मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

मॅनी के लिए मेहनत करते मासूम

एक गाना याद आता है नन्हे-मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है,जवाब है, मुट्ठी में है तकदीर तुम्हारी..इस गाने से उलट शहर के गली-मुहल्लों में कचरा चुनते और भीख मांगते कुछ बच्चों को देखकर सवाल उठता है कि अगर मुट्टी में तकदीर है तो फिर देश के इन नौनिहालों को खेलने की उम्र में जीने के लिए यूं मशक्कत क्यों करनी पड़ रही...नेरुल का मोनू, सानपाड़ा की रोशनी और वाशी सिग्नल का छोटू, सब बेहाल हैं. ये वो मासूम हैं जिनके नाम भले अलग हैं लेकिन हालात एक जैसे. पुर्व प्रधानमंत्री चाचा नेहरू बच्चों को देश का भविष्य मानते थे. लेकिन आज इस देश में छोटू व मोनू जैसे न जाने कितने ही नौनिहाल हैं जो घर की गरीबी, पेट की भूख और बेबशी के लिए अपने भविष्य को बेचने के लिए मजबूर हैं. देश के कानून और कल्याण योजनाओं से अछूते. अपनी मजबूरी में, मुफलिसी में, बेबस मां-बाप और परिवार के साथ. ये दिन रात मेहनत करते हैं ताकि अंधेर रातों में घर का चूल्हा जल सके.


पढ़ लिया तो धंधे पर जाओ

CHHOTU (SIRAJ)

 अब जरा इस छोटू से मिल लिजिए. 13 साल का छोटू नेरूल के  मनपा स्कूल में पढ़ाई करता है, दूसरे बच्चों की तरह खेल-कूद, मौज-मस्ती उसे भी पसंद है लेकिन आर्थिक तंगी में कई भाई-बहनों की परवरिश कर रहे पिता शरीफ के लिए वह छोटे हाथ वाला मदद का मसीहा है. स्कू ल से लौटने पर बस्ता रखने के बाद संध्या पाली को घर लौटने वाले छात्रों के लिए स्कूल के पास कैन्डी बेचना उसका रोज का धंधा है. छोटू रुआंसा हो बतलाता है कि स्कूल से आने के बाद उसका बाप कहता है पढ़ के आ गया अब धंधे पे निकल जा...खेलने की चाहत और न जाने की मनसा के बावजूद भी परिजनों की परवरिश कर रहे बाप का फरमान मानकर निकलना उसकी मजबूरी है. भाड़े की खोली में मां-बाप का बनाया कैन्डी का पैकेट लिए  वह कभी नेरूल, शिरवणे तो कभी वाशी या सानपाड़ा के स्कूल-उद्यानों और गली-मुहल्लों की खाक छानता है.

रोटी के लिए भटकना पड़ता है साब!

