साहिर लुधियानवी का एक शेर सच लगता है फुटपाथ हर, गली का हर आशियां हमारा, रहने को घर नहीं है सारा जहां हमारा. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में लाखों लोग इसी हालत में जिंदा हैं. आजादी के 71 सालों बाद भी बापू के रामराज्य और लोहिया के समाजवाद के सच से दूर किसी कल्पना में..फंटासी में. इसके लिए दोषी चाहे नेता हों, मंत्री या सरकार लेकिन इतना तो सच है कि स्वाधीनता की आधी सदी से ज्यादा गुजरने के बाद भी देश का आम आदमी आज भी रोटी-कपड़ा और मकान की जद्दो जहद में लगा है. रात का चूल्हा जलाने के लिए सुबह से नाका-चौराहों पर हाथ फैलाए खड़ा रहता है. एक अदद छत की तंगी में सडक़ फुटपाथों पर सोता है. रोजी की बदहाली से रातों को फांका करता है..बच्चों से भीख मंगवाता है, और खुद भी हाथ फैलाने को मजबूर होता है.
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| गूगल से साभार |
चंद मिनटों की खरीदी गयी चंद कदमों की कलाओं पर मुलायम ने करोड़ों लुटा डाले और खुले बेछत शिविरों में बच्चे बिलखते रहे भर पेट भात के लिए, छटाक भर दूध के लिए और एक चटाई छत के लिए. इस भय के साथ कि सोते हुए कोई गरदन न उतार ले जाए..क्या बहुत ज्यादा मांगते हैं हूजूर..सच कहना. लेकिन राजा होकर भी तो आखिर कुछ नहीं दिया आपने..उस रियाया के लिए, जिसके वोट पर आप नरेश बने..मायावती जिसे सब बहनजी कहते हैं. लेकिन ऐसी बहन हैं जिन्हें यूपी के सड़क फुटपाथों और गलियारों में फांका करता कोई भावी आंबेडकर नहीं दिखता. बहुमत की जीत के बाद आपने जनता को दलित-पीड़ित और भाई-बहन कहा..लेकिन कुर्सी और सत्ता की चकाचौंध ऐसी चली कि आपने अपनी दीन-दलित रियाया की भूख और बीमारी मिटाना भूलकर खुद का बुत बनाने बैठ गयीं..एक तरफ अवाम नून तेल के लिए पैसे-पैसे को तरसती रही, और आप नोटों का नवलखा हार पहनकर खूब इतरार्इं..
अंग्रेजों से आजादी दिलाने वाली कांग्रेस के युवराज आप ने भी कमाल कर दिया..आप सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं लेकिन जब आपने गरीबों की वकालत और राजनीति शुरू की तो लगा कि आप कुछ और करने की सोंच रहे हैं लेकिन सच में आपने भी वही किया.आप दलितों, मुस्लिमों और हिन्दुओं के बीच नयी खाई बना रहे हैं. आप के परिवार की यही रीत रही है. आप रीत को आगे बढ़ा रहे हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि यह खाई जितनी बड़ी होगी आप की जीत का सिलसिला उतना ही गहराता जाएगा....आम लोगों में उजले भविष्य का सपना जगाकर आपने बची अस्मत भी लूट ली. अब तो आम आदमी भी केजरीवाल के पास चला गया. और केजरीवाल जी आम से अचानक खास हो गए हैं. आप चूल्हे की आग छीनने में लगे हैं. मसीहा बने फिर रहे हैं. यूपी में एक सन्यासी के हाथ में सत्ता है. वह कहते हैं कि उन्हें कोई लालच और आसक्ति नहीं. फिर सीएम की कुर्सी पर बैठकर शासन करना सत्ता लोलुपता नहीं क्या है.खैर खजाने से जनता की सेवा कितना करेंगे यह परीक्षा होनी बाकी है. आप के सन्यास और त्याग की कसौटी बाकी है.
परीक्षा देश के मुखिया और नए सम्राट की भी है जो दो कदम और आगे तक सोंचते हैं. सपनों के भंवर में यात्रा करा रहे हैं. खुशहाली और अच्छे दिनों के सपने बेचते हैं ..लेकिन असल हालात पर इनका काबू नहीं है. महंगाई और बेकारी का कलंक लगना ही है. नारों और आश्वासनों की अफीम चटाने वाले ऐ मसीहाओं सुनो! आप जनता के पैसों पर विदेश जाते हो, वहां का लोकतंत्र देखने. लेकिन यहां अपने रियाया की सिसकियां नहीं सुनते..उनके आंसू नहीं देखते? विदेशों की धरती पर कुछ होते ही तुम ट्विटर पर संवेदना और संदेश लिखते हो लेकिन अपने लोगों का दर्द देखकर आपको दर्द तक नहीं होता...क्यों होना चाहिए..आखिर कुछ भी तो नहीं होता. लोग मार डाले जाएं, क्या हो गया. घर जला दिए जाएं, क्या हो गया? उजाड़ दिए जाएं, क्या हो गया? 125 करोड़ की आबादी वाले देश में 100-पचास को मार दिया जाना, सैकड़ों का उजाड़ दिया जाना, क्या होता है? क्यों मचनी चाहिए खलबली.
आप अपने जन्म दिन पर करोड़ों फूंक डालते हैं. आप की उड़ रही सोखियों के बीच हजारों मांएं चूल्हे की आंच पर गिन रही होती हैं रोटियां..अम्मा लगाती रहती है हिसाब कि जले हुए मकान पर फूस डालने के लिए कितने वक्त और काटनी होगी बच्चों की पेट.
आखिर लोकतंत्र इतना बेचारा कैसा हो गया है, जहां एक तरफ लोग भूख और बेकारी से मर रहे हैं वहीं कोई ऐश कर रहा है..इस समाजवाद का मतलब क्या है. संविधान की दी हुई चुनावी नियामतों के जरिए जनता का शासक बनने वाले नेताओं के लिए जनता का मतलब क्या केवल वोट लेना है.. .सच कहो हाकिमों, क्या वाकई हमारे बच्चों की तरसती आंखें आपसे अपना होने का हिसाब नहीं मांगती हैं, जब आप सम्राट बनकर इतराते हो और उनकी अंतड़ियां भूख से बिलबिलाती हैं. लोक तंत्र और समाजवाद के विधाताओं बताओ ना, अगर यह मुल्क मेरा भी है तो मेरा लगता क्यूं नहीं?

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