मंगलवार, 10 जुलाई 2018

मां अभी जिन्दा है-कविता-सुधीर शर्मा


जगत में मां से बढ़कर कौन प्यारा।
कि जिसने ये दिखाया विश्व न्यारा ।।
माता जी की पुण्यतिथि पर शब्दसुमन


न कोई स्नेह का तिस पार पाया
कहां जो ऋण कोई है तार पाया।
ये सारी सृष्टि ही उसपर खड़ी है।
तभी तो स्वर्ग से जननी बड़ी है।।


उसी के स्नेह से खिलते हैं बच्चे
दर ओ दीवार भी लगते हैं अच्छे
जो घर में है तो, दीवाली लगे है
नहीं जो मां तो घर खाली लगे है।।



मेरा मन मां को केवल ढूंढता है 
यहां बिन मां ना कोई पूछता है
सुनो अब 'वो नहीं' कहती घड़ी है।।
मकां में बस यहां यादें पड़ी हैं।।

चला जाता है जो ना लौट पाया।
यही तो सृष्टि की अद्भुत है माया             

अभी जो साथ है, कब छोड़ जाए
कि जाने कौन, कब मुंह मोड़ जाए
तो सबके साथ सादर मिल रहो ना.
कि जाने कब किसी से भेंट हो ना

है जीवन बस यहां मोटर औ गाड़ी
 कि सब हैं खींचते अव्वल अनाड़ी
   चले इस पर न जादू, कोई मंतर
   ना जाने किस डगर हो जाए पंचर।।
   
 सदा मां बस ये समझाती रही हैं       
   जिएं कैसे ये सिखलाती रही हैं।
   मगर अफसोस, हम न जान पाए.
 ना मां का हम हृदय पहचान पाए।।
                                                       
प्रतीकात्मक फोटो- गूगल से साभार
 पुनः मां को मैं पाना चाहता हूँ   
कि उनके 'हाथ' खाना चाहता हूँ
कि ढूंढे मां को है अक्सर निगाहें
आ के आगोश में भरले जो बाहें।।

लगा तब बोलने पोपट परिन्दा।
वो नादां, अब न तेरी मां है जिंदा
फकत अहसास है मिट्टी मकां में,
अगर पाना है, तुम ढूंढो हवा में।।


तभी बनकर हवा बहने लगी मां
मेरे 'अंतर' से कुछ कहने लगी मां
हकीकत मां की न जाने परिन्दा
मैं बच्चों में सदा रहती हूँ जिन्दा ।।

लगी महसूस होने, आस में मां
मेरी हर श्वांस में, विश्वास में मां
रगों में रक्त बन, बहने लगीं वे,
मेरे 'अंतर' से फिर कहने लगीं वे।

मेरे आशीष की तुझ पर लड़ी है।।
लगा कि मां तेरे सम्मुख खड़ी है।।

ये सारी सृष्टि ही उस पर खड़ी है।
कि मां तू स्वर्ग से सचमुच बड़ी है।।....

रविवार, 18 मार्च 2018

जीयो और जीने दो का संदेश देने वाले जैन धर्म के आखिरी तीर्थंकर स्वामी महावीर

 29 मार्च 2018 जयंती पर विशेष-( ऑल इंडिया रेडियो मुंबई के लिए )


जीवन अनमोल है चाहे वह मनुष्य का हो या किसी जीव का..इसलिए सब पर दया करो. खुद जीयो और दूसरों को भी जीने दो. जी हां, यह धरती का वह सिद्धांत है जिसे जैन धर्म के 24वें तिर्थंकर स्वामी महावीर ने दिए. यह सिद्धांत मानवों को सभी जीवों के प्रति दयालू रहने और प्रकृति के प्रति समर्पण की प्रेरणा देता है. स्वामी महावीर ने अपने उपदेशों के जरिए प्रेरणा देकर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम की भावना का साक्षात्कार कराया. महावीर ने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति और 6 अनिवार्य का सिद्धांत देकर मानव जीवन कैसे उत्कृष्ट और श्रेष्ठ है, इसकी विवेचना की. उनके पंचशील आज भी हमें महामानव बनने की प्रेरणा देते हैं.

प्रारंभिक जीवन
       स्वामी महावीर का प्रारंभिक नाम वर्धमान था. करीब ढाई हजार साल पूर्व बिहार के वैशाली गणराज्य क्षत्रीय कुंडलपुर ( आज के नालंदा जिला) में माता त्रिशला और पिता सिद्धार्थ के राजसी परिवार में उनका जन्म हुआ. 30 साल तक के पुर्वार्ध जीवन में वर्धमान राजसी ठाटबाट में जरूर जिए लेकिन मध्य के 12 साल गृहत्याग कर उन्होंने जंगल में तपस्वी बनकर जीवन जिया. बाद के 30 वर्ष उन्होंने प्राणि मात्र के कल्याण और जगत के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करने में बिताए. उन्हें अतिवीर, सन्मति और वर्धमान के साथ ही 'जिन' नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं उनके 'जिन' नाम के कारण ही ऋषभदेव से प्रारंभ हुई वर्तमान चौबीसी का नाम 'जैन धर्म' पड़ा, जिसके वे प्रवर्तक और 24वें तीर्थंकर हुए.और इस तरह वे वर्धमान से स्वामी महावीर के रुप में विख्यात हो गए.
जीयो और जीने का संदेश 
 महावीर स्वामी ने अपने उपदेशों से मानव कल्याण की सही राह और दुनिया को जीने की नयी दिशा दिखाई. जातिगत विसंगतियों को ध्वस्त करने उन्होंने चार सर्वोदयी तीर्थों की स्थापना की जिनमें क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएं नहीं थीं.उन्होंने विश्व को दुखों और संघर्षों से मुक्ति का सरल और सच्चा मार्ग दिखाया. आत्मिक और शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिए महावीर स्वामी ने पंचशील सिद्धांत बताए- अहिंसा, सत्य , अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य. ये वो सिद्धांत हैं जिसका सभी जैन मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविकाएं अनिवार्य रुप से आज भी पालन करते हैं. यह सामान्य जनों को भी शाश्वत सुख पाने में पथदर्शक और प्रेरणादायी बना हुआ है.

 पथप्रदर्शक हैं महावीर की शिक्षाएं
आज दुनिया तेजी से बदल रही है लेकिन स्वामी महावीर की सैकड़ों साल पहले दी गई शिक्षाएं हमें नये युग में भी सच्चा जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं.
स्वामी महावीर कहते हैं कि 
''हे मानवों सत्य ही जीवन का सच्चा सार है जो बुद्धिमान सत्य की आज्ञा में रहते हैं वे मृत्यू और निराशा के भय से मुक्त हो जाते हैं.

उन्होंने कहा-अहिंसक बनो. इस लोक में जितने भी त्रस जीव ( एक से 5 इंद्रियों वाले) हैं उनकी हिंसा मत करो. उन जीवों को उनके पथ से मत रोको. उनके प्रति मन में दया का भाव रखते हुए उनकी रक्षा करो.

अपरिग्रह अपनाओ. जीवन में आवश्यकता से अधिक वस्तुओं का संग्रह मत करो. जो व्यक्ति नश्वर वस्तुओं का संग्रह करता या सम्मति देता है उसे दुखों से छुटकारा नहीं मिल सकता.

ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है इसका पालन करो.क्योंकि ब्रह्मचर्य ही उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चरित्र, संयम और विनय की जड़ है. जो स्त्रियों से आशक्त नहीं हैं वही मोक्ष की ओर बढ़ते हैं.

क्षमा भाव रखते हुए सब जीवों के प्रति कृतज्ञ रहो. सभी जीवों के प्रति मैत्रीभाव रखो. वे कहते हैं कि '' मैं सब जीवों से अपने सारे अपराधों के लिए क्षमा मांगता हूं. सब जीवों ने मेरे साथ जो अपराध किए हैं उन्हें भी मैं क्षमा करता हूं. मनसा, वाचा, कर्मणा मेरी सभी पापवृत्तियां नष्ट और विफल हो जाएं.

स्वामी महावीर कहते हैं कि 'धर्म' सबसे उत्तम मंगल है. अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है. और जो धर्मात्मा हैं. जिनके मन में सदैव धर्म जागृत रहता है, वे देवताओं के लिए भी आदरणीय हैं.
           
 महावीर स्वामी का जैन धर्म ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति, निर्माण या रखरखाव के लिए किसी ईश्वर या परम शक्ति की धारणा का प्रतिपादन नहीं करता. जैन दर्शन के अनुसार, यह ब्रह्माण्ड स्वयं संचालित है और सार्वभौमिक प्राकृतिक क़ानूनों पर चलता है. जिसके आधार ''जीव, पुद्गल, आकाश, काल, धर्म, और अधर्म नामक 6 द्रव्य हैं. इनका अस्तित्व सदैव रहा है और आगे भी रहेगा. जैन धर्म कहता है कि '' भगवान एक अमूर्तिक वस्तु है और वह मूर्तिक वस्तु यानी ब्रह्मांड का निर्माण नहीं कर सकता.  जैन धर्म दर्शन के मुताबिक ' हर आत्मा का असली स्वभाव भगवंता है. और हर आत्मा में अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान और अनंत सुख है. आत्मा और कर्म पुद्गल के बंधन के कारण ही यह गुण प्रकट नहीं हो पाते. किन्तु सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र के माध्यम से आत्मा के इस राज्य को प्राप्त किया जा सकता है. इन रतंत्रय के धारक को भगवान कहा जाता है. 

कहते हैं कि स्वामी महावीर के संघ में इंद्रभूति समेत 11 गणधर थे. 14 हजार दिगंबर मुनि, 36 हजार आर्यिकाएं, 1 लाख श्रावक और 3 लाख श्राविकाएं थी. 527 ईसा पूर्व बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक की दीपावली को भगवान महावीर ने निर्वाण को प्राप्त किया. स्वामी महावीर ने अपने प्रवचनों में धर्म, सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया. त्याग और संयम, प्रेम और करुणा, शील और सदाचार की प्रेरणा दी. उन्होंने चतुर्दिक संघ के जरिए अपने कैवल्यज्ञान को देश में घूमघूम कर फैलाया.