          जमीन से 15 फूट उपर पतली रस्सी पर एक पांव पर झूलती हुई रोशनी किसी स्कूल में नहीं जाती लेकिन लोहे की रिंग और रस्सियों पर सर्कस का खेल दिखाकर अपने परिवार के लिए रोज सौ-दो सौ कमा लेती है. स्कूल क्यों नहीं जाती, इस सवाल पर वो खामोश हो जाती है लेकिन उसका बाप भगीरथ बोलता है- साब गरीब हैं, काम नहीं करेंगे तो घर कैसे चलेगा. जीने के लिए पैसे नहीं फिर बच्चे कैसे पढ़ाएं.  6 साल के मोनू की कहानी भी इससे जुदा नहीं. मोनू इलाहाबाद के संगम तट पर प्लास्टिक के  डिब्बे बेचते हुए मिला था. उसे पाठशाला का नहीं पता. ठीक से अपना नाम भी नहीं बोल पाता लेकिन यहां गंगा घाट पर पाप धोने आने वालों से कहता है-डिब्बा ले लो भाई, गंगा जल भर लेना. महीनों तक चले आस्था के महामेले में वह भीख नहीं मांगा  बल्कि मनी के लिए मेहनत करता रहा. हालांकि उससे अलग शहर की सड़कों पर ऐसे कितने ही मोनू रोज दिखते हैं जो हथेलियों पर 1-2 रूपए पाने भीख मांगते हैं,आने-जाने वाली गाडिय़ों का शीशा पोछते हैं. भूखे पेट को भरने के लिए मदद  की याचना करते हैं. नंगे बदन , फटे-फुटे चिथड़े में..ये आने वाले भारत के भविष्य हैं.....
आधा दिन: पूरे घर की कमाई
Kishan-Vishal-Rajesh
अब इन तीन और स्कूली बच्चों को भी देख लीजिये। ये हैं राजेश, किशन और विशाल। तीनों महानगर पालिका विद्यालय में पढ़ते हैं. स्कूल से निकलने के बाद घर आते-आते 12- से एक बज  जाते हैं.  आधे दिन के  बाद  इनकी जिन्दगी की असली जद्दोजहद शुरू होती है.  दोपहर बाद एपीएमसी मार्केट में आते हैं. बड़े व्यापारियों के यहाँ से सस्ती सब्जियां और फल चुनते हैं. एक साथ बजार के सामने दुकान लगाते  हैं. माल बिका तो 100 से 200 रूपए कमा लेते हैं.  स्कूल ड्रेस में धंधे का रोज यही वसूल चलता है. ये भी भीख नहीं मांगते , मेहनत करते हैं। आधे दिन में पूरे परिवार की कमाई का जरिया है, इनका कारोबार। सस्ता और बच्चा समझकर लोग फल सब्जियां खरीद लेते हैं. जिस पर परिवार की गाड़ी चलती है। नौनिहालों की यह  कहानी देश की  आजादी के ६५ साल बाद की है. बहरहाल रोशनी का सर्कस बड़े-बच्चों को खूब लुभाता है, छोटू की कैंडी सबको पसंद आती है, लेकिन इनके मेहनत के  पीछे  आधी सदी की आजादी का दिवालियापन, दिन-दिन भर भटकने का दर्द, मौज-मनोरंजन की बजाय मुफलिसी  और मजबूरी भी साफ झलकती है. कभी नजदीक से मनी के लिए मेहनत करते इन मासूमों से रुबरू होकर आप भी अंदाजा लगाइयेगा, तब शायद आपको भी हिन्दुस्तान की 67 सालों की स्वाधीनता पर कोफ्त आ जाए

मन कहे रुक जा रे रुक जा यहीं पे कहीं....


ये बात हवाओंं को बताए रखना, इस तिरंगे को अपने दिल में बसाए रखना..बेलापुर मनपा मुख्यालय के समीप से होकर पामबीच रोड से मुंबई-पुणे की ओर गुजरने वाले हर शख्स का दिल यहां से गुजरते हुए गुनगुनाने लगता है. रुक जा रे रुक जा दिल, तू मेरे यहीं, जो बात इस जगह है कहीं पे नहीं. सच में मन कहता है कुछ पलों के लिए यहीं ठहर जाएं, खड़े होकर खिंचवा लें एक तस्वीर ताकि यादगार बन जाए वह लम्हा कि हिन्दुस्तान के सबसे ऊंचे ध्वज स्तंभ पर तिरंगे को इतराते हुए देखा है. 225 फुट के ऊंचे ध्वज स्तंभ पर फहरते इस राष्ट्रीय ध्वज की लंबाई 70 फुट एवं चौड़ाई 50 फुट है.टेलीफैब्रिक क्लॉथ से निर्मित इस ध्वज का कुल वजन 40 किलोग्राम है.जी हां, मनपा मुख्यालय पर लहराता हुआ यही राष्ट्रध्वज नवी मुंबई की शान बन रहा है.
भर आती हैं आखें, उभर आता है देशप्रेम
 नवी मुंबई के बेलबूटे में सम्मान का यह नया सितारा है जिसे पूर्व सांसद संजीव नाईक ने जड़ा है. 19 फरवरी 2014 को तत्कालीन केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने इसका उद्घाटन करते हुए जब  ध्वजारोहण किया तब देशाभिमान से उनकी भी आंखें डबडबा गयी थी.यहां मौजूद हजारों लोगों के नैन भी राष्ट्रीय स्वाभिमान से छलक  उठे थे. उपर उठते झंडे के साथ मादरे-वतन को बुलंदियों पर देखने का अरमान भी ऊंचा उठता चला गया था. आज भी इसे देखकर स्वाधीनता के गर्व से सीना फूलता है.इस स्वाधीनता, संप्रभुता और उमड़ते राष्ट्रप्रेम का गवाह बन रही है नवी मुंबई. यह तिरंगा हजारों आगंतुकों के लिए प्रेरक बन रहा है. यकीनन आज जब भी इधर से गुजरेंगे, बुलंदियों पर इसे लहराते देख आप भी बरबश गुनगुना उठेंगे..विजयी विश्व तिरंगा प्यारा.झंडा ऊंचा रहे हमारा....

