उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जैसे ही विधानसभा में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) की तर्ज पर माफिया और संगठित अपराध से निपटने के कड़े प्रावधान वाला विधेयक यूपीकोका पेश किया जानी दुश्मन बने भतीजे और बुआ का सुर एक हो गया. बहती गंगा में कांग्रेस ने भी हाथ धो लिया. सबने जोर की आवाज लगाई..हमें गुंडे बदमास चाहिए..यूपीकोका नहीं. गजब के हैं सन्यासी मुख्यमंत्री योगी जी उन्हें नहीं पता जिसे जनता का खून पसंद है उन्हें कोका या यूपीकोका कहां भाएगा..लेकिन ये ठहरे सन्यासी..सबकुछ छटपट सुधारने के पीछे पड़े हैं. वे नहीं जानते कि यूपी की जनता जो गुंडों मवालियों और अपहरणकर्ताओं माफियाओं के प्रभाव में जीने की आदी हो गयी है वह इतनी जल्दी भला आपका बदलाव कहां हजम कर पाएगी. यकीन नहीं हो रहा..तो .एन्टी रोमियो..का हश्र देख लीजिए..नादान थे योगी चले थे दूसरों की बहन बेटियों को सुरक्षित करने हालत ऐसी हो गयी कि मीडिया ने ऐसा घेरा कि उनकी खुद की कुर्सी सुरक्षित रखनी भारी पड़ गयी. हारकर एन्टी रोमियों अभियान से एन्टी होना पड़ गया. खैर बात यूपीकोका की हो रही है, जिसको लेकर यूपी की बुआ और भतीजे आजकल एक हो गए हैं. जो विकास के नाम पर एकजुट नहीं हुए वे यूपीकोका पर एक हो गए हैं.एक सुर में राग अलाप रहे हैं तो कुछ तो बात होगी. जानकार तो यही कहते हैं कि जिन पार्टियों की नींव में गुंडे बदमास और माफिए कंधा लगाकर खड़े हों वे भला ऐसे यूपीकोका का विरोध नहीं तो क्या योगी का अभिनंदन करेंगे. तो क्या वाकई योगी का कानून समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी या कांग्रेस के खिलाफ है..
जरा एक नजर डालते हैं..आप भी देखिए
सीएम योगी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण (यूपीकोका) विधेयक 2017 में आतंक फैलाने या बलपूर्वक, हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विस्फोटकों या अन्य हिंसात्मक साधनों का प्रयोग कर किसी की जान या संपत्ति को नष्ट करने या राष्ट्र विरोधी, अन्य लोक प्राधिकारी को मौत की धमकी देकर या बर्बाद कर देने की धमकी देकर फिरौती के लिए बाध्य करने के खिलाफ कड़े प्रावधान हैं। संगठित अपराध के खतरे को नियंत्रित करने के लिए संपत्ति की कुर्की, रिमांड की प्रक्रिया, अपराध नियंत्रण प्रक्रिया, त्वरित विचार एवं न्याय के मकसद से विशेष न्यायालयों के गठन और विशेष अभियोजकों की नियुक्ति तथा अनुसंधान संबंधी प्रक्रियाओं को कड़े एवं निवारक प्रावधानों के साथ यह विशेष कानून अधिनियमित किया गया है। फिरौती के लिए अपहरण, सरकारी ठेके में शक्ति प्रदर्शन, खाली या विवादित सरकारी भूमि या भवन पर जाली दस्तावेजों के जरिए या बलपूर्वक कब्जा, बाजार और फुटपाथ विक्रेताओं से अवैध वसूली, शक्ति का प्रयोग कर अवैध खनन, धमकी या वन्यजीव व्यापार, धन की हेराफेरी, मानव तस्करी, नकली दवाओं या अवैध शराब का कारोबार, मादक द्रव्यों की तस्करी आदि को इसके अंतर्गत रखा गया है। विधेयक में संगठित अपराध के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। उपरोक्त प्रावधानों से ऐसा नहीं लगता कि यह किसी खास दल या समूह के खिलाफ है लेकिन सपा और बसपा दोनों इसका विरोध कर रहे हैं. कारण साफ है यूपी में अधिकांश माफिया और भूमि हड़पने के मामले इन दो पार्टियों से ही जुड़े हैं. दोनों दलों के नेता जानते हैं कि यदि कानून लागू हुआ तो उनके लिए चुनावी फंड देने वाले सबसे पहले जेल की सलाखों के पीछे होंगे. यूपीकोका को गलत ठहराने वालों का कानून और न्याय व्यवस्था में विश्वास नहीं दिखता. उन्हें यह तो जरूर मानना चाहिए कि यदि यूपीकोका का गलत इस्तेमाल हुआ तो अदालतों में उसे चुनौती दी जा सकेगी.और यह यूपी सरकार के लिए बड़ी कसौटी होगी. संभव है इसका राजनीतिक इस्तेमाल हो लेकिन इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी जा सकती है.फिर हो हल्ला की जरूरत क्या है.
अखिलेश का तंज, बहन जी का डर...कानून का मजाक ..
यूपीकोका नहीं ये धोखा है। फर्नीचर साफ करने के पाउडर को PETN विस्फोटक बताने वाले जनता को बहकाने में माहिर हैं । 9 महीनों में बीजेपी ने जन सुरक्षा से खिलवाड़ करते हुए न सिर्फ समाजवादी 'यूपी100' और महिला सुरक्षा की '1090 हेल्पलाइन' को ,बल्कि समाजवादी विकास पथ पर बढ़ते प्रदेश को रोका है। अखिलेश यादव ने यूपीकोका पर ट्वीट किया कि नए साल में जनता को उत्तर प्रदेश सरकार का तोहफा, सेल्फी लेने पर लग सकता है यूपीकोका। वहीं बसपा सुप्रीमो भी इसे राजनीतिक द्वेष का हथियार बता रही हैं, जिनसे उन्हें बड़ा खतरा पैदा हो गया है.
जब न्याय विभाग ने बनाया कानून तो एतराज क्यूं
उच्च न्यायालय में संगठित अपराधियों, माफियाओं और अन्य सफेदपोश अपराधियों की गतिविधियों पर नियंत्रण के सम्बन्ध में दायर याचिका पर 12 जुलाई 2006 को पारित आदेश के क्रम में माफिया की गतिविधियों तथा राज्य सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप पर अंकुश लगाने के लिए कानून का प्रारूप न्याय विभाग की सहमति से तैयार किया गया है। इस विधेयक में 28 ऐसे प्रावधान हैं, जो पहले से लागू गैंगस्टर ऐक्ट में शामिल नहीं हैं। प्रस्तावित कानून के तहत दर्ज मुकदमों की सुनवाई के लिये विशेष अदालतें बनेंगी। विधेयक के परीक्षण के लिए गृह विभाग के सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी। समिति द्वारा परीक्षण के दौरान उच्च न्यायालय के पारित निर्णय तथा महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून-1999 (मकोका) का भी गहन अध्ययन करके इस विधेयक का प्रारुप तैयार किया गया है। राज्य संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण खुद संज्ञान लेकर अथवा शिकायत होने पर संगठित अपराधियों की गतिविधियों की छानबीन करेगा और इसके लिए प्राधिकरण शासन की कोई भी फाइल देखने के लिये अधिकृत होगा।

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