प्रासंगिक हैं महावीर...
वर्तमान आपाधापी के अशांत, भ्रष्ट और हिंसक वातावरण में महावीर की अहिंसा शांति प्रदान कर सकती है. उनका अपरिग्रह आर्थिक विषमता मिटाने के साथ ही संघर्षों में समन्वय और सद्भावना का स्रोत बन सकता है. क्योंकि जब तक एक ओर अथाह पैसा, दूसरी ओर अभाव रहेगा तक संघर्ष होते रहेंगे. उसी तरह जब अस्तेय यानी अचौर्य की भावना का प्रचार-प्रसार और पालन होगा तो चोरी, लूटमार का भय खत्म हो जाएगा. पूरे विश्व में मानसिक और आर्थिक शांति स्थापित होगी. चरित्र और संस्कार मजबूत होंगे तो सरल, सादगीपूर्ण एवं गरिमामय जीवन को प्रोत्साहन मिलेगा. तीर्थंकर हमें इसी आत्मज्ञान का रास्ता दिखा कर गए हैं.

अंततः..
भगवान महावीर का आत्मदर्शन जगत के प्रत्येक जीवात्मा के लिए समान और हितकारी था. उन्होंने कहा कि ''दुनिया की सभी आत्माएं एक सी हैं. इसलिए हमें दूसरों के प्रति वही व्यवहार करना चाहिए जो हमें स्वयं पसंद हों. महावीर का  'जीयो और जीने दो' का यही सिद्धांत आज पूरी दुनिया के लिए मानव कल्याण का मार्गदर्शक बना हुआ है. हम इस मार्ग पर चलकर सम्मानित, शांतिपूर्ण और सदाचारी जीवन पा सकते हैं.'' 


-सुधीर शर्मा
लेखक एवं पत्रकार
9892372258

गुरुवार, 15 मार्च 2018

संत सुधीर कह गए देश में, अब अच्छे दिन आएंगे..



संत सुधी कह गए देश में, अब अच्छे दिन आएंगे..
गूगल से साभार
मेहनतकश औ मालदार सब, भीख मांगकर खाएंगे....

जब बापू रफ्तार में होंगे, अन्ना ब्रेक लगाएंगे.
भ्रष्टाचार मिटाने वाला एक झंडा लाहराएंगे.
सवा सदी के दल से एक युवराज का चेहरा पनपेगा
शर्म, शूचिता, सच्चाई का नया केजरी चमकेगा..

आरक्षण की ज्योति जलेगी, अंधियारा अपनाएंगे...3!!
गूगल से साभार
संत सुधी कह गए देश में अब अच्छे दिन आएंगे...!!!!

हर मुट्ठी मोबाइल होगा, सब मॉडर्न बन जायेंगे...
निज घर में संवाद न होगा,दुनिया से बतियाएंगे
बदलेंगे सरकार, बदल जायेंगे सब कानून यहाँ.
सस्ती होंगी कारें, महंगा राशन पानी नून यहाँ

छोड़छाड़ परिवार जो सिंगल, वे सबको समझाएंगे....1!!
 संत सुधी कह गए देश में अब अच्छे दिन आएंगे...!!!!

उद्यम होंगे बंद 'हाल', तरसेंगे पाई पाई को..
तंग 'हाल'तरसेंगे नौकरी, रोटी और दवाई को..
खुलेंगी परतें घोटालों की,नीरव और सहारों की
और सुर्खियां रोज बनेंगी, नए-नए गद्दारों की....

जो लुटवाए देश अभी तक,ऊंगली वही उठाएंगे....2!!
संत सुधी कह गए देश में अब अच्छे दिन आएंगे...!!!!

कौमों में तकरार हो कैसे,मजहब यही सिखाएंगे
और खबरची मौलवी महराजों को रोज लड़ाएंगे
अनपढ़-पढ़े लिखों में होगा हरदिन घालमघाल यहाँ
पंथ प्रान्त और परिवर्तन का अनसुलझा जंजाल यहाँ

संविधान बेचारा होगा, सब इसको लतियाएंगे....4!!..
संत सुधी कह गए देश में अब अच्छे दिन आएंगे...!!!!

पर चिंता की बात नहीं, फिर समय का पहिया डोलेंगे 
बदलेंगे सरकार 'मुहाना' ,  राजकोष का खोलेंगे?
भ्रष्टाचार की बारिश होगी,फिर भारत हरियाएगा
कंगालों की जेब भरेगी, हर चेहरा मुस्कायेगा...

हर हाथों में शक्ति होगी, बांट बांट कर खाएंगे.....5!!
संत सुधी कह गए, देश में अब अच्छे दिन आएंगे...!!!!
-सुधीर शर्मा 9892372258

शनिवार, 30 दिसंबर 2017

काला आखर -सुधीर शर्मा की कहानी

      14-4-14-सोमवार, कहानी
आज रामेशर हलवाई बहुत खुश था गांव के चौखट चौखट जाकर सबका मुंह मीठा करवा रहा था. जुलाहा टोले में भी आया, सदाम ने पुछ लिया का बात है रामेशर चाचा बहुत खुश हो..हमार नन्हे को पटवारी की नौकरी मिल गयी भैया. लेवो तुम भीप्रसाद.. आशिर्वाद दे दो. अच्छे से काम करे खुब कमावे..सदाम सिर हिलाकर अधमने से जवाब दिया अल्ला आगे बढ़ावे उसे...रामेशर काका चले गए लेकिन उस रात सदाम को नींद नहीं आयी. जीवन भर चूल्हे के आगे हाट मेले में दिन दिन भर तपते रामेशर काका का लडक़ा पढ़ लिख कर पटवारी बन गया. पहली बार उसके मन में कुछ कचोटने लगा था. सोचा नबील को नहीं पढ़ा सका लेकिन करीम पढ़ ले तो..जीवन सुधर जाए. नबील भी मान गया. करीम मदरसे जाने लगा..अब घर में जहां जब सब पलाश के पत्तों से बीड़ी बनाने में मशगूल रहते करीम किताबों में उलझा रहता. जूलिया कई बार काम छोडक़र करीम के पास मंडराने लगती. लेकिन समीना के चिल्लाते ही भाग आती..घर भर पढऩे लगोगे तो कमाएगा कौन. चूल्हा कहां से जलेगा. सदाम ने बाद में दोनों बच्चों को भी मदरसे में दाखिला करवा दिया. बच्चे बढऩे लगे तो घर का खर्च भी बढ़़ा लेकिन उस लिहाज से आमदनी नहीं बढ़ी. दिन बरस गुजरे नबील की शादी हो गयी लेकिन बीबी आते ही वह नयी बहू के साथ मां-बाप से दूर हो लिया. करीम, जूलिया पढ़ते रहे. जूलिया ब्यूटिशियन का कोर्स करने बाद खुद शादी रचा कर चली गयी. करीम ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम पर लग गया. घर से दूर होने के कारण कंपनी का क्वाटर मिला, तो वहां सदाम और समीना को भी बुला लिया. लेकिन कहते हैं कि इंसान और घोड़ों के दिन समान नहीं रहते. बेटे की अपनी धुन देखकर अपना खर्च उठाने यहां सदाम ने फिर थके हाथों से बीड़ी का धंधा शुरू किया. तकलीफ तब होती जब हफ्ते का हिसाब करीम लेता. बचे हुए पैसे भी रख लेता लेकिन एक बार भी अब्बा या अम्मी की खैर नहीं पूछता. बाप के सामने ही वह सिगरेट का धूंआ उड़ा जाता. सदाम ने आधी जिन्दगी बीड़ी बेची, लेकिन कभी होठों से लगाकर धूंए का स्वाद नहीं तक चखा. खैर अब उसमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वह बेटे से लड़े. खींच तान में कुछ दिन गुजरे कि लव मैरिज कर करीम भी मां-बाप को छोड़ कहीं और रुख्सत हो लिया. सदाम  निराश होकर अपनी बीबी के साथ गांव लौट आया. वहां जहां बदहाल आंगन, टूटी चौखट उसकी बाट निहार रहे थे. जिसे कभी बिना सोचे ही छोड़ गया था. लेकिन उसे वहीं लौटना पड़ा . दिन उतरने लगा था बाहर नीम के पेड़ के नीचे औंधे लेटे सदाम आसमान की ओर एकटक देखे जा रहा था. तभी उसके जेहन में पुरानी यादों की तमाम तस्बीरें उभरती चली गयीं.
गूगल से साभार

गांव की हाट में नबील चिल्लाए जा रहा था-बीड़ी ले लो भाई, बीड़ी..मजेदार बीड़ी,  जायकेदार बीड़ी.. बीड़ी ले लो भाई बीड़ी..लोग आते, देखते और निकल जाते. वैसे बीड़ी तो वही खरीदता है, जिसे पीने की आदत हो. बाजार में हर कोई व्यसनी तो नहीं आता. हफ्ते की चार बाजारों में नबील की पुकार बस यही होती. कभी कभी खीझ भी होती, बीड़ी के बदले कुछ और बेचते तो शायद जादा धंधा होता. लेकिन बाप-दादों का पुस्तैनी कारोबार है, सो किए जा रहे..नबील के अलावा सदाम के दो और बच्चे भी थे. करीम और जूलिया. उम्र में एक-डेढ़ साल के अंतर से..सब बीड़ी बनाने और बेचने के काम में थे. सदाम पलाश के पत्ते और जर्दा खरीद लाता. समीना घर में बच्चों के साथ बीड़ी लपेट देती .दो दिन में जितना माल तैयार होता. सदाम नबील को लेकर बेच आता .कभी कभी तो पूरा परिवार ही बीड़ी बेचने के लिए खड़ा रहता.  उस दिन बुधवार की हाट सदाम बीड़ी की टोकरी सजाए हाट में बैठा रहा. ग्राहकों के इंतजार में. उसे आज लग रहा था मानो बीड़ी पियक्कड़ उठे ही नहीं. अगर जागे होते तो क्या हाट बाजार न आते. घंटों गुजर गए दस मुट्ठी बीड़ी भी नहीं बिकी. बैठे बैठे मन उचटने लगा तो उठ कर खुद हाट का चक्कर लगाने निकल पड़ा. ठीहे पर नबील को बिठा दिया. लोग आते रहते नबील जिसे भी देखता बुलाने लगता बीड़ी ले लो बीड़ी..धूंए की भरमार है स्वाद जायकेदार.है..लोग तो समझते थे यह सामान बेचने का हथकंडा है चिल्लाओ, भरमाओ तो बिकता है..वर्ना दस साल के नबील को भला क्या मालूम कि बीड़ी का स्वाद और धूंआ कैसा होता है. बीड़ी सिगरेट किसी के भरमाने से थोड़े खरीदता है कोई. लोग तो लत और आदत से खरीदते हैं. शंकर काका कहते थे जिसे व्यसनों की लत लग गयी. तो समझो भैया गया काम से. बीड़ी तंबाकू की आदत हो और न मिले तो बेचैनी हो उठती है. तलब लगे और न मिले फिर देखो. धरमू तो अनाज बेच कर तंबाकू लाता था. लत ऐसी लगी कि क्षय रोग ने उसका जीवन लील कर ही छोड़ा. लेकिन जो खुद व्यसन बेचता हो उसे भला किसी के मरने-जीने , लाभ-हानि से क्या लेना देना. सदाम तो कारोबारी है. व तो यही चाहेगा, लोग ज्यादा बीड़ी पीएं तभी तो उसका धंधा बढ़ेगा. लेकिन कहते हैं कि ऐसे धंधे से जितना कमाओ. कम ही पड़ता है. सदाम का हाल इससे जुदा नहीं है. घर के सारे लोग इसी बीड़ी में जुते रहते हैं. सुबह बीड़ी शाम बीड़ी. बीबी बच्चे सब एक साथ, बीड़ी बनाने बेचने में बस.
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मिरजा मौलवी जब भी मिलते यही कहते-सदाम,  बच्चों को पढ़ाना लिखाना सिखाओ. ये पढ़ेंगे लिखेंगे तभी तो दीन दुनिया समझेंगे. अखलियत का उजाला देखेंगे. सदाम चिड़चिड़ा जाता -मौलवी जी जुलाहे के बच्चे पढ़ लिखकर का करेंगे. कौन से मुंसिफ-कलट्टर बन जाएंगे. पढ़ाने लिखाने के लिए पैसा कौड़ी कहां है. आज काम धंधा सीख लेंगे तभी तो कल परिवार का बोझ उठाएंगे.  सदाम बोलते जाता- पढ़ लिखके भी नौकरी नहीं मिली तो काम धंधा ही करना है फिर आज से क्यों नहीं.
मिरजा मौलवी समझाते-पढ़ाई का मतलब सिर्फ काम-धंधा, नौकरी पाना नहीं होता है. पढऩे से अज्ञान  मिटता है.समझदारी आती है. संस्कार और जीने का सलीका समझ आता है. रोजी नौकरी मिलती है. लेकिन सदाम के जेहन में मौलवी जी की बातेें नहीं समाती. उसे पढ़ाई लिखाई में समय की बर्बादी के शिवा कुछ नजर नहीं आता. वह बड़बड़ाता हुआ निकल जाता, मौलवी जी को जब देखो दीन दुनिया एखलाक की बातें करते हैं. काम तो करना नहीं सिर्फ  किताब बांचते रहते हैं. न जाने किताबों में क्या लिखा होता है. उसे क्या मालूम, किताबें पढक़र लोग वैज्ञानिक विद्वान हो गए. साहब सुबा आखिर पढऩे से ही तो बनते हैं. लेकिन अनपढ़ सदाम के लिए किताबों की लिखावट केवल काला अक्षर दिखती है. उसे याद भी नहीं कि वह कभी स्कूल गया था. किताबें देखनी तो दूर की बात है. ऐसा भी नहीं कि कभी उसके मन में पढऩे का खयाल नहीं आया लेकिन घर की गरीबी ने उसे मदरसे से दूर रखा. कहते हैं सदाम के दादा उर्दू के बड़े जानकार थे हदीस कुरान फर-फर फर-फर पढ़ते थे. लेकिन अपने बेटे को चाहकर भी नहीं पढ़ा सके.  मौलवी जी कहते हैं पढ़ाई लिखाई चाहत की बात होती है. सदाम कहता- पढऩा लिखना तकदीर की बात होती है. सदाम की दलील और भी थी कि पढऩे का मन है, लेकिन पैसा नहीं तकदीर नहीं तो क हां पढ़ पाएंगे. फिर काम-धंधा नहीं होगा तो परिवार कैसे चलेगा. मैं अकेला जान पलाश का पत्ता बटोरूंगा या बीड़ी लपेटूंगा.  आमदनी कम और खर्च बड़ा होना भी उसकी उम्मीदों पर पानी फेर जाता. आखिर नसीब भी तो कोई चीज होती है. मुझे नहीं मिली तो मैं मदरसे का मुंह नहीं देख सका. अगर तकदीर होगी तो बच्चे जरूर पढ़ लेंगे मैं भला क्या रोक पाऊंगा.
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 रामेशर हलवाई सुनाते थे पहले मंत्री संत्री रजवाड़ा वाले पान खाते थे. शाही पान.  भाई अब पान नहीं घास-फूस बिकता है. अगड़म-बगड़म डालो, थमा दो..खाना है तो खाओ या थूक दो. जो नए लोग हैं वे अब पान नहीं , गुटका खाते हैं. अमीर लोग बीड़ी नहीं खरीदते,वो तो आम लोगों की तलब है. जो गरीब गुरबा लोग हैं उनको थकान मिटाने के लिए घंटे भर में बीड़ी का दम जरूर मंगता है. सदाम का धंधा भी इन गरीब गुरबा लोगों पर ही तो चलता है. दिन भर की मेहनत से 100 रूपए कमाओ. नमक तेल से जो बचे उसी में से रूपए-दो रूपए की मुठ्ठी भर बीड़ी खरीद ली..खेत-मैदान की ओर गए तो फूंकते चले गए. ना रहे तो किसी से मांग कर एक कस मार ली वर्ना दिन दिन भर तलब से तड़पते रहे. सदाम का परिवार इसी बीड़ी में बझा रहता था लेकिन उसे नहीं पता कि उसका धूंआ कैसा होता है. सदाम को बीड़ी की कीमत पता थी, उसका स्वाद नहीं, उसका असर नहीं. उसे नहीं पता कि बीड़ी के धूएं से कइयों के फेफड़े जान का दुश्मन बन गए, लेकिन वह भला इसकी परवाह क्यों करें. मिरजा मौलवी सैकड़ों बार समझा चुके सदाम कोई और रोजी क्यों नहीं करते. आखिर बच्चों की सोचो.अगर उनको लत लग गयी तो क्या होगा.  तुम चाहकर भी नहीं छुड़ा सकोगे. मौलवी जी समझाते जाते पीछे सब कुछ वैसा रह जाता. उसकी मजबूरी भी होती. सदाम सोचता-जो जहर बेचते हैं वो भला कौन सा दूसरों का सोचते हैं कि उससे कोई जी रहा या मर रहा. जहर बेचना उनका धंधा है. बीड़ी बेचना मेरा धंधा है. मेरी रोजी रोटी है. मौलवी जी पर कभी कभी खीझ भी आती.
खपरैल के सामने नीमझाड़ के नीचे लेटे लेटे वह दुबारा बीती जिन्दगी से रूबरू हो आया. सडक़ से गुजर रही लालाजी के  मोटरकार की पो-पों से जब तन्द्रा टूटी तो समीना पास खड़ी थी. शौहर को अकेले गमगीन देख उसकी आखें भरभरा गयीं. बच्चे उन्हें अकेला छोड़ गए थे. जिन्हें सदाम और समीना ने पेट काटकर जिलाया, पढ़ाया लिखाया. इस आस में कि वे अच्छी समझ और नौकरी पाएंगे. आखिर यही तो कहा कहते थे मिरजा मौलवी..कि तालीम से संस्कार और समझदारी आती है. मौलवी जी जिन्दा होते तो सदाम उनसे सवाल पूछता कि मौलवी जी आखिर मेरे बच्चों में उस तालीम का असर क्यों नहीं हुआ. लेकिन उसकी तकदीर में यह भी नसीब नहीं हो सका. मौलवी जी नहीं रहे.पल भर के लिए उसका मन तड़प उठा. वेदना का गुबार उसकी आखों में आंसू बनकर पिघलता चला गया.

सौदागर - सुधीर शर्मा की कहानी

                       

मीरगांव में फिर सभा लगी थी ऐसी सभा जैसी पहले कभी नहीं हुई. लोग दूर-दूर से आए थे. सोमरंजन को सुनने.  कहते हैं  विदेश में पढ़ते थे.लाखों रूपए तनख्वाह छोडक़र देश में ही कुछ करने की तमन्ना लेकर लौटे हैं..एकता पार्टी के सोमरंजन ने युवाओं की तकदीर संवारने का ऐलान किया. विकास का नारा दिया.घर-घर सुविधा पहुंचाने का वादा किया. बेरोजगारों के खाली हाथों में काम सौपने का किस्सा सुनाया..युवा जोश में उमड़े दिन रात काम किया..लेकिन वोटों का अंकगणित गड़बड़ाता देख युवाओं की नई थ्योरी अपनाई गयी..रिज्लट आने से पहले सोमरंजन और बिबेचन के समर्थक आपस में भीड़ गए. नारेबाजी और जयकारों के बीच संघर्ष की चिन्गारी उड़ी. शांति और भाईचारे का संदेश देने वाले उम्मीदवारों ने ही ललकार कर जंग लड़ाई. कानून गिड़गिड़ाता रहा और नैतिकता बेजार होती रही. एकता और लोकहित के  सिद्धांत पर बने दलों ने लोकतंत्र और स्व-राज की नई इबारत लिखी.आज इस मामले में फैसले की घड़ी थी.चुनाव रदद करते हुए. जज ने राजनीति की दिशा बदलने में जुटे नौजवानों को फर्जी वोटिंग, हिंसाचार और अशांति फैलाने के लिए दोषी करार दिया और कारावास की सजा सुनाई..ये वो नौजवान थे जिनकी तकदीर संवारने के लिए भाषणों में योजनाएं गूंजी,नारे दिए गए. जिनके जरिए जीत की नई कहानी लिखने की कवायद हुई. लेकिन मिला क्या.? मीरगांव के इतिहास ने पुरानी यादों और जख्मों को एक बार फिर ताजा कर दिया.बीते दिनों के हालात मानसपटल पर फरफराकर उभर आए....
गूगल से साभार

उस दिन लोग कंधे पर बैनर होर्डिंग थामे भागे जा रहे थे.दिपंकर ने पूछ लिया का बात है मजुमचा, सब बड़ी जल्दी में दिख रहे,भागे जा रहे जैसे कवनो गाड़ी छूट रही है.मजुम चा मुस्कराकर बोले हां, पैसे की गाड़ी छूट रही है . क्यों तुझे नही मालूम क्या. दिपंकर अंजान सा- बोला नहीं चा, सच्ची नहीं मालूम तुमही बताओ न का बात है . मजुम चा बोले-आज फुरसू चौराहे पर रबसाहू की जनसभा है. अगर तुमको भी पैसा कौड़ी की दरकार है तो तुम भी भीड़ बनकर चले जाओ. का बात करते हो चाचा? इधर तो मनरेगा का मजूरी नहीं टैम पर मिल रही, और तुम कहते हो कि भीड़ बनने से पैसा मिलता है. विश्वास नहीं हो रहा तो भीमबलिए से पूछ ले. तभी .वंशीलाल बोल पड़ा -नेता हैं रोज थोड़े आएंगे-जो मिलता है ले लो.वर्ना पांच साल बाद ही दिखेंगे. आखिर जब हमारा वोट लेकर ये कमा रहे हैं तो हम अपना वोट इन्हें मुफत में क्यों दें. वंशी की बात मजुमचा को अच्छी ना लगी वो बोलते चले गए आज पैसे के लिए भीड़ बनकर बिकें गे, कल पैसों के लिए वोट बेचेंगे..नहीं जानते वोट बेचने का मतलब क्या है? यह अधिकार है देश बदलने का इसे बेचना तो आने वाली पीढिय़ों का भविष्य बेचना है. मजुमचा बोलते जा रहे थे लेकिन उनकी सुनने वाला कोई न था. लोग सुनना ही नहीं चाहते.सबके मन में लालच समा गयी है.कया जनता क्या नेता. चुनाव सबके लिए पैसा कमाने का जरिया दिख रहा है. पिछली बार भी बबनसाह के टाइम पर  यही तो हुआ था. लाख मना करते रहे. पैसों पर वोट न दो लेकिन किसी ने एक न सुनी .क्या मिला ..गरीबों का मसीहा बनने का वादा कर गए नेता बब्बनसाह, पांच सालों में एक बार पूछने तक नहीं आए. फिर दूसरे नेता पर कैसे भरोसा करें.
 70 साल की अकलीबा भी यहां हाथ में झंडा पकड़े धूप में खड़ी थी. मन नहीं माना तो दिपंकर ने पूछ लिया-काकी तू इहां का कर रही है? अकलीबा दम संभालने लगी. मैने लाया है इसे-सोमेश बोल पड़ा-काकी पैसे कमाने आयी है. दो घंटे रह गयी तो 200 रूपैया मिल जाएंगे. वैसे भी घर में पड़े-पड़े खासने के और करती भी क्या है. यहां इस उम्र में दो पैसे मिल जाए तो तंबाकू सूर्ती के दाम निकल आएंगे.सोमेश बोलता गया, रबसाहू ने कहा है कि जो जितना आदमी लाएगा उतना जादा पैसा मिलेगा. दिपंकर सोंचता रह गया उसके मन में आया कि वह चिल्ला कर बोल दे कि रबसाहू जैसे लोगों के बहकावे में क्यों आते हो. ये कुछ भी देने वाले नहीं.
मजुमचा बताते हैं कि बिबेचन बाबू जब यहां मीरगांव से चुनाव लडऩे आए तो उनका दिखाया सपना लोगों के जेहन में जैसे घर कर गया..भीमबलिए घूम घूम कर प्रचार कर रहा था कि वोट करो, वोट करो, नेता जी को वोट करो..घर मिलेगा-सम्मान मिलेगा, रोटी-कपड़ा-मकान मिलेगा. बिबेचन बाबू की सभा के बीच हुए संघर्ष में जब अकलीबा का सुहाग उजड़ गया था.तब उन्होंने वादा किया था कि रामसमुझ जैसे निष्ठावान कार्यकर्ता की कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी..लेकिन यह वादा आज भी अधूरा है..अकलीबा आज तक अपना दर्द लेकर जी रही है. अपने दिल की बात  भला किसे सुनाए. वैसे भी कौन सुनता है बेवा विधवा की आवाज. अकलीबा जैसी हजार विधवाएं हैं जो सिर्फ आस में जी रही हैं.
चार साल से अधिक गुजर गए मीरगांव की हालत नहीं बदली.
  पुराने वादे जस के तस हैं लेकिन बिबेचन  नेता से मंत्री हो गए. राजधानी में रहते हैं. देश विदेश में जहाज से घूमते हैं लेकिन यहां नहीं आते जहां लोगों को सपना दिखाकर गए थे. जहां लोगों से वादा कर वोट मांगे थे. नौकरी देने का, रोजगार देने का किसानों को खाद बीज देने का...यहां कुछ करने का इरादा दिखा कर गए थे.

फिर चर्चा है कि बिबेचन बाबू मीरगांव से दुबारा चुनाव लड़ेगे. उनकी जनसभा और भी बड़ी होने वाली है मीरगांव में. जितना बड़ा नेता उतनी बड़ी सभा.लेकिन ऐन टाइम पर बिबेचन की जगह कोई सोमरंजन नाम के नए प्रत्याशी खड़े हो गए.उनकी विशाल सभा के लिए लोगों की भीड़ का इंतजाम किया गया.उनके लिए रामसमुझ जैसे लठैत किसान नहींं नौजवानों की जरूरत है जो इंटरनेट चलाते हैं, फेसबुक पर देश की तकदीर सवांरते हैं. किसानों और मजदूरों वाले सभा समारोह के दिन अब कहां रहे. विमल मास्टर समझाते हैं यह 21वीं सदी का दौर है. जिसमें पेपर नहीं पुशिंग मशीन काम करती है.

.मजुम चाचा दरवाजे के पास पड़े तख्ते पर बैठे सामने दीवार पर लिखे चुनावी नारे की और एकटक निहारते जा रहे थे कि बीते जमाने की यादों के पन्ने फरफराकर उड़ते चले ..बापू ने कहा था कि देश में रामराज्य लाना है-यहां तो न राम के आदर्श दिख रहे न ही नैतिकता, फिर यह सपना कब पूरा होगा...वर्षों पहले किसी ने ऐसे ही सपने दिखाए. जो जेहन में सवाल बनकर परेशान करते हैं. किसे भूला है वो दिन जब मनोहर पुर की हाट में वोट पाने के लिए दो गुट आपस में ऐसे भिड़े कि खून खराबा हो उठा. विरोधी गुटों के कार्यकर्ताओं ने क्रोध की होली खेली.कपड़े फाड़े,एक दूजे का सिर फोड़े. मजुमचा का दाहिना पैर भी उसी मारपीट में टूटा. विरोधियों ने झगड़े में उनके उपर बैलगाड़ी धकेल दी.गनीमत रही कि गेहूं का बोरा पहिए के नीचे आ गया. अकलीबा को पागल बनाने वाला यही दंगा ही तो था. उसके पति को जंगमपुर के विरोधियों ने नेता का खासमखास समझ कर इतना पीटा कि जान ही चली गयी. मजुमचा का मन तो आज भी पुरानी बातों को सोंचकर रंज से भर जाता है. वो बड़बड़ा उठे जब जनता की कोई कद्र नहीं है तो उसका वोट डलवा कर चुनाव क्यों करवाते हैं. लेकिन उन्हें नहीं पता देश का लोकतंत्र उनके जैसे लोग नहीं बल्कि लोकसेवक चलाते हंै जो आम जनता से अलग सोंचते हैं..
अचानक दूर से सायरन की आवाज घर्राने लगी..कुछ ही पलों में आसमान में धूल उड़ाता हेलिकाप्टर मंडराने लगा. धूप में जमा लोगों की नारेबाजी शूरू हो गयी. आखिर भीड़ नारे बाजी के लिए ही तो जमा की गयी थी.सौ में दो सौ में..मुफत में भी..बिबेचन बाबू शान से उतरे पुलिसवालों के घेरे में जनता के बीच से होकर मंच पर गए .जनता जय जयकार करती रही.रबसाहू के चेहरे पर भीड़ की बुलंद आवाज का असर साफ दिख रहा था..टेबल पर रखे बोटल के साफ पानी से गला तर किया..और बोलते गए..हम आपके लिए आए हैं.आप के दुख दर्द समस्याओं को जानते हैं हमने कसम खाई है कि अगर जीत कर आए तो इस इलाके को स्वर्ग बना देंगे.भीड़ के एक कोने में बिन बुलाए आए मजुमचा के दिमाग का पारा गरमा गया, मन में आया कि बोल दे नेताजी गांव की कच्ची भट्ठी का नशीला पानी पीकर पांच लोग जान गवां चुके हैं , अब कौन सा स्वर्ग बनाना चाहते हो. लेकिन मन का गुस्सा मन में ही पी डाला.
दिपंकर चौपाल की ओर बढ़ चला, उस ओर जिधर जनसभा.हो रही थी..वहां सैकड़ों की भीड़ थी. बिबेचन बडक़ा नेता हैं. उनकी पहुंच दिल्ली बंबई तक है. उनके इशारे पर आला अधिकारी, पुलिस कोतवाल, हीरो-हिरोइन उमड़ते हैं.  बड़े तंबू कनात में बिबेचन बाबू माईक पर बोल रहे थे. वोट दो अपना कीमती वोट . हम घर देंगे. किसानों को बीज देंगे. खाद देंगे. नौजवानों को नौकरी, महिलाओं को रोजगार देंगे. सबको सम्मान मिलेगा, रोटी कपड़ा मकान मिलेगा..सपने भी पूरे होंगे.. बिबेचन बाबू बोलते चले गए ..ढेरों वादे इरादे सब कुछ गिनाते गए.  जाते-जाते जनता की तकदीर बदलने का वादा कर गए. सभा खतम हो गयी तो नेता गाडिय़ों में बैठकर धूल उड़ाते निकल लिए. कस्बे के समाजसेवक रबसाहू भी साथ हो लिए. और बेरोजगारी, गरीबी, नौजवानों की रंजिश का उड़ता हुआ गुबार पीछे फिर छूटता चला गया...

सुधीर शर्मा की कहानी-नयी राहें

Proof checked 30-12-17
                         
किचन में स्टोव फरफराए जा रहा था और उसकी लौ पर खिचड़ी पक रही थी. मानो आज वक्त कुछ ज्यादा ही लग रहा था. अंजू को कूकर की तीसरी सीटी का इंतजार था. नजर नॉब पर टिकी थी, लेकिन कान बरामदे में बड़बड़ा रही सास पद्मा की ओर थे. स्टोव की फरफराहट के बीच भी पद्मा की शिकायती आवाज साफ सुनाई दे रही थी. वह दिन चढ़े सोएगी तो देर नहीं होगी. खुद का खयाल तक नहीं रखती फिर पति का खयाल कैसे रखेगी. ससुर रंगनाथ होठों पर उंगली लगा चुप रहने का इशारा करते रहे लेकिन पद्मा बुदबुदाती रही. हालांकि अंजू खीझ संभालते हुए खामोश तो रह गयी लेकिन उसके दिलोदिमाग में दर्द भरता चला गया. उसे क्या पता था कि देर से जगने पर इतनी हाय-तौबा मच जाएगी. उसका मन अंदर ही खुद से भिड़ गया था. न जाने आंख क्यों न खुली. वह खुद से बतियाए जा रही थी. अनपढ़ क्या जानेंगे कार्पोरेट की नौकरी क्या होती है. हजारों की पगार के लिए 8 घंटों तक बॉस की बकबक सुननी पड़ती है. कमाएंगें तब न जानेंगे. एक तो घर का काम काज उपर से दुनिया भर की तिमारदारी. आज आफिस लेट पहुंचने पर बॉस ने भी खूब सुनाया था. वह कुछ आर्गूमेंट भी नहीं कर सकी थी. बस सब कुछ सुनते रह गई थी. उसका मन वेदना से सराबोर हो गया था. आज मायके में होती तो सब कुछ छोडक़र चल देती. साफ बोल देती- इतना काम उससे नहीं होगा.
घर और आफिस की किचकिच नस्तर बनकर उसके दिमाग में चुभ रहे थे. वह अपना दुखड़ा शेयर करना चाहती थी, लेकिन कहे किससे. पति का मूड अक्सर बेगाना ही दिखता. अंबरीश के घर में बहू बनकर आए डेढ़ साल हो गए, लेकिन उसे नहीं पता कि आखिरी बार वह खुलकर कब  हंसी थी. बेटी को विदा करते हुए उसकी मां मंजू ने हाथ जोडक़र कहा था कि घर की इज्जत हाथ सौंप रही हूं, ख्याल रखना. लेकिन यहां तो कोई दर्द सुनने वाला भी नहीं दिखता था. ससुराल आकर मानो वह और भी अकेली हो गई हो थी. भयभीत मन लिए उसने दरवाजे पर दस्तक दिया तो छोटी ननद ने अनमने से डोर खोला और किनारे हो गई. घर में घुसते ही सास ससूर सबके चेहरे पर अनमनापन था, मानो वह कोई अजनबी घर में आ पहुंचा हो.
वह  न चाहकर भी मुस्कराते-देखते अंदर चली गई. पद्मा ने अंबरीश से पूछ ही लिया. बहू अकेली देर रात तक नौकरी करेगी तो लोग क्या कहेंगे.अंबरीश सुनता रहा, लेकिन अंजू को लगा कि बरामदे में जाकर अभी कह दे कि लोग तो बाद में कहेंगे-पहले अपनी जुबान पर तो ताला लगाओ.वह मन में ही फरियाद कर रही थी,तभी रंगनाथ बोल पड़े. अंबरीश, बहू अब नौकरी नहीं करेगी. ससुर की तल्ख आवाज मानो उसके कानों में गरम शीशा उड़ेल गई हो. उसका मन चीख-चीखकर रोने को हुआ. आवाज तो रोक ली,लेकिन उसके आंसू धार बनकर बह निकले.रात में भी वह निबाला नहीं खा सकी.ननद की जिरह के बाद भी वह खाट पर खामोश पड़ी रही बेजान-बेजुबान.
उसे मायके की याद आने लगी थी. मम्मी का प्यार उसके अंतर्मन में हिलोरे लेने लगे.नैनो में अश्रुजल उभरे जरुर, लेकिन वह पलकों में ही पी गयी.मायके में जरा सा सिर क्या चकराने लगता, मम्मी दौडक़र गोद में भर लेती. मेरा लाला तुम्हें क्या हुआ है. मेरे बच्चे और न जाने क्या-क्या.. दवा के साथ ढेर सारा प्यारा और लाखों दुआएं.मन में कई बार सवाल उठता बीमारी सिर्फ कहने से भला खत्म होती है क्या, लेकिन मम्मी की प्यार भरी सांत्वना में गजब की ताकत थी. पापा कहते हर मां के हाथ में जादू होता है. मां सहला कर बच्चों की पीड़ा हर लेती है. वो दिन..भी क्या थे..
पिता ब्रह्मानंद इलेक्ट्रिक कंपनी में इंजीनियर थे. कई सालों तक मंजू मां नहीं बन सकी तो दोनों कई मठों-मंदिरों के चक्कर काटे. कई जगह आशीष मांगे तब अंजू के रूप में पहली संतान मिली. मंजू की गोद भरी तो मन-आंगन में खुशियों के अंबार लग गए. कईयों ने बेटी पैदा होने पर तंज कसा.ब्रह्मानंद दहेज के लिए पैसे जुटाना शुरू कर दो.वे कहते बेटियां तो लक्ष्मी का रूप होती हैं, जिनके घर पैदा होती हैं वहां भी और जिनके घर जाती हैं वहां भी खुशहाली से भर देती हैं.मंजू को पति की बात पर गर्व होता. गांव में कई ऐसे परिवार थे जहां बेटी पैदा होने पर किचकिच रोज की बात थी. दिन, महीने साल गुजरे.बच्चे अब बड़े होने लगे थे.
मंजू पर पहाड़ तब टूटा जब ब्रह्मानंद एक दुर्घटना में सबको पीछे छोड़ गए.पत्नी के सामने अकेलापन था और मासूम बच्चों के सामने पूरी जिन्दगी.कई महीनों तक मंजू बांवरी बनी रही.उसने तो सोचा भी नहीं था कि बंद इंजन में तकनीक की जान भरने वाला इंजीनियर इस तरह अचानक खुद बेजान हो जाएगा.एक बेवा के सहारे दो बेटियां थी एक अनबूझ बेटा.पिता के बाद अंजू ने ही घर को संबल दिया.
जिन्दगी जीने के लिए नौकरी चाहिए थी और उसके लिए पढ़ाई जरुरी थी. अंजू सुबह खुद क्लास जाती और शाम को छोटे बच्चों को ट्यशन पढ़ाती मम्मी कहती ये सब बंद क्यों नहीं कर देती. उसका जवाब होता मै तो तुम्हारी चाय के लिए खर्च जुटाती हूं. हालांकि सब जानते थे कि अंजू की मेहनत से ही घर रेंगता है.दिन- महीने-बरस यूं ही तंगी और बाप की यादों के साए में गुजरते चले गए. अंजू ने जब नौकरी करने का निर्णय लिया तो तब भी मंजू ने समझाया. लोग क्या कहेंगे जवान बेटी से नौकरी कराती है. खुद बैठकर रोटी तोड़ती है.लेकिन यहां भी अंजू का हौसला जीता. वह कार्पोरेट कंपनी में पब्लिक कोआर्डिनेटर बन गई. मंजू सोचती अगर इंजीनियर साब होते तो कितने खुश होते, लेकिन तकदीर को भला कौन  पढ़ पाया है. इसी तकदीर का ही तो खेल है कि जवान बेटी अब तक कुंवारी बैठी थी. मंजू के आंखों में चिंता के बादल छा गए.
रिश्तेदारों ने शादी की बात निकाली. आखिर बेटी है कब तलक घर में बिठाओगी..लेकिन दहेज की मांग सुनकर मंजु की रुह कांप जाती. बेटी के सगाई के लिए कईयों के सामने हाथ जोड़े. सबने यही कहा-वो जमाना चला गया जब बेटियां बिन दहेज बिदा हो पाएं..उसके मन में सवाल उभरते .फिर गरीब-बेसहारों की बेटियां आखिर कहां जाएंगी. क्या उनकी तकदीर में कुंवारी रहना ही लिखा है..सोचना मजबूरी भी थी और नियति भी.
            कई महीने बाद पहाड़ी वाले बाबा आए तो जाते जाते एक रिश्ता बता गए. घर में तीन बहनों पर एक लडक़ा था..जिन्दा मां-बाप और खुद का कारोबार .टेक्निीशियन बेटे के लिए पढ़ी-लिखी बहू की दरकार थी. जो चार लोगों के परिवार को संभाल सके. बात आगे बढ़ी तो अंजू के लिए रिश्ते की तलाश यहीं पर खत्म हो गयी. सच कहते हैं कि जोडिय़ां तो उपर वाला आसमान में बनाता है यहां जमीन पर तो लोग केवल रिश्ते जोड़ते हैं. धूम धड़ाके के साथ अंजू ससुराल चली गयी.. वहां जहां उसे नए लोगों को अपना परिवार बनाना था. जहां वह बहू थी एक घर की.                             
                     अब जन्म देने वाली मां की जगह सासू मां थी पद्मा. अंबरीश पद्मा का इकलौता बेटा था.इसलिए नयी बहू से सास के अरमान भी ढेर सारे थे. पद्मा अक्सर कहती- बहू जरा बड़ों के सामने संभल कर पांव डाला करो..लेकिन शहर में पली बढ़ी अंजू के लिए ऐसी बातें से खीझ होती. लड़कियां अंतरिक्ष में पहुंच गयीं और यहां घर में भी पांव संभाल कर रखना है..सास साड़ी पहनकर काम करने की जिद करती, अंजू नाइटी एवं गाऊन में कम्फर्ट महसूस करती. हर रोज ऑफिस से घर पहुंचने के बीच इस तरह के न जाने कितने ही खयाल अंजू के जेहन में तैरते रहते.आज सासूमां कुछ बोल न दे. वह हर बार कोशिश में यही रहती कि कोई शिकायत न हो. लेकिन होता कुछ और ही था. यह सिलसिला थमा नहीं बल्कि रिश्तों में नयी दरार बनाता हुआ हद से पार होता गया. वह भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करती रही..अंजू को आज लग रहा था मानो उसके रास्ते ससुराल वालों से अलग हैं, शायद सोच और जीने का तरीका भी..वह उस रास्ते पर चलना और जीना चाहती थी जिसमें तंग सोच न हो, नयी चीजों की जगह हो. उसका सम्मान हो. ..आखिर सुख और सहूलियत से जीने का हक तो सबका है. लेकिन अंबरीश का परिवार कुछ बंधुआ संस्कारों में जीने का आदी था. ससूर रंगनाथ भी पद्मा के की हां में हां के कायल थे.शायद सब एक ही रास्ते के मुसाफिर..या फिर एक जैसे..           

 शादी में मिले डायनिंग टेबल और कुर्सी को रंगनाथ कहते ये सब अमीरों के ठाट-बाट हैं..उन्हें फर्श पर बैठकर खाने में सुकून मिलता . उनकी अपनी दलील भी होती. बीस पचास हजार कमाने वालों के घर फ्रिज और वाशिंग मशीन चलेगा तो बचेगा क्या...-हाथ से कपड़े धोएंगे तो कौन से बाजू कट जाएंगे. अंजू कहती जब घर में सुविधाएं हैं तो उसका उपयोग करने में हर्ज क्या है. पद्मा चिल्ला उठती-चार दिन की बहूरिया होकर बड़ों से जुबान लड़ाती है .अंबरीश खामोश होकर सब कुछ सुनता रहता..अंजू को याद है कि तीन महीने पहले ननद के खिलाफ एक छोटी सी शिकायत क्या कर दी,  अंबरीश ने उसे ही कटघरे में खड़ा कर दिया था. तुम हमारे परिवार में कलह मचाना चाहती हो..मेरी बहन पर इल्जाम मत लगाया करो.. और भी न जाने क्या ..अबंरीश यह सुनने को भी तैयार नहीं हुआ कि आखिर उसके  बहन की गलती क्या थी.                     
             अंबरीश के घर वालों की प्रॉब्लम अंजू की नौकरी थी जिसे वह छोडऩा नहीं चाहती थी लेकिन पद्मा उसे गलत संगत का नतीजा करार देती. औरतें कमाती हैं तो मर्द की इज्जत नहीं रहती..बीबी के लिए मां का तंज अंबरीश को अंदर तक चीर जाता लेकिन वह बोल कुछ भी नहीं पाता. मां से नाराजगी का गुस्सा अक्सर वह बीबी पर निकाल देता.बात हद से गुजरी तो अंजू ने ससुराल छोड़ने का फैसला कर लिया.
             अंजू बेसुध मायके पहुंची तो मां मंजू का कलेजा कांप गया. मुश्किल मालूम हुई तो आंसू थमने से रहे. जिस घर में बेटी को सुख भोगने विदा किया उस घर से वह दुखी होकर लौट आए तो बेवा मां के पास रोने के सिवा और होगा भी क्या. वह सवाल पूछना चाहती थी कि आखिर उसकी बेटी का कसूर क्या है ..वह रोते  हुए जिद करने लगी..मेरे साथ चलो देखें तो सही कौन सा गुनाह कर दिया बेटी ने..लेकिन अंजू ने यह कहकर मां का और दिल बैठा दिया कि अब वह उस घर में लौटना नहीं चाहती. ब्याहता बेटी के भटकाव भरे इन शब्दों से मंजू अंदर तक थर्रा गयी थी. वह समझाना चाहती थी कि बेटी - इतनी जल्दी जिन्दगी का फैसला नहीं करते..सुख दुख-प्यार तकरार तो जीवन  का हिस्सा हैं. पति के साथ रहने में ही शादीशुदा औरत का सम्मान होता है. लेकिन बेटी की हालत देखकर वह चाहकर भी तत्काल कोई फैसले पर नहीं पहुंच सकी.

मायके में महीने भर गुजर गए लेकिन ससुराल से कोई खोज खबर लेने तक नहीं आया. इस हालत से मां मंजू व्याकुल थी कि कहीं अंबरीश ने हमेशा के लिए छोड़ दिया तो बेटी का क्या होगा. वह इश्वर से प्रार्थना करती कि वही कुछ रास्ता निकाल दे. वहां ससुराल में भी कम तकलीफें नहीं थी. बिना बताए बहू के घर छोड़ देने से ससूर रंगनाथ की खूब किरकीरी हुई. रिश्तेदारों में अंजू का घर छोड़ना बदनामी का बड़ा कारण बन गया. लोग पद्मा को भी ताने मारते. एक बहू को नहीं संभाल पायी..दो चार होतीं तो क्या होता.  अकेले रोटी तोड़ने की आदत है..तो भला बहू कैसे खपेगी. अनपढ़ पद्मा पर पढ़ी-लिखी और पैसे कमाने वाली बहू नहीं संभाल पाने का भी आरोप लगता. इसे तो गांव की देहाती गुलाम चाहिए थी. अंबरीश के चाल -चलन पर भी उंगलियां उठी. आदत बूरी होगी..वर्ना चार दिन की आयी बहू  घर और पति को छोडक़र थोड़े ही जाती. सवाल अंजू पर भी उठे. रंगनाथ को गहरा झटका तब लगा, जब बेटी के लिए रिश्ते ढूंढते समय परिवार के रहन सहन पर सवाल खड़े हो गए..सवाल सामाजिक प्रतिष्ठा का भी था ..चारो ओर से घिरे रंगनाथ ने पत्नी पद्मा को खूब खरी खोटी सुनाई. कुल पुरोहित ने भी समझाया-घर की इकलौती बहू को यूं मायके नहीं छोड़ते.रंगनाथ बहू को बेटी बनाकर रखना सीखो, वर्ना तु्म्हारी बेटी भी कल बहू बनकर जाएगी. सोचो यही हाल तुम्हारी बेटी के साथ भी ऐसा हो तो क्या होगा.कुलपुरोहित ने खुशहाल जीवन का मंत्र दिया. बहू को बेटी समझकर वापस बुलाओ, सारी टेंशन मिट जाएगी. अंजू के मायके जाने के बाद बेचैन बेटे की हालत का खयाल आया तो रंगनाथ की आत्मा व्याकुल हो उठी. उन्होंने सोंचा बहू नहीं आयी और मामला कानूनी दाव-पेंच में फंसा तो घर तबाह हो जाएगा. फैसला हुआ बहू को वापस बुलाने में ही भलाई है. वर्ना बेटियों की शादी में रोड़ा न फंस जाए.
           आज चार महीने बाद जब अंबरीश ससुराल पहुंचा तो पति को अरसे बाद सामने देखकर अंजू की आंखे डबडबा गयीं. वह दर्द का गुबार पीते  हुए उसके नैन बेदम होकर बह निकले. उसके मन में आया कि अंबरीश को पकडक़र पूछे कि आखिर उसने अपनी ब्याहता को लावारिस क्यों छोड़ दिया था..लेकिन पति को एक नजर देखने के बाद उसकी सारी हिम्मत हार गयी. गम का दबाव कम हुआ तो मंजू ने बेटी को सजा-सवांर कर बिदा किया. अंजू बिदा हुई तो इस बार उसके साथ अनुभवों के कई सिखावन और साथ गए..अंबरीश ने पत्नी की अवहेलना पर शर्मिंदगी जताई और गलतियां नहीं दुहराने का वादा किया. मंजू ने हाथ बढ़ाकर बेटी दामाद को गोद में भर लिया. आशीष के साथ गाड़ी गुबार छोड़ते हुए नयी उम्मीद और आशाओं के रास्ते पर रवाना हो गयी...अंजू और अंबरीश के लिए जिन्दगी का नया सफर शुरू हो गया था..

गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

भतीजे संग बोली UP की बुआ -हमें 'यूपीकोका' नहीं चाहिए


उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने जैसे ही विधानसभा में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) की तर्ज पर माफिया और संगठित अपराध से निपटने के कड़े प्रावधान वाला विधेयक यूपीकोका पेश किया जानी दुश्मन बने भतीजे और बुआ का सुर एक हो गया. बहती गंगा में कांग्रेस ने भी हाथ धो लिया. सबने जोर की आवाज लगाई..हमें गुंडे बदमास चाहिए..यूपीकोका नहीं. गजब के हैं सन्यासी मुख्यमंत्री योगी जी उन्हें नहीं पता जिसे जनता का खून पसंद है उन्हें कोका या यूपीकोका कहां भाएगा..लेकिन ये ठहरे सन्यासी..सबकुछ छटपट सुधारने के पीछे पड़े हैं. वे नहीं जानते कि यूपी की जनता जो गुंडों मवालियों और अपहरणकर्ताओं माफियाओं के प्रभाव में जीने की आदी हो गयी है वह इतनी जल्दी भला आपका बदलाव कहां हजम कर पाएगी.  यकीन नहीं हो रहा..तो .एन्टी रोमियो..का हश्र देख लीजिए..नादान थे योगी चले थे दूसरों की बहन बेटियों को सुरक्षित करने हालत ऐसी हो गयी कि मीडिया ने ऐसा घेरा कि उनकी खुद की कुर्सी सुरक्षित रखनी भारी पड़ गयी. हारकर एन्टी रोमियों अभियान से एन्टी होना पड़ गया. खैर बात यूपीकोका की हो  रही है, जिसको लेकर यूपी की बुआ और भतीजे आजकल एक हो गए हैं. जो विकास के नाम पर एकजुट नहीं हुए वे यूपीकोका पर एक हो गए हैं.एक सुर में राग अलाप रहे हैं तो कुछ तो बात होगी.  जानकार तो यही कहते हैं कि जिन पार्टियों की नींव में गुंडे बदमास और माफिए कंधा लगाकर खड़े हों वे भला ऐसे यूपीकोका का विरोध नहीं तो क्या योगी का अभिनंदन करेंगे. तो क्या वाकई योगी का कानून समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी या कांग्रेस के खिलाफ है..

जरा एक नजर डालते हैं..आप भी देखिए
सीएम योगी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण (यूपीकोका) विधेयक 2017 में आतंक फैलाने या बलपूर्वक, हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विस्फोटकों या अन्य हिंसात्मक साधनों का प्रयोग कर किसी की जान या संपत्ति को नष्ट करने या राष्ट्र विरोधी, अन्य लोक प्राधिकारी को मौत की धमकी देकर या बर्बाद कर देने की धमकी देकर फिरौती के लिए बाध्य करने के खिलाफ कड़े प्रावधान हैं। संगठित अपराध के खतरे को नियंत्रित करने के लिए संपत्ति की कुर्की, रिमांड की प्रक्रिया, अपराध नियंत्रण प्रक्रिया, त्वरित विचार एवं न्याय के मकसद से विशेष न्यायालयों के गठन और विशेष अभियोजकों की नियुक्ति तथा अनुसंधान संबंधी प्रक्रियाओं को कड़े एवं निवारक प्रावधानों के साथ यह विशेष कानून अधिनियमित किया गया है। फिरौती के लिए अपहरण, सरकारी ठेके में शक्ति प्रदर्शन, खाली या विवादित सरकारी भूमि या भवन पर जाली दस्तावेजों के जरिए या बलपूर्वक कब्जा, बाजार और फुटपाथ विक्रेताओं से अवैध वसूली, शक्ति का प्रयोग कर अवैध खनन, धमकी या वन्यजीव व्यापार, धन की हेराफेरी, मानव तस्करी, नकली दवाओं या अवैध शराब का कारोबार, मादक द्रव्यों की तस्करी आदि को इसके अंतर्गत रखा गया है। विधेयक में संगठित अपराध के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है। उपरोक्त प्रावधानों से ऐसा नहीं लगता कि यह किसी खास दल या समूह के खिलाफ है लेकिन  सपा और बसपा दोनों इसका विरोध कर रहे हैं. कारण साफ है यूपी में अधिकांश माफिया और भूमि हड़पने के मामले इन दो पार्टियों से ही जुड़े हैं. दोनों दलों के नेता जानते हैं कि यदि कानून लागू हुआ तो उनके लिए चुनावी फंड देने वाले सबसे पहले जेल की सलाखों के पीछे होंगे. यूपीकोका को गलत ठहराने वालों का कानून और न्याय व्यवस्था में विश्वास नहीं दिखता. उन्हें यह तो जरूर मानना चाहिए कि यदि यूपीकोका का गलत इस्तेमाल हुआ तो अदालतों में उसे चुनौती दी जा सकेगी.और यह यूपी सरकार के लिए बड़ी कसौटी होगी. संभव है इसका राजनीतिक इस्तेमाल हो लेकिन इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी जा सकती है.फिर हो हल्ला की जरूरत क्या है.

अखिलेश का तंज, बहन जी का डर...कानून का मजाक ..
 यूपीकोका नहीं ये धोखा है। फर्नीचर साफ करने के पाउडर को PETN विस्फोटक बताने वाले जनता को बहकाने में माहिर हैं ।  9 महीनों में बीजेपी ने जन सुरक्षा से खिलवाड़ करते हुए न सिर्फ समाजवादी 'यूपी100' और महिला सुरक्षा की '1090 हेल्पलाइन' को ,बल्कि समाजवादी विकास पथ पर बढ़ते प्रदेश को रोका है।  अखिलेश यादव ने यूपीकोका पर ट्वीट किया कि नए साल में जनता को उत्तर प्रदेश सरकार का तोहफा, सेल्फी लेने पर लग सकता है यूपीकोका। वहीं बसपा सुप्रीमो भी इसे राजनीतिक द्वेष का हथियार बता रही हैं, जिनसे उन्हें बड़ा खतरा पैदा हो गया है.

जब न्याय विभाग ने बनाया कानून तो एतराज क्यूं
उच्च न्यायालय में संगठित अपराधियों, माफियाओं और अन्य सफेदपोश अपराधियों की गतिविधियों पर नियंत्रण के सम्बन्ध में दायर याचिका पर 12 जुलाई 2006 को पारित आदेश के क्रम में माफिया की गतिविधियों तथा राज्य सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप पर अंकुश लगाने के लिए कानून का प्रारूप न्याय विभाग की सहमति से तैयार किया गया है। इस विधेयक में 28 ऐसे प्रावधान हैं, जो पहले से लागू गैंगस्टर ऐक्ट में शामिल नहीं हैं। प्रस्तावित कानून के तहत दर्ज मुकदमों की सुनवाई के लिये विशेष अदालतें बनेंगी। विधेयक के परीक्षण के लिए गृह विभाग के सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी। समिति द्वारा परीक्षण के दौरान उच्च न्यायालय के पारित निर्णय तथा महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून-1999 (मकोका) का भी गहन अध्ययन करके इस विधेयक का प्रारुप तैयार किया गया है। राज्य संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण खुद संज्ञान लेकर अथवा शिकायत होने पर संगठित अपराधियों की गतिविधियों की छानबीन करेगा और इसके लिए प्राधिकरण शासन की कोई भी फाइल देखने के लिये अधिकृत होगा।

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

यह मुल्क मेरा नहीं लगता


साहिर लुधियानवी का एक शेर सच लगता है फुटपाथ हर, गली का हर आशियां हमारा, रहने को घर नहीं है सारा जहां हमारा. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में लाखों लोग इसी हालत में जिंदा हैं. आजादी के 71 सालों बाद भी बापू के रामराज्य और लोहिया के समाजवाद के सच से दूर किसी कल्पना में..फंटासी में. इसके लिए दोषी चाहे नेता हों, मंत्री या सरकार लेकिन इतना तो सच है कि स्वाधीनता की आधी सदी से ज्यादा गुजरने के बाद भी देश का आम आदमी आज भी रोटी-कपड़ा और मकान की जद्दो जहद में लगा है. रात का चूल्हा जलाने के लिए सुबह से नाका-चौराहों पर हाथ फैलाए खड़ा रहता है. एक अदद छत की तंगी में सडक़ फुटपाथों पर सोता है. रोजी की बदहाली से रातों को फांका करता है..बच्चों से भीख मंगवाता है, और खुद भी हाथ फैलाने को मजबूर होता है.
गूगल से साभार
कौन कहता है कि यह देश एक है, समाज एक है. दर्द एक है. यहां तो हरेक दिल के भीतर अपनी-अपनी दुनिया है. अपना-अपना देश है. ऐसे में लोकतंत्र समाजवाद की छाती से निकला हुआ एक छल नहीं तो क्या है. यहां लोग मरने को मजबूर हैं फिर भी समाजवाद जिंदा है. घोषणाओं में, भाषणों में.तहरीरों में.किताबों में...अगर ऐसा नहीं होता तो लोहिया के शिष्य और समाजवाद के मसीहा मुलायम सिंह यादव भला अपने उत्तम प्रदेश में अपनी ही रियाया का दुख दर्द भला क्यों नहीं महसूस किए होते. उनके गांव का सैफई महोत्सव तो आप को जरूर याद होगा. एक तरफ जहां चढ़ती हुई सर्दियों की धुन पर रात जवान हो रही थी और गुलाबी हो रहा था गणतंत्र, वहीं मुजफ्फर नगर के उखाड़े गए शरणार्थी शिविरों में सांय-सांय चलती हवा धंसती जा रही थी हड्डियों में. उजड़ी हुई दयार में बच्चों की उधड़ी हुई पीठ से टकराकर थरथरा रही थी सर्दी..ऐसे में बादशाह को तय करना था कि वह रियाया की कंपकपी महसूस करे या कलाकारों के बिके हुए ठुमकों पर दाद दे..

चंद मिनटों की खरीदी गयी चंद कदमों की कलाओं पर मुलायम ने करोड़ों लुटा डाले और खुले बेछत शिविरों में बच्चे बिलखते रहे भर पेट भात के लिए, छटाक भर दूध के लिए और एक चटाई छत के लिए. इस भय के साथ कि सोते हुए कोई गरदन न उतार ले जाए..क्या बहुत ज्यादा मांगते हैं हूजूर..सच कहना. लेकिन राजा होकर भी तो आखिर कुछ नहीं दिया आपने..उस रियाया के लिए, जिसके वोट पर आप नरेश बने..मायावती जिसे सब बहनजी कहते हैं. लेकिन ऐसी बहन हैं जिन्हें यूपी के सड़क फुटपाथों और गलियारों में फांका करता कोई भावी आंबेडकर नहीं दिखता. बहुमत की जीत के बाद आपने जनता को दलित-पीड़ित और भाई-बहन कहा..लेकिन कुर्सी और सत्ता की चकाचौंध ऐसी चली कि आपने अपनी दीन-दलित रियाया की भूख और बीमारी मिटाना भूलकर खुद का बुत बनाने बैठ गयीं..एक तरफ अवाम नून तेल के लिए पैसे-पैसे को तरसती रही, और आप नोटों का नवलखा हार पहनकर खूब इतरार्इं..

अंग्रेजों से आजादी दिलाने वाली कांग्रेस के युवराज आप ने भी कमाल कर दिया..आप सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए हैं लेकिन जब आपने गरीबों की वकालत और राजनीति शुरू की तो लगा कि आप कुछ और करने की सोंच रहे हैं लेकिन सच में आपने भी वही किया.आप दलितों, मुस्लिमों और हिन्दुओं के बीच नयी खाई बना रहे हैं. आप के परिवार की यही रीत रही है. आप रीत को आगे बढ़ा रहे हैं, क्योंकि आप जानते हैं कि यह खाई जितनी बड़ी होगी आप की जीत का सिलसिला उतना ही गहराता जाएगा....आम लोगों में उजले भविष्य का सपना जगाकर आपने बची अस्मत भी लूट ली. अब तो आम आदमी भी केजरीवाल के पास चला गया. और केजरीवाल जी आम से अचानक खास हो गए हैं. आप चूल्हे की आग छीनने में लगे हैं. मसीहा बने फिर रहे हैं. यूपी में एक सन्यासी के हाथ में सत्ता है. वह कहते हैं कि उन्हें कोई लालच और आसक्ति नहीं. फिर सीएम की कुर्सी पर बैठकर शासन करना सत्ता लोलुपता नहीं क्या है.खैर खजाने से जनता की सेवा कितना करेंगे यह परीक्षा होनी बाकी है. आप के सन्यास और त्याग की कसौटी बाकी है.

परीक्षा देश के मुखिया और नए सम्राट की भी है जो दो कदम और आगे तक सोंचते हैं. सपनों के भंवर में यात्रा करा रहे हैं. खुशहाली और अच्छे दिनों के सपने बेचते हैं ..लेकिन असल हालात पर इनका काबू नहीं है. महंगाई और बेकारी का कलंक लगना ही है. नारों और आश्वासनों की अफीम चटाने वाले ऐ मसीहाओं सुनो! आप   जनता के पैसों पर विदेश जाते हो, वहां का लोकतंत्र देखने. लेकिन यहां अपने रियाया की सिसकियां नहीं सुनते..उनके आंसू नहीं देखते? विदेशों की धरती पर कुछ होते ही तुम ट्विटर पर संवेदना और संदेश लिखते हो लेकिन अपने लोगों का दर्द देखकर आपको दर्द तक नहीं होता...क्यों होना चाहिए..आखिर कुछ भी तो नहीं होता. लोग मार डाले जाएं, क्या हो गया. घर जला दिए जाएं,  क्या हो गया? उजाड़ दिए जाएं,  क्या हो गया? 125 करोड़ की आबादी वाले देश में 100-पचास को मार दिया जाना, सैकड़ों का उजाड़ दिया जाना, क्या होता है? क्यों मचनी चाहिए खलबली.
आप अपने जन्म दिन पर करोड़ों फूंक डालते हैं. आप की उड़ रही सोखियों के बीच हजारों मांएं चूल्हे की आंच पर गिन रही होती हैं रोटियां..अम्मा लगाती रहती है हिसाब कि जले हुए मकान पर फूस डालने के लिए कितने वक्त और काटनी होगी बच्चों की पेट.
 आखिर लोकतंत्र इतना बेचारा कैसा हो गया है, जहां एक तरफ लोग भूख और बेकारी से मर रहे हैं वहीं कोई ऐश कर रहा है..इस समाजवाद का मतलब क्या है. संविधान की दी हुई चुनावी नियामतों के जरिए जनता का शासक बनने वाले नेताओं के लिए जनता का मतलब क्या केवल वोट लेना है.. .सच कहो हाकिमों, क्या वाकई हमारे बच्चों की तरसती आंखें आपसे अपना होने का हिसाब नहीं मांगती हैं, जब आप सम्राट बनकर इतराते हो और उनकी अंतड़ियां भूख से बिलबिलाती हैं. लोक तंत्र और समाजवाद के विधाताओं बताओ ना, अगर यह मुल्क मेरा भी है तो मेरा लगता क्यूं नहीं? 

रविवार, 26 नवंबर 2017

वो निज देश हित पाक से दौड़ आए, घुसे ताज में कितना तांडव मचाए

(26-11 की त्रासदी के बाद शब्दों में उतरी हुई एक वेदना)


वो निज देश हित पाक से दौड़ आए
घुसे ताज में कितना तांडव मचाए
कई जानें ली,खून कितना बहाए
 कई गोद, माँगों को सूना बनाए..


. .........00000.......
पर अपुन सोचते क्यों मुसीबत बढाएं.
निरर्थक ही पैसा-समय क्यों गवाएं॥
व्यवस्था से क्यों ब्यर्थ पंगा लड़ाएं,
जो खाली हैं वे खुद करें या कराएं ।

यही है वजह जिससे मुश्किल बढ़ी है.
हैं कहते सभी बस हमें क्या पड़ी है ॥

 हैं सब सोचते कोई आएगा पहले.
सोते हुओं को जगाएगा पहले ।
संकट हमारा मिटाएगा पहले ,
नया रास्ता खुद दिखाएगा पहले ॥


बताओ यही हाल कब तक चलेगा.
मिटाए बिना मर्ज कब तक मिटेगा,
बिना बीज बोए कहां फल मिलेगा
पतित हो रहा हिन्द कैसा उठेगा ॥

अब केवल नहीं काम कहने से होगा,
ना नेता, नियति को उलहने से होगा.
झुका शीश हरदम न सहने से होगा
स्वयम के लिए स्वयं करने से होगा॥


ये है देश अपना बताना पड़ेगा .
यहां फर्ज सबको निभाना पड़ेगा,

जरूरत पड़ी जख्म खाना पड़ेगा
लहू देश हित निज बहाना पड़ेगा
चिता भी स्वयं की सजाना पड़ेगा
औ रोते हुए गीत गाना पड़ेगा ॥

आओ पहल आज मिलकर करें हम
जहां जुल्म होवे,हों मिलकर खड़े हम
      सबको लिए साथ मिलकर चलें हम.....

-सुधीर शर्मा- 

ओ बंधु चल, ओ साथी चल..ऐसे ही सोए रहे तो पछताओगे कल.


ओ बंधु चल, ओ साथी चल.
ऐसे ही सोए रहे तो पछताओगे कल..।
ओ बंधु चल, ओ साथी चल..........।।



 जब लाखों ने जान गंवायी,
 तब भारत ने आजादी पायी..
यूं भूले तो हो जाएगी कुर्बानी निष्फल..ओ बंधु चल..।।1।।



रोटी-कपड़ा और दवाई,
छीन रही सब कुछ महंगाई..
चूल्हे में अरमां जले और खुशहाली हर पल.ओ बंधु चल.।।2।।


राजनीति का थोथा दावा,
सब वादा, उत्थान छलावा..
चुप बैठे तो ये नेता जाएंगे देश निगल..ओ बंधु चल..।।3।।


आरक्षण ने फिर ललकारा..
संघर्षों में कौशल हारा....
वर्षों से बन रहे हैं हम, बहकावे में पागल..ओ बंधु चल..।।4।।


ऐसे ही सोए रहे तो पछताओगे कल...
.....ओ बंधु चल, ओ साथी चल.....






सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

कविता उत्पादन नहीं हृदय से पैदा होने वाला सृजन है, साहसी मन ही लिखता है कविताएं


राजीव सारस्वत सम्मान समारोह में सत्कारमूर्ति प्रो.रामजी तिवारी का प्रतिपादन
नवी मुंबई, मानव समाज को व्यवस्थित, अनुशासित और सुसंस्कृत रखना है तो साहित्य को सुरक्षित रखना होगा. क्योंकि साहित्य के बिना समाज और संस्कृति नहीं बच सकते. उक्त उद्गार वरिष्ठ साहित्यकर्मी प्रो.रामजी तिवारी ने कोपरखेरणे में आयोजित राजीव सारस्वत सम्मान समारोह 2017 में व्यक्त किया. राजीव सारस्वत 26/11 मुंबई आतंकी हमले में शहीद हो गए थे . उनकी स्मृति में श्रुति संवाद साहित्य कला अकादमी हर साल एक कवि एवं साहित्यकर्मी को सम्मानित करती है. 2017 का राजीव सारस्वत सम्मान प्रो. रामजी तिवारी को प्रदान किया गया.कवि आसकरण अटल को जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यहां अपने संबोधन में वरिष्ठ साहित्यकर्मी प्रो.तिवारी ने कहा कि राजीव सारस्वत सम्मान एक साहित्यकर्मी और उसके कवि कर्म को याद करने का माध्यम है. कवि राजीव सारस्वत की शहादत में उनके कविकर्म को यादगार और आन्दोलन बना देना सबसे बड़ी साहित्य सेवा है. अतिथियों में महाराष्ट्र राज्य साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. नंदलाल पाठकएचपीसीएल के निदेशक प्रदीप कुमार अग्रवाल,   बिल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेन्द्र कारिया, एचपीसीएल के मुख्य महाप्रबंधक अभिषेक दत्ताअरुप भट्टाचार्यनरेश कुमारराम विचार यादवश्रुति संवाद के अध्यक्ष अरविंद राहीमहासचिव अनंत श्रीमालीमारकंडेय हरिओमअनिल सिंह समेत तमाम लोग उपस्थित थे.

साहित्य की उपेक्षा करने वाला राष्ट्र उपेक्षित हो जाता है..

 प्रो.तिवारी ने एक उदाहरण देते हुए कहा- एक बार मशहूर लेखक आस्कर वाइल्ड से पूछा गया कि उन्हें सेक्शपीयर और ब्रिटेन में से किसी एक को चुनना हो तो वे किसे चुनेंगे. आस्कर वाइल्ड का जवाब था..सेक्शपियर. सवाल उठा क्यों? आस्कर वाइल्ड ने जवाब दिया कि साहित्यकार सेक्शपियर को त्याग दिया तो ब्रिटेन नहीं बचेगा. लेकिन  यदि सेक्शपियर रहा तो ब्रिटेन को फिर बनाया जा सकता है.आस्कर वाइल्ड का यह जवाब किसी देश के लिए साहित्य की अहमियत को रेखांकित करता है. इसका हवाला देते हुए प्रो. तिवारी ने कहा कि कविता सृजन की अभिव्यक्ति है जो हृदय से निकलती है. यह कोई 'उत्पादननहीं है जो किसी के कहने पर पैदा की जा सके. इसलिए काव्य लिखना आसान नहीं है. निर्भय, निर्द्वंद और साहसी हृदय से ही काव्य का सृजन हो सकता है, भयभीत मनवाला कोई कविता और साहित्य नहीं लिख सकता. वहीं महाराष्ट्र साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष डॉ. नंदलाल पाठक ने कहा कि साहित्य की उपेक्षा करने वाला राष्ट्र खुद उपेक्षित होकर एक दिन मिट जाता है. जो राष्ट्र आज दुनिया में नहीं है इसका सीधा अर्थ है कि उन्होंने साहित्य की उपेक्षा की. साहित्य होता तो वे फिर जिवंत हो सकते थे.

रविवार, 1 अक्टूबर 2017

जो अपनों को मरवा कर रोती है वही तो राजनीति है...कविता

एक सज्जन ने राजनीति क्या है जानना चाहा,
मैंने कहा आइए बताता हूं,
राजनीति का एक प्रयोग समझाता हूं..
किसी भी भागते हुए चूहे को दौड़ाइए, और..पत्थर उठाकर उसे मारिए..फिर
मरने पर उसे हवा देकर गोबर सुंघाइए..
यूं ही किसी को भी मरवा दीजिए जान से.
और चिता के पास बैठकर रोते हुए कहिए इत्मीनान से,
आज के हालात कितने अजीब हैं,
हमारे अपने ही लोग हमसे बिछड़ते जा रहे हैं,
हम कितने बदनसीब है..
साथ ही घड़ियाली आंसू  बहाइए, ताकि
लोग समझ सकें कि वाह मुर्दे के साथ भी कितनी  प्रीति है,
पर उन्हें क्या पता, यही तो आज की राजनीति है..।।


--सुधीर शर्मा

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

जब जम्हूरियत से जन्नत में, आतंकी गले मिले.-.तो भारत कैसे न जले.

कविता..
 ...तो भारत कैसे न जले

कल कारखाने नित बंद हो रहे हैं यहां,
रोजी रोटी रोजगार हित हड़ताल है..
नोटबंदी, रेरा और जरिए जीएसटी यहां,
सरकार उद्यमों की खींच रही खाल है..
जब गांवों में बूझें चूल्हे, औ संसद उबले.
                       ..तो भारत कैसे न जले..1


राम औ रहीम, राष्ट्रवाद है फसाद बना,
आज सद्भाव पड़ रहा कमजोर है..
न्याय-नीतियों की यहां धज्जियां हैं उड़ रहीं,
नेता औ सिपाही हर कोई बना चोर है....
जब कर्ज और बदहाली से हलधर का दम निकले..
जब नेता हों मालामालऔ जनता भूखे पेट पले.
                                         ..तो भारत कैसे न जले...2



तीन सौ सत्तर की बेड़ियों से बंधा हुआ,
पाप ये सियासी भोग रहा कश्मीर है...
दहशत सीख रहा वादियों का नौनिहाल,
निज हथियार लिख रहा तकदीर है...
जब जम्हूरियत से जन्नत में
आतंकी गले मिले....
....तो भारत कैसे न जले...3

सारी वसुधा को जो कुंटुंब मानता रहा,
पड़ रही उस हिन्दुस्तान में दरार है..
विष भरे संत मौलवियों के बयानों से ही,       
आज कौमी एका हो रही ये तार तार है...
जब राजनीति ही गोवंशज- पहलू की जां निगले.

                                       ...तो भारत कैसे न जले...4

                          -सुधीर शर्मा