शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

जब जम्हूरियत से जन्नत में, आतंकी गले मिले.-.तो भारत कैसे न जले.

कविता..
 ...तो भारत कैसे न जले

कल कारखाने नित बंद हो रहे हैं यहां,
रोजी रोटी रोजगार हित हड़ताल है..
नोटबंदी, रेरा और जरिए जीएसटी यहां,
सरकार उद्यमों की खींच रही खाल है..
जब गांवों में बूझें चूल्हे, औ संसद उबले.
                       ..तो भारत कैसे न जले..1


राम औ रहीम, राष्ट्रवाद है फसाद बना,
आज सद्भाव पड़ रहा कमजोर है..
न्याय-नीतियों की यहां धज्जियां हैं उड़ रहीं,
नेता औ सिपाही हर कोई बना चोर है....
जब कर्ज और बदहाली से हलधर का दम निकले..
जब नेता हों मालामालऔ जनता भूखे पेट पले.
                                         ..तो भारत कैसे न जले...2



तीन सौ सत्तर की बेड़ियों से बंधा हुआ,
पाप ये सियासी भोग रहा कश्मीर है...
दहशत सीख रहा वादियों का नौनिहाल,
निज हथियार लिख रहा तकदीर है...
जब जम्हूरियत से जन्नत में
आतंकी गले मिले....
....तो भारत कैसे न जले...3

सारी वसुधा को जो कुंटुंब मानता रहा,
पड़ रही उस हिन्दुस्तान में दरार है..
विष भरे संत मौलवियों के बयानों से ही,       
आज कौमी एका हो रही ये तार तार है...
जब राजनीति ही गोवंशज- पहलू की जां निगले.

                                       ...तो भारत कैसे न जले...4

                          -सुधीर शर्मा

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