(26-11 की त्रासदी के बाद शब्दों में उतरी हुई एक वेदना)
वो निज देश हित पाक से दौड़ आए
घुसे ताज में कितना तांडव मचाए
कई जानें ली,खून कितना बहाए
कई गोद, माँगों को सूना बनाए..
कई गोद, माँगों को सूना बनाए..
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पर अपुन सोचते क्यों मुसीबत बढाएं.
निरर्थक ही पैसा-समय क्यों गवाएं॥
व्यवस्था से क्यों ब्यर्थ पंगा लड़ाएं,
जो खाली हैं वे खुद करें या कराएं ।
यही है वजह जिससे मुश्किल बढ़ी है.
हैं कहते सभी बस हमें क्या पड़ी है ॥
हैं सब सोचते कोई आएगा पहले.
सोते हुओं को जगाएगा पहले ।
संकट हमारा मिटाएगा पहले ,
नया रास्ता खुद दिखाएगा पहले ॥
बताओ यही हाल कब तक चलेगा.
मिटाए बिना मर्ज कब तक मिटेगा,
बिना बीज बोए कहां फल मिलेगा
पतित हो रहा हिन्द कैसा उठेगा ॥
अब केवल नहीं काम कहने से होगा,
ना नेता, नियति को उलहने से होगा.
झुका शीश हरदम न सहने से होगा
स्वयम के लिए स्वयं करने से होगा॥
ये है देश अपना बताना पड़ेगा .
यहां फर्ज सबको निभाना पड़ेगा,
जरूरत पड़ी जख्म खाना पड़ेगा
लहू देश हित निज बहाना पड़ेगा
चिता भी स्वयं की सजाना पड़ेगा
औ रोते हुए गीत गाना पड़ेगा ॥
आओ पहल आज मिलकर करें हम
जहां जुल्म होवे,हों मिलकर खड़े हम
सबको लिए साथ मिलकर चलें हम.....
-सुधीर शर्मा-

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