शनिवार, 2 जनवरी 2016

भारतीयों, निष्क्रिय लोकतंत्र की नींद से जागो

 कलाम के जरिए सुकरात ने भेजा संदेश
         
फोटो-गूगल से साभार

दुनिया में कुछ ऐसे लोग आए हैं जिन्होंने अपने विचारों और कार्यो से समाज को नयी दिशा और नयी चेतना दी है. जीने का नया रास्ता दिखाया. नयी सोंच के जरिए चीजों को नयी पहचान और परिभाषा दी. लोग पहले उन पर हंसते और तंज कसते थे लेकिन अब उनमें से कई लोग पूजे जाते हैं. दोस्तों उनमें से कईयों के नाम आप भी जानते हैं...बापू, गौतम, कबीर, सुकरात, मोहम्मद, ईसा आदि आदि आदि..एक विशेष इंटरव्यू में देश के पूर्व राष्ट्रपति एवं वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम से सवाल किया गया था कि यदि वे दिवंगत  दार्शनिक सुकरात से मिलेंगे तो उनसे क्या पूछना चाहेंगे.कलाम का जवाब था -

   भारत में अलग-अलग मतों और जातियों वाला 100 करोड़ से अधिक लोगों का लोकतंत्र है. इनमें से लाखों लोग संसद और विधायिका में चुने जाने के तरीके में माहिर हो चुके हैं. उन्होंने सत्ता में सदैव बने रहने का तंत्र भी विकसित कर लिया है. इनमें देश के सामान्य लोगों के  जीवन में किसी वास्तविक बदलाव की अपेक्षा सत्ता की पुर्नप्राप्ति से ज्यादा लगाव हो गया है. जबकि साधारण लोगों के पास इस दायरे को तोडऩे का कोई विकल्प नहीं है. आम लोग अपने परिवारों के लिए दो वक्त का भोजन जुटाने में मशरूफ हैं. इसलिए वे बगावत का झंडा उठाने में कमजोर और दब्बू हैं. निराशावाद ने उनके दिमाग को कुंठित कर दिया है. मुझे क्या करना चाहिए?
मिसाइल मैन कलाम ने सुकरात के हवाले से जवाब भी दिया..
-सुकरात मुझसे कहेंगे-जाओ और भारत के नौजवानों को बताओ कि वे सामाजिक सामंजस्य के साथ विकसित देश में रहने का विजन पैदा करें.  दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र के प्रबुद्ध नागरिक के तौर पर उठ खड़े हों. स्वार्थी शासक वर्ग की गुलामी से बाहर निकलें, निष्क्रिय लोकतंत्र की नींद से जागें. विकसित राष्ट्र के रुप में भारत की नियति के आविर्भाव की दिशा में आगे बढ़ें और हिन्दुस्तान के वैभव और सौभाग्य को मूर्त रुप देने का उत्तरदायित्व निभाएं.

म मीडिया इन्टेलिजेंस नेटवर्क के माध्यम से सुकरात का यही संदेश आप सब तक पहुचाना चाहते हैं .आप को बताना चाहते हैं कि बस अब बहुत हो गया. उठिए और भारत को विकसित राष्ट्र बनाने अपने सक्रिय और सकारात्मक योगदान में जुट जाइए. सावधान,क्योंकि आप का अपना देश भारत सम्प्रभुता और सुरक्षा के एक अदृश्य संकट से गुजर रहा है. इस संकट को दूर करने आप को सिपाही बनकर लडऩा है. हालात को ठीक करने का बीड़ा उठाना है. अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करनी है. मनमानी पर सवाल पूछना है. खोया हुआ हक मांगना है. मैं आह्वान करता हूं कि अब बैठें नहीं निकल पड़ो राष्ट्रचेतना के अभियान में मीडिया इन्टेलिजेंस के साथ, अपने यार-दोस्तों के साथ चमन के लिए -मादरे वतन के लिए..........

ऐसा मत सोंचो कि आप के एक अकेले करने से क्या होगा. बापू अहिंसा के मार्ग पर अकेले चले. मोहम्मद साहब ने नेकी के लिए अकेले कदम बढाया.  बाबा साहब आंबेडकर ने छुआछूत के खिलाफ अकेले लड़ाई शूरु की. फिर लोग आते गए और कारवां बढ़ता गया. उनमें और हममें सिर्फ एक अंतर है. उनमें हौसला था लडऩे का, आवाज उठाने का. उनमें हौसला था कुछ नया और बेहतर करने का. उन्होंने अपने हौसले पर संघर्ष किया. आप भी अपने हौसले को आजमा कर देखो. चमत्कार होने लगेगा. हौसले का सिर्फ एक दिया जलाकर तो देखो, चारो ओर रोशनी हो उठेगी. क्योंकि आप को देखकर कई और भी लोग होंगे जो अपने हौसले का दीया जलाएंगे. यकीन मानिए जैसे दिवाली में आप किसी को बोलने नहीं जाते कि छत पर दीया जला देना क्योंकि दिवाली हैं. फिर भी सब अपनी मुंडेर पर दिया खुद जला देते हैं और फिर आप देखते हैं कि पूरा मुहल्ला और पूरा शहर दिवाली की रोशनी में नहा जाता है.  मेरे कहने से एक बार हौसले का दिया जलाकर देखिए आप के आस-पास चारो ओर निर्भयता का उजियारा फैल जाएगा. जैसे ही हौसले का दिया जलेगा, मन में कुंठा और निराशा का जो अंधेरा भरा है वह छंट जाएगा. क्योंकि हौसले का दीया सिर्फ अंधेरा ही नहीं भगाता बल्कि आप को मजबूत भी करता है-आगे बढऩे के लिए, लडऩे के लिए, संकट और समस्याओं से मुकाबला करने के लिए. मीडिया इन्टेलिजेंस आप में हौसले का ऐसा ही दीया जलाने का एक प्रयास है. हम चाहते हैं कि आप भयभीत से निर्भीक बन जाएं. कमजोर से मजबूत बन जाएं. गंवार से होशियार बन जाएं. नागरिक से सिपाही बन जाएं...क्योंकि सिपाही केवल घर का नहीं होता, सिपाही तो वतन के लिए काम करता है. मुझे विश्वास है कि आज से आप ने मादरे वतन के लिए कुछ नया और बेहतर करने का संकल्प ले लिया है. मैं आपको इस साहसी अभियान की सफलता के लिए बधाई देता हूं..जयहिन्द. 

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