एक गाना याद आता है नन्हे-मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है,जवाब है, मुट्ठी में है तकदीर तुम्हारी..इस गाने से उलट शहर के गली-मुहल्लों में कचरा चुनते और भीख मांगते कुछ बच्चों को देखकर सवाल उठता है कि अगर मुट्टी में तकदीर है तो फिर देश के इन नौनिहालों को खेलने की उम्र में जीने के लिए यूं मशक्कत क्यों करनी पड़ रही...नेरुल का मोनू, सानपाड़ा की रोशनी और वाशी सिग्नल का छोटू, सब बेहाल हैं. ये वो मासूम हैं जिनके नाम भले अलग हैं लेकिन हालात एक जैसे. पुर्व प्रधानमंत्री चाचा नेहरू बच्चों को देश का भविष्य मानते थे. लेकिन आज इस देश में छोटू व मोनू जैसे न जाने कितने ही नौनिहाल हैं जो घर की गरीबी, पेट की भूख और बेबशी के लिए अपने भविष्य को बेचने के लिए मजबूर हैं. देश के कानून और कल्याण योजनाओं से अछूते. अपनी मजबूरी में, मुफलिसी में, बेबस मां-बाप और परिवार के साथ. ये दिन रात मेहनत करते हैं ताकि अंधेर रातों में घर का चूल्हा जल सके.
पढ़ लिया तो धंधे पर जाओ
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| CHHOTU (SIRAJ) |
रोटी के लिए भटकना पड़ता है साब!
जमीन से 15 फूट उपर पतली रस्सी पर एक पांव पर झूलती हुई रोशनी किसी स्कूल में नहीं जाती लेकिन लोहे की रिंग और रस्सियों पर सर्कस का खेल दिखाकर अपने परिवार के लिए रोज सौ-दो सौ कमा लेती है. स्कूल क्यों नहीं जाती, इस सवाल पर वो खामोश हो जाती है लेकिन उसका बाप भगीरथ बोलता है- साब गरीब हैं, काम नहीं करेंगे तो घर कैसे चलेगा. जीने के लिए पैसे नहीं फिर बच्चे कैसे पढ़ाएं. 6 साल के मोनू की कहानी भी इससे जुदा नहीं. मोनू इलाहाबाद के संगम तट पर प्लास्टिक के डिब्बे बेचते हुए मिला था. उसे पाठशाला का नहीं पता. ठीक से अपना नाम भी नहीं बोल पाता लेकिन यहां गंगा घाट पर पाप धोने आने वालों से कहता है-डिब्बा ले लो भाई, गंगा जल भर लेना. महीनों तक चले आस्था के महामेले में वह भीख नहीं मांगा बल्कि मनी के लिए मेहनत करता रहा. हालांकि उससे अलग शहर की सड़कों पर ऐसे कितने ही मोनू रोज दिखते हैं जो हथेलियों पर 1-2 रूपए पाने भीख मांगते हैं,आने-जाने वाली गाडिय़ों का शीशा पोछते हैं. भूखे पेट को भरने के लिए मदद की याचना करते हैं. नंगे बदन , फटे-फुटे चिथड़े में..ये आने वाले भारत के भविष्य हैं.....
आधा दिन: पूरे घर की कमाई
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| Kishan-Vishal-Rajesh |


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