शनिवार, 2 जनवरी 2016

दीवारों पर बस कैलेन्डर बदला बदला है

शाम वही थी, सुबह वही, नया-नया क्या है
दीवारों पर बस कैलेन्डर बदला बदला है

उजड़ी गली, उबलती नाली, कच्चे-कच्चे घर
कितना हुआ विकास लिखा है केवल पोस्टर पर
पोखर नायक के चरित्र सा गंदला गंदला है..
दीवारों पर बस कैलेंडर बदला बदला है..

दुनिया वही, और वही है दुनियादारी भी
सुखदुख वही,वही जीवन की मारामारी भी
लूटपाट, चोरी मक्कारी धोखा घपला है
दीवारों पर बस कैलेंडर बदला बदला है...

शाम खुशी लाया खरीदकर ओढ़-ओढ़ कर जी
किंतु सुबह ने शबनम सी चादर समेट रख दी
सजा प्लास्टिक के फूलों से हर इक गमला है..
दीवारों पर बस कैलेंडर बदला बदला है

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