वतन वापसी के लिए छटपटा रहे कश्मीरी पंडित


 बुलंद हो रही कश्मीरी पंडितों की आ‍वाज
सरकार से मांग रहे अपना मादरे वतन 

अपने ही देश में रिफ्यूजी बन कर रहने का दंश झेल रहे  कश्मीरी पंडित एक बार फिर मादरे वतन के लिए अपनी आवाज बुलंद करने में जुट गए हैं.शनिवार को फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने कश्मीरी पंडितों के लिए अलग कालोनी, और पुनवर्सन की मांग कर उनकी आवाज को नया हौसला दे दिया है.अनुपम खेर खुद कश्मीरी पंडित हैं, उनकी पत्नी फिलहाल भाजपा की सांसद हैं. ऐसे में अनुपम खेर की मांग केन्द्र की भाजपा नित मोदी सरकार तक जाएगी ऐसा संकेत मिल रहा है. वे तो यहां तक कह गए कि कश्मीर से धारा 370 को हटाए बिना वादी का भला नहीं हो सकता. खेर धारा 370 को कश्मीर के विकास में बड़ी बाधा मानते हैं, जिससे कश्मीरी पंडितों को अपना वतन छोड़ कर आतंकी नासूर के कारण पलायन करना पड़ रहा है. 2015 के जुलाई माह में झमाझम बरसात के दौरान नवी मुंंबई के शिवाजी चौक पर धरना प्रदर्शन कर कुछ कश्मीरी पंडितों ने  केन्द्र सरकार से अपनी वतन वापसी का इंतजाम करने की मांग की थी. वे कहते हैं कि  जिस कश्मीर को खून से सींचा, वह कश्मीर हमारा है, हम होमलैंड लेकर रहेंगे . हम अपना होमलैंड छीन के रहेंगे. नारा भी गूंजता है कि मर के लेंगे होमलैंड, मार के लेंगे होमलैंड . कश्मीरी पंडित मानते हैं कि  अलगाववादी नेता यासिन मलिक तथा गिलानी को फांसी देकर कश्मीर को आजाद किया जा सकता है क्योंकि यही लोग कश्मीरी पंडितों का खून बहाने के लिए आतंकियों को उकसा रहे हैं. कश्मीरी पंडित एसोएिसशन एवं पणून कश्मीर संस्था के  महासचिव अश्विनी भट्ट ने कहा कि पिछले 25 सालों से 7 लाख से अधिक कश्मीरी पंडित अपने मादरे वतन से बिछड़े हैं. हमें वतन वापसी करनी है, लेकिन वहां अलगाववादी हुरियत नेताओं एवं राष्ट्रविरोधी लोगों ने कश्मीरी पंडितों के लिए मुसीबत खड़ी कर रखी है.
अपने ही वतन में हैं पराए कश्मीरी पंडित 
प्रदर्शनकारी कश्मीरी पंडितों ने कहा कि हम अपने ही प्रांत में दर-बदर हैं.  केन्द्र की मोदी सरकार ने हमारा वतन दिलाने का वादा किया था लेकिन पीडीपी के नेतृत्व वाली सरकार के कुछ नेताओं एवं राष्ट्रविरोधी ताकतों ने उसमें अडंगा लगा दिया है. यासिन मलिक तथा गिलानी को कश्मीर का दुश्मन बताते हुए अश्विनी भट्ट ने कहा कि वे कहते हैं कि कश्मीरी पंडित आएंगे तो वहां की जमीनों पर कब्जा कर लेंगे. जबकि सच्चाई ये है कि कश्मीर को हमने अपना खून पसीना लगाकर सींचा है, वो हमारी जमीन है. उस पर कब्जा जमाने का सवाल कहां से आया.  एक अन्य पदाधिकारी अनिल टीकू ने कहा, पहले जो मुस्लिम हमारे खेतों में मजदूरी करते थे, आज वे हमारी जमीनों के मालिक बन कर बैठ गए हैं , और हम लाखों कश्मीरी पंडित बेवतन होकर भटक रहे हैं.