शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

बताओ, यही हाल कब तक चलेगा.....

वे निज देश हित पाक से दौड़ आए
घुसा ताज में कितना तांडव मचाए
कई जानें ली,खून कितना बहाए
कई गोद,घर-माँग सूना बनाए...॥।1
हमें भी वतन निज बचाना पड़ेगा
सभी रावणों को भगाना पड़ेगा
पुन: राम केशव बनाना पड़ेगा
हरेक पहरूओं को जगाना पड़ेगा ॥।2॥

हैं सब सोचते क्यों मुसीबत बढाएं.
निरर्थक ही पैसा समय क्यों गवाएं॥
व्यवस्था से क्यों व्यर्थ पंगा लड़ाएं,
जो खाली हैं वे खुद करें या कराएं ॥।3॥।

यहां पास अपने मसाइल खड़ी है.
दवा-रोजी रोटी की आफत बड़ी है।
यही है वजह जिससे मुश्किल बढ़ी है.
हैं सब सोंचते, बस हमें क्या पड़ी है ॥।4॥

हैं, सभी सोचते कोई आएगा पहले.
नया रास्ता खुद दिखाएगा पहले
सोते हुओं को जगाएगा पहले ।
संकट हमारा मिटाएगा पहले॥।5॥।

हम उस मसीहा के पीछे चलेंगे.
अपना किए नैन नीचे चलेंगे ॥
कायरता मन में उलीचे चलेंगे,
मगर लक्ष्मण रेखा खीचे चलेंगे॥।6॥।

बताओ यही हाल कब तक चलेगा.
मिटाए बिना मर्ज कब तक मिटेगा,
बिना बीज बोए कहां फल मिलेगा
पतित हो रहा हिन्द कैसा उठेगा ॥।७॥।

अब केवल नहीं काम कहने से होगा,
ना नेता नियति को उलहने से होगा.
झुका शीश हरदम ने सहने से होगा
स्वयम के लिए स्वयं करने से होगा॥॥।८॥।

जरूरत पड़ी जख्म खाना पड़ेगा
लहू देश हित निज बहाना पड़ेगा
चिता भी स्वयं की सजाना पड़ेगा
रोते हुए गीत गाना पड़ेगा ॥।10॥।

आओ पहल आज मिलकर करें हम
सबको लिए साथ मिलकर चलें हम
पतित इस व्यवस्था से आओ लड़ें हम
जहां जुल्म होवे, हों मिलकर खड़े हम .....

सोंच कर तो देख पगले, जा रहे हैं हम कहां


फोटो-गूगल से साभार
बढ़ रहे हैं पंथ मजहब, आस्था है घट रही.
आदमी हैं बढ़ रहे, पर आदमियत घट रही:
कौडिय़ों में हैं लगे, इमान भी बिकने यहां ।
सोंच कर तो देख प्यारे जा रहे हैं हम कहां  ॥

राजनीति और नेता से, न आशा कुछ रही,
नींद व उम्मीद टूटी, ना दिलासा कुछ रही.
वोट लेकर हो गये, वो कातिलों के हमनवां ..

पद-प्रतिष्ठा और पैसे हित, मनुज है मर रहा,
दूर्गुणों से जेब अपनी, त्याग सदगुण भर रहा.
भोग लिप्सा में रहे, इंसानियत सब हैं गवां .3.
सोंच कर तो देख पगले जा रहे हैं हम कहां....
                         
बंद हैं कल-कारखाने, मिल बड़ी छोटी यहां,
त्रस्त हैं जन ढूंढते, धंधा, गयी रोटी कहां.
जुर्म से जुडऩे लगे,रोटी से लड़ते नौजवां   ॥

शहर आया गांव तो, गुलजार मयखाने हुए,
नौजवां परदेश में, चौपाल बीराने हुए.
हल हुआ घायल,किसानों का भी बिखरा कारवां ॥
सोच कर तो देख पगले, जा रहे हैं हम कहां....।।।

मंगलवार, 5 जनवरी 2016

'इल्लीगल को लीगल बना दो साहब'

संदिप नाईक की गवर्नर से गुहार

गवर्नर से मिले सागर नाईक, संजीव नाईक, महापौर सोनावणे, संदिप नाईक
नवी मुंबई,  दिघा में चल रही तोड़ू कार्रवाई को रोकने के लिए स्थानीय राकां विधायक संदिप नाईक आज कल हर मंत्री-महकमा का दरवाजा खटखटा रहे हैं जहां से कोर्ट की कार्रवाई को रोका जा सके. मंगलवार को  उन्होंने गवर्नर सी. विद्यासागर राव को निवेदन देकर अवैध घरों को बचाने की गुहार लगाई. संदिप नाईक अवैध निर्माण के आरोपी नगरसेवक नवीन गवते संग मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से भी मिले और जमींदोज हो रही इमारतों को बख्शने की अपील की.कुछ उपाय ढूंढ़ने की याचना दुहरायी. बाद मुलाकातों के बताया गया कि राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों ने ही पीड़ितों के हित में सकारात्मक पहल का भरोसा दिलाया है. आप को याद दिला दें कि यहां 96 इमारतें अवैध घोषित की गयी हैं. बांबे हाइकोर्ट ने 4 महीने पहले सभी बिल्डिंगों को ध्वस्त करने का आदेश दिया है.इन्हें बनाने वाले आरोपियों के खिलाफ भी आपराधिक मामला बना है.नवीन गवते उनमें से एक हैं जिन्हें साथ लेकर विधायक मंत्री-महकमों में हाथ जोड़ रहे हैं. बताया जाता है दिघा में सबसे अधिक अवैध इमारतें नवीन गवते ने बनवायी है.उनकी नगरसेवक बीबी अपर्णा गवते, सहित कई परिजनों पर भी आरोप है. गवते समूह खुद का नाम और कमाई बचाने छटपटा रहा है. गरीबों की बर्बादी को आगे कर भूमाफिया अवैध इमारतों को बचाना चाहते हैं क्योंकि राहत सिर्फ इमारतों को नहीं आरोपियों को भी मिलेगी...इसलिए राजनीति भी खूब चल रही है. राजनीतिक विरासत भी दांव पर लगी है, सो विधायक भी मदद के नाम पर इल्लीगल को बचाने राहत संघर्ष में कूद पड़े हैं.

साथ-साथ भटक रहे पूर्व एमपी-महापौर

अवैध का निर्माण और उसे संरक्षण देना दोनों लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951के खिलाफ है.ऐसे लोग भी अपराधी माने जाते हैं. उनके पद को रद्द करने का भी कानूनी प्रावधान है. हालांकि सिर्फ राजनीतिक विरासत बचाने की मजबूरी के चलते राकां के बड़े स्थानीय नेता पूर्व सांसद संजीव नाईक और पूर्व महापौर सागर नाईक भी नगरसेवक गवते के साथ घूम रहे हैं. वर्तमान महापौर सुधाकर सोनावणे भी समर्थन में पीछे पीछे चक्कर लगा रहे हैं. बताया जा रहा है कि विरोधी पार्टी के मुख्यमंत्री फडणवीस से ज्यादा मदद की गुंजाइश नहीं दिखने का कारण अब राज्यपाल से गुहार लगाई जा रही है ताकि मानवीय आधार पर अवैध मकानों और आरोपियों को बचाने का मामला कुछ दिन और खिंचता रहे...विरोधियों का आरोप है कि यह सब काली कमाई करने वाले नगरसेवकों को बचाने की कवायद है जबकि एनसीपी विधायक संदिप नाईक इसे सथानीय रहिवासियों के आशियाने को बचाने की पहल मानते हैं. उन्होंने कहा यह राजनीति नहीं है..लोगों को बेघर होने से बचाने का प्रयास है..कोई क्या कहता है इससे फर्क नहीं पड़ता..लेकिन सवाल उठता है कि आखिर गैरकानूनी काम करने वालों को बचाना कितना जायज है..

सोमवार, 4 जनवरी 2016

घर टूटा तो लीगल होने का मतलब समझ आया...



दिघा में कार्रवाई रोकने रहिवासियों का रास्ता रोको 
तोड़ू कार्रवाई से बेघर होने की पीड़ा झेल रहे नवी मुंबई के सैकड़ों  परिवार रात की नींद और दिन के चैन के लिए मोहताज हो गए हैं. आशियाना छिना है तो जीना भी हराम हो गया है. पतपेढी, नीजी बैंकों और साहूकारों से ब्याज पर पैसा उठाकर घर खरीदना घाटे का इतना बड़ा सौदा साबित हुआ है कि जिन्दगी रहते इसकी भरपाई नजर नहीं आती. दिघा के संतोष ने कहा कि बेघर होना और भाड़ा चुकाते हुए कर्ज भरना भारी संकट बन गया है.दिघा में इस बार न तो दिवाली मनी न तो छठपूजा हुई. ये वो इलाका था जहां इन त्यौहारों पर सबसे ज्यादा आतिशबाजी और धूम धड़ाका होता था, लेकिन उजाड़ कार्रवाई ने सबको सड़क पर ला छोड़ा है फिर त्यौहार मनाएं भी तो कैसे....

न टूटने वाला मकान चाहिए भाई ..

घर टूटने के बाद का नजारा..जहां हरियाली और बेबसी बिखरी पड़ी है
सस्ता घर खरीदकर खो चुके लोग कहते हैं कि अब समझ में आया है कि लीगल होने का मतलब क्या होता है. पीड़ित लोगों के लिए  वैध मकानों की अहमियत तब समझ आयी है जब उनके पास फूटी कौड़ी तक नहीं है. जब थी तब सस्ते की लालच में अवैध को पाने का जोखिम उठाया, और अब जब सब कुछ लुट गया है, तो बचा है सिर्फ पछतावा. आंसू और गम... अब ऐसी इमारतों की दरकार हो उठी है जो सस्ती भी हो और लीगल भी. जानकार सवाल उठाते  हैं कि आखिर कौन ऐसा है जो सुरक्षित आशियाना नहीं चाहता है. गरीब आदमी तो इल्लीगल घर तब खरीदता है जब वो औकात और बजट से बाहर की बात हो जाती है. इसीलिए तो मजबूरन जोखिम उठाते हैं लोग. खैर इसे कानून नहीं समझता..अगर बात समझ में आती तो कोर्ट किसी सभ्य रहिवासी को दूबारा खानाबदोस क्यों बनाता. सड़कों पर सोना आखिर खानाबदोस जीवन ही तो है साहब.... इन हालातों को देखकर हर किसी के कान खड़े हो रहे हैं जो अब तक साबूत बची अवैध इमारतों में रहते हैं. कल उनकी बारी आने वाली है. बहरहाल सड़क पर आने से पहले ही भयभीत रहिवासी सुरक्षित ठिकाना ढूंढ रहे हैं. लोग ऐसे घरों की तलाश में हैं जो पूर्णत: लीगल हो और जिसके टूटने की गुंजाइश भी न हो..वर्ना आसमान से टपके और खजूर पर लटके वाली कहानी हो जाएगी..फिलहाल कोई भी ऐसा नहीं है यहां जो यह कहानी बनने की हालत में दिखता हो...

तोड़ू कार्रवाई से डी-रेल हो गयी है जिंदगी 

बुलडोजर के दर्द ने जिन्दगी की गाड़ी को बेपटरी पर ला दिया है. ..49 वर्षीय सुभाष के मन में अक्सर खुदकुशी का फितूर घूमता है. वह रोते हुए कहता है साहब '' 3 बच्चों का चेहरा यादकर भाड़े की झोपड़ी में लौट आता हूं वर्ना जीने का मन ही नहीं करता'...65 साल की सीताबाई दो बेटों के साथ एक झोपड़ी में अधमरी पड़ गयी है. इस पर टूट चुकी बिल्डिंग और बेघर होने का भारी सदमा पहुंचा है. सीताबाई का छोटा बेटा सुरेश कहता है कि भ्रष्ट अधिकारियों व कथित समाजसुधारकों ने हम गरीबों की जिन्दगी में जहर घोल दिया है. मिल जाएं तो उनका खून पी लूंगा. टूटा दिल, और बिखरे सपने लेकर 3 महीने से सड़क हासिए पर सो रहा सुनिल बेघर होने को तकदीर का तकाजा मानता है. वह कहता है कि नवी मुंबई में बड़े बड़े बिल्डरों ने कितनी ही अवैध इमारतें बना रखी हैं,  कोर्ट कचहरी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाते, हम गरीब सस्ता मकान क्या खरीद लिए, साला आफत आ गयी है. यहां तो अपना नहीं अंग्रेजों का राज लगता है..

शनिवार, 2 जनवरी 2016

दीवारों पर बस कैलेन्डर बदला बदला है

शाम वही थी, सुबह वही, नया-नया क्या है
दीवारों पर बस कैलेन्डर बदला बदला है

उजड़ी गली, उबलती नाली, कच्चे-कच्चे घर
कितना हुआ विकास लिखा है केवल पोस्टर पर
पोखर नायक के चरित्र सा गंदला गंदला है..
दीवारों पर बस कैलेंडर बदला बदला है..

दुनिया वही, और वही है दुनियादारी भी
सुखदुख वही,वही जीवन की मारामारी भी
लूटपाट, चोरी मक्कारी धोखा घपला है
दीवारों पर बस कैलेंडर बदला बदला है...

शाम खुशी लाया खरीदकर ओढ़-ओढ़ कर जी
किंतु सुबह ने शबनम सी चादर समेट रख दी
सजा प्लास्टिक के फूलों से हर इक गमला है..
दीवारों पर बस कैलेंडर बदला बदला है

भारतीयों, निष्क्रिय लोकतंत्र की नींद से जागो

 कलाम के जरिए सुकरात ने भेजा संदेश
         
फोटो-गूगल से साभार

दुनिया में कुछ ऐसे लोग आए हैं जिन्होंने अपने विचारों और कार्यो से समाज को नयी दिशा और नयी चेतना दी है. जीने का नया रास्ता दिखाया. नयी सोंच के जरिए चीजों को नयी पहचान और परिभाषा दी. लोग पहले उन पर हंसते और तंज कसते थे लेकिन अब उनमें से कई लोग पूजे जाते हैं. दोस्तों उनमें से कईयों के नाम आप भी जानते हैं...बापू, गौतम, कबीर, सुकरात, मोहम्मद, ईसा आदि आदि आदि..एक विशेष इंटरव्यू में देश के पूर्व राष्ट्रपति एवं वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम से सवाल किया गया था कि यदि वे दिवंगत  दार्शनिक सुकरात से मिलेंगे तो उनसे क्या पूछना चाहेंगे.कलाम का जवाब था -

   भारत में अलग-अलग मतों और जातियों वाला 100 करोड़ से अधिक लोगों का लोकतंत्र है. इनमें से लाखों लोग संसद और विधायिका में चुने जाने के तरीके में माहिर हो चुके हैं. उन्होंने सत्ता में सदैव बने रहने का तंत्र भी विकसित कर लिया है. इनमें देश के सामान्य लोगों के  जीवन में किसी वास्तविक बदलाव की अपेक्षा सत्ता की पुर्नप्राप्ति से ज्यादा लगाव हो गया है. जबकि साधारण लोगों के पास इस दायरे को तोडऩे का कोई विकल्प नहीं है. आम लोग अपने परिवारों के लिए दो वक्त का भोजन जुटाने में मशरूफ हैं. इसलिए वे बगावत का झंडा उठाने में कमजोर और दब्बू हैं. निराशावाद ने उनके दिमाग को कुंठित कर दिया है. मुझे क्या करना चाहिए?
मिसाइल मैन कलाम ने सुकरात के हवाले से जवाब भी दिया..
-सुकरात मुझसे कहेंगे-जाओ और भारत के नौजवानों को बताओ कि वे सामाजिक सामंजस्य के साथ विकसित देश में रहने का विजन पैदा करें.  दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र के प्रबुद्ध नागरिक के तौर पर उठ खड़े हों. स्वार्थी शासक वर्ग की गुलामी से बाहर निकलें, निष्क्रिय लोकतंत्र की नींद से जागें. विकसित राष्ट्र के रुप में भारत की नियति के आविर्भाव की दिशा में आगे बढ़ें और हिन्दुस्तान के वैभव और सौभाग्य को मूर्त रुप देने का उत्तरदायित्व निभाएं.

म मीडिया इन्टेलिजेंस नेटवर्क के माध्यम से सुकरात का यही संदेश आप सब तक पहुचाना चाहते हैं .आप को बताना चाहते हैं कि बस अब बहुत हो गया. उठिए और भारत को विकसित राष्ट्र बनाने अपने सक्रिय और सकारात्मक योगदान में जुट जाइए. सावधान,क्योंकि आप का अपना देश भारत सम्प्रभुता और सुरक्षा के एक अदृश्य संकट से गुजर रहा है. इस संकट को दूर करने आप को सिपाही बनकर लडऩा है. हालात को ठीक करने का बीड़ा उठाना है. अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करनी है. मनमानी पर सवाल पूछना है. खोया हुआ हक मांगना है. मैं आह्वान करता हूं कि अब बैठें नहीं निकल पड़ो राष्ट्रचेतना के अभियान में मीडिया इन्टेलिजेंस के साथ, अपने यार-दोस्तों के साथ चमन के लिए -मादरे वतन के लिए..........

ऐसा मत सोंचो कि आप के एक अकेले करने से क्या होगा. बापू अहिंसा के मार्ग पर अकेले चले. मोहम्मद साहब ने नेकी के लिए अकेले कदम बढाया.  बाबा साहब आंबेडकर ने छुआछूत के खिलाफ अकेले लड़ाई शूरु की. फिर लोग आते गए और कारवां बढ़ता गया. उनमें और हममें सिर्फ एक अंतर है. उनमें हौसला था लडऩे का, आवाज उठाने का. उनमें हौसला था कुछ नया और बेहतर करने का. उन्होंने अपने हौसले पर संघर्ष किया. आप भी अपने हौसले को आजमा कर देखो. चमत्कार होने लगेगा. हौसले का सिर्फ एक दिया जलाकर तो देखो, चारो ओर रोशनी हो उठेगी. क्योंकि आप को देखकर कई और भी लोग होंगे जो अपने हौसले का दीया जलाएंगे. यकीन मानिए जैसे दिवाली में आप किसी को बोलने नहीं जाते कि छत पर दीया जला देना क्योंकि दिवाली हैं. फिर भी सब अपनी मुंडेर पर दिया खुद जला देते हैं और फिर आप देखते हैं कि पूरा मुहल्ला और पूरा शहर दिवाली की रोशनी में नहा जाता है.  मेरे कहने से एक बार हौसले का दिया जलाकर देखिए आप के आस-पास चारो ओर निर्भयता का उजियारा फैल जाएगा. जैसे ही हौसले का दिया जलेगा, मन में कुंठा और निराशा का जो अंधेरा भरा है वह छंट जाएगा. क्योंकि हौसले का दीया सिर्फ अंधेरा ही नहीं भगाता बल्कि आप को मजबूत भी करता है-आगे बढऩे के लिए, लडऩे के लिए, संकट और समस्याओं से मुकाबला करने के लिए. मीडिया इन्टेलिजेंस आप में हौसले का ऐसा ही दीया जलाने का एक प्रयास है. हम चाहते हैं कि आप भयभीत से निर्भीक बन जाएं. कमजोर से मजबूत बन जाएं. गंवार से होशियार बन जाएं. नागरिक से सिपाही बन जाएं...क्योंकि सिपाही केवल घर का नहीं होता, सिपाही तो वतन के लिए काम करता है. मुझे विश्वास है कि आज से आप ने मादरे वतन के लिए कुछ नया और बेहतर करने का संकल्प ले लिया है. मैं आपको इस साहसी अभियान की सफलता के लिए बधाई देता हूं..जयहिन्द. 

कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती

चश्मा उतारो, फिर देखो यारों

खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले, खुदा बंदे से खुद पूछे- बता तेरी रजा क्या है..यह से
गूगल से साभार
र अक्सर आप ने सुना होगा..मैं आप से कहता हूं कि एक बार इसे आजमा कर देखना..आप को अपने आप में एक ताकत का एहसास होने लगेगा. आप को लगेगा कि आप यूं ही इस दुनिया में नहीं आए हैं. आप के इस धरती पर आने के पीछे कोई खास मकसद है. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम अक्सर कहते थे कि मानव सभी प्राणियों से उत्कृष्ट है. तो फिर इस जीवन को जीने का तरीका भी उत्कृष्ट होगा. लेकिन हम इसे यूं ही गवां रहे हैं. आप कहेंगे कि क्या करें माहौल ऐसा है. तो फिर सवाल ये है कि आप उस माहौल को सुधारने-सवांरने के लिए कोई पहल क्यों नहीं करते . आप को नहीं लगता कि गलत और अपराधमय माहौल समाज के लिए, नयी पीढ़ी के लिए बड़ा खतरा है. ज्यादा कमाने और पाने की लालसा ही तो भ्रष्टाचार की ओर ले जाती है..यही लालसा हर क्षेत्र में बलवती होती जा रही.जाहिर है हमारे चारो तरफ जो घट रहा है, उस का असर हमारे रोज के जीवन पर पड़ता है. जैसे भ्रष्टाचार, महंगाई, अपराध और सामाजिक विकृतियां..अगर आप सोचते हैं कि इसे दूर करना आप का काम नहीं है तो इतना जरुर समझ लेना कि यही अनदेखी आप के बच्चों को बर्बाद करने के लिए काफी हो सकती है. लमहों ने खता की,सदियों ने सजा पाई ...क्यों कि बुराईयों के बीज भले ही हम न बोएं अगर हम उसे देखकर अनदेखी करते हैं तो वह एक दिन विषवेल बनकर हमारे युवा बच्चों को डंसने वाली है. तो वही बात हुई की गलती हम करें और नुकसान हमारी आने व?ली पीढ़ी उठाए. आप को नहीं लगता कि एक अपराध आप ने भी कर दिया है. शायद आप जैसे लोगों ने..तो क्या इसके समाधान के लिए आप को प्रयास नहीं करना चाहिए..जरुर, लेकिन इन मसलों को लेकर आप का नजरिया कुछ और होता है. क्योंकि आप सोंचते हैं कि यह काम मेरा या हमारा नहीं है.
सच्चाई ये है कि आप की आखों पर कायरता का चश्मा चढ़ा है. वाह्य परंपराओं का चश्मा चढ़ा है. इसलिए गंभीर समस्याएं भी आप को कुछ और दिखती हैं.आप अपराध और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर आप चीखते हुए नहीं थकते लेकिन जब उससे लडऩे या रोकने की बात आती है तब आप दूसरों की ओर देखने लगते हैं. ऐसा क्यों क्यों कि आप खुद से कुछ भी करना नहीं चाहते हैं. आखिर यह कब तक चलेगा. आप के इसी नजरिए का असर है कि जब आप के साथ कुछ बूरा होता है तभी आप को दुनिया में समस्याएं और संकट नजर आता है. आप जब घंटों राशन या बिजली बिल भरने के लिए कतार में खड़े होते हैं तो आप को तकलीफ होती है. आप इस पर सवाल उठाते हैं. शिकायत करते हंै. लेकिन जैसे ही आप का काम हो जाता है. आप इस ओर देखने की जरुरत नहीं समझते. तो अगर स्थितियों को बदलना है तो आपको अपनी आखों पर लगा वो चश्मा तो उतारना पड़ेगा.

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

नवी मुंबई में अवैध विदेशियों से बढ़ा खतरा

सर्वेक्षण दे रहे खतरे का अल्टीमेटम
अवैध वास्तव्य से सुरक्षा का खतरा

नवी मुंबई, सानपाड़ा की गुनीना बिल्डिंग में पकड़ा गया डेविड कोलमैन हेडली और ट्रेन ब्लास्ट का आरोपी का घणसोली से पकड़ा जाना इस बात के संकेत है कि नवी मुंबई अपराधियों के लिए सबसे सुरक्षित शरणगाह रही है.वर्तमान में तकरीबन 2000 विदेशी नागरिकों के अवैध वास्तव्य ने सुरक्षा को लेकर पुलिस के कान खड़े कर दिए हैं. सतर्कता संगठन मीडिया इन्टेलीजेंस नेटवर्क ने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को खत लिखकर जांच और कार्रवाई की मांग की है. मीडिया इन्टेलीजेंस के सर्वेक्षण में विदेशी नागरिकों के अवैध वास्तव्य एवं उनके संदिग्ध क्रियाकलापों से जुड़े कई गंभीर तथ्य सामने आए हैं जो नवी मुंबई सहित राज्य की सुरक्षा के लिहाज से भी खतरे की घंटी हैं.

1-मीडिया इन्टेलिजेस नेटवर्क के आंकलन में इन विदेशियों के रहन-सहन एवं संदिग्ध क्रियाकलापों से जुड़े जो तथ्य सामने आए हैं वे शहर एवं देश की सुरक्षा और शांति के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं. एपीएमसी, नेरुल, वाशी एवं कोपरखेरणे तथा बेलापुर पुलिस स्टेशनों में इनके अवैध कारनामों और बिना वीजा रहने के गंभीर मामले भी दर्ज हैं.
2- आशंका है कि ये देश की सुरक्षा से जुड़े स्थानों की रेकी या अन्य आतंकी गतिविधियों के लिए सूचना देने या अन्य जासूसी कार्यो में स्लीपर सेल की तरह भूमिका निभाते होंगे. शहर में रहने वाले अधिकांश विदेशी एक्सपायर्ड वीजा एवं पासपोर्ट पर नवी मुंबई में रह रहे हैं, जो संवैधाकि तौर पर अवैध है. उन्हें उनके देश भेज देने (डिपोर्ट) की कार्रवाई की जरुरत है.  
3-नवी मुंबई पुलिस के संबंधित पुलिस स्टेशनों द्वारा ऐसे विदेशी नागरिकों की निगरानी या मॉनिटरिंग के लिए कोई भी प्रभावी सिस्टम नहीं है, ताकि उनकी विजा वैधता, निवास और कामकाज के विस्तृत ब्यौरे का नियमित आकलन किया जा सके. ऐसी लापरवाही गंभीर खतरों की चेतावनी है.
4-तकरीबन 65 फीसदी से अधिक यूरोपियन, नाइजीरियन नागरिक जिस भाड़े के मकान या इमारतों में निवास करते हैं. उनके लिए घर-मकान भाड़े पर देते समय स्थानीय पुलिस थाने से एनओसी नहीं ली जाती है.अधिकांश मकान, फ्लैट मालिकों ने बिना पुलिस एनओसी के ही मोटा एवं मनमाना भाड़ा वसूलने की लालच में अपने मकानों या कमरों को इन विदेशियों को भाड़े पर दे देते हैं, जो चिंतनीय और गैर कानूनी है.  
5-सायबर क्राइम ,स्मगलिंग, फेक करेंसी और सेक्स रैकेट जैसी गतिविधियों में कई विदेशी नागरिकों का नाम के आने के बाद नवी मुंबई पुलिस इनके वास्तव्य, कामकाज, कारोबार, विजा एवं पासपोर्ट आदि की जांच को लेकर गंभीर नहीं है जिसे लेकर विशेष निर्देश की जरुरत है.