने 27 अगस्त 1942 को ‘नेशनल कांग्रेस रेडियो’चालू किया , जहां से कांग्रेस का समाचार प्रसारित होता था..भारत की पहली उद्घोषक उषा मेहता ने तब कहा था कि यह 41.78 मीटर बैंड है और आप नेशनल कांग्रेस रेडियो सुन रहे हैं ..इसके कुछ ही दिनों बाद अंग्रेजी हूकूमत ने नरिमन प्रिंटर और मेहता को गिरफ्तार कर रेडियो स्टेशन भी बंद करवा दिया था..
इमरजेंसी में बनता है सूचनाओं का सहारा
मैं आप से पूछता हूं , क्या आप जानते हैं कि भूकंप ,चक्रवात और बाढ़ जैसी गंभीर आपदाओं के दौरान जब बिजली और संचार व्यवस्था ठप हो जाती है तो इसके बाद सूचनाओं और जानकारियों का संप्रेषण कौन करता है. यह सब होता है आकाशवाणी यानी रेडियो के जरिए. जी हां...आपात स्थितियों के दौरान संचार व्यवस्था बहाल करने में रेडियो सबसे ज्यादा कारगर साबित होते हैं. रेडियो तब भी सूचनाएं प्रसारित करता है जब टीवी या अन्य संचार माध्यम बिजली सप्लाई खंडित होने पर बंद पड़ जाते हैं.
अब आप सोंच रहेे होंगे कि आखिर टीवी या अन्य संचार माध्यमों के बीच रेडियो ही अधिक उपयोगी क्यों हो जाता है.. आपने गुजरात का भूकंप, भोपाल गैस त्रासदी, दक्षिण भारत में आयी सुनामी, और हुदहुद चक्रवात संग आयी भयंकर तबाही के बारे में जरुर सुना होगा..इस दौरान आपदा ने जहां पेड़ों के साथ ही बिजली के खंभे उखाड़ डाले थे. टेलीविजन का प्रसारण, और अखबारों का प्रकाशन भी पूरी तरह ठप हो गया था . मोबाइल और टेलीफोन के टावर्स भी ध्वस्त हो गए थे. सूचना पहुंचाने के सारे माध्यम बंद पड़ गए थे. हुदहुत और सुनामी से आयी बाढ़ के दौरान कई दिनों तक रेडियो के माध्यम से ही सूचनाओं का आदान-प्रदान हुआ. रेडियो सबसे सरल और त्वरित संचार माध्यम है..एफ एम चैनलों ने इसकी प्रगति को नया आयाम दे दिया है....आप को यह भी बता दें कि आजकल ब़डे-ब़डे आयोजनों व मेलों में भी रेडियो से अस्थाई सूचनाओं का प्रसारण चल रहा है. अलबत्ता पिछले कुछेक सालों से टीवी एवं अन्य संचार माध्यमों की चकाचौंध से रेडियो अकेला पड़ गया था, लेकिन बदलते दौर में आकाशवाणी और एफएम चैनलों की रोचक प्रस्तुतियों ने रेडियो के साथ लाखों-करोड़ों श्रोताओं को दुबारा जोड़ दिया है..रेडियो एक फिर बार लोगों के करीब पहुंच रहा है. जबसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ के लिए रेडियो को चुना है तब से इसकी पसंद एवं लोकप्रियता और भी बढ़ गयी है. रेडियो अब युवाओं के साथ ही सभी वर्गों का चहेता बन रहा है.इसे प्रोत्साहन मिल रहा है तो नए केन्द्र भी खुल रहे हैं. 1947 में जहां आल इंडिया रेडियो के केवल 6 स्टेशन थे, आज बढ़कर 223 हो गए हैं .इन केन्द्रों ने 99 फीसदी भारतीयों तक अपनी पहुंच बना ली है...ये किसी भी अच्छी या बुरी परिस्थितियों में त्वरित सूचनाएं संप्रेषित करने के लिए तैयार रहते हैं...कार -बस टैक्सी जैसे वाहनों एव ट्रेनों में प्रसारण की सुलभता ने रेडियो को और भी लुभावना बना दिया है..
रेडियों में कार्यक्रम पेश करने वाले आरजे और लेखकों को भी रोजगार का आधार दिया है..यहां क्रिएटिव राइटिंग के लिए कई मौके हैं. .यदि आप रेडियो के लिए वार्ताएं, कविता और कहानियां लिखते हैं तो आप यहां भेज सकते हैं, आपकी प्रस्तुतियों को पूरे भारत में एक साथ सुना जाता है..यह इकलौता ऐसा माध्यम है जिसे शहरों के साथ ही सूदूर गांवों में कहीं भी बैठकर या काम करते हुए आसानी से सुना जा सकता है. प्रसार का यह संचार माध्यम वाकई कमाल का है.

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