गुरुवार, 6 मार्च 2014

वोट के लिए रुक जाओ, मुलुक न जाओ


उत्तरभारतीय मतदाताओं को लुभा रहे राजनेता 

प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी 
24 अप्रैल को घोषित आम चुनावों को लेकर सभी दल हार -जीत का गणित बिठाने लगे हैं, ऐसे में उन्हें उत्तर भारतीय मतदाताओं का अस्तित्व समझ आने लगा है. वो उत्तर भारतीय जिनके दम पर मुंबई -ठाणे में प्रत्याशियों का भविष्य तय होता है. हालांकि उत्तर भारतीय सिर्फ वोटों के लिए इस्तेमाल किए जाने से चिढ़े और गुस्से में हैं. इसलिए उन्हें मनाने, फुसलाने के प्रयास जोर पकडऩे लगे हैं. चुनाव सर पर है फलस्वरूप राजनीतिक दलों को उत्तर भारतीय मतदाता कमाऊ पूत की तरह दिखने लगे हैं. 24 अप्रैल को तय चुनाव में उनके मतों का फायदा मिल सके इसलिए उन्हें गांव जाने से रोकने की कोशिशें भी तेज हो गयी हैं. लुभाने वाली पार्टियों में एनसीपी सबसे आगे जबकि शिवसेना,कांग्रेस और सपा उसके पीछे हैं. सुत्रों का दावा है कि मराठी माणूस में कमजोर होती जा रही पकड़ देखते हुए मनसे भी उत्तरभारतीयों में घुसपैठ बनाने में जुट गयी है.
मुलुक नहीं गए तो मिलेगा मकान!
सूत्रों की मानें तो नवी मुंबई और ठाणे में रहने वाले हजारों उत्तर भारतीयों को रोकने के लिए कई तरह के प्रलोभन दिए जा रहे हैं. जिसमें मुलुक आने-जाने के लिए कन्फर्म रेलवे टिकट, बच्चों के लिए 2 महीनों की फीस,नकद रूपए, और मोटर साइकल शामिल है.सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि जिन लोगों के साथ 100 से अधिक समर्थक या सोसायटी का कन्फर्म वोट बैंक है "उन्हें" वन रुम किचन वाले मकान का भी आफर दिया जा रहा है. जाहिर है यह सब वोट हथियाने का हथकंडा है. सूत्रों की मानें तो इसका फायदा उठाने के लिए कई मरणासन्न हिन्दी भाषी संगठन अचानक जिंदा हो उठे हैं, और जगह-जगह सभा समारोहों का आयोजन कर नेताओं को अपने वोट बैंक की झलक दिखाने के प्रयास में जुटे हैं.
हिन्दी भाषियों के सहारे हार-जीत 
गौरतलब है कि मुंबई,ठाणे तथा रायगढ़ में उत्तर भारतीयों की आबादी तकरीबन 7 लाख है जो किसी भी पार्टी की हार-जीत का राजनीतिक समीकरण बिगाडऩे की औकात रखती है. यही वजह है कि राकां,कांग्रेस, शिवसेना और समाजवादी सभी पार्टियां हिन्दी भाषियों को लुभाने की कवायद में जुटी हैं. प्रलोभन के साथ उन्हें जबरन रोकने की कोशिश भी की जा रही है ताकि वे मुलुक न भाग सकें.उन्हें रोकने में लोभी हिन्दी भाषी नेता मोहरा बन रहे हैं. हाल ही में ठाणे के पालकमंत्री गणेश नाईक ने चुनाव तक उत्तर भारतीयों को हर हाल में रोकने का खुला निर्देश दिया था. उन्होंने यहां तक कहा था कि वोट देने के बाद जाने वालों को मुलुक का कन्फर्म टिकट वे खुद देंगे. लेकिन असली सवाल ये है  जिन शादी-विवाह आदि पारिवारिक संस्कारों से उत्तर भारतीय जुड़े हैं उसे नेताओं के राजनीतिक फायदे के लिए छोड़ देना कितना जायज है. हकीकत ये भी है कि कुछ लोग पैसों के लोभ और बहकावे में अपने परिवार और संस्कारों को तिलांजलि दे रहे हैं.